'वो दिन में कई बार नमाज पढ़ता है...', 6 साल की बच्ची के बलात्कारी की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने पर हंगामा
6 साल की बच्ची के साथ रेप करके उसे मौत के घाट उतारने वाले आरोपी को लोअर कोर्ट ने फांसी की सजा दी थी. लेकिन हाई कोर्ट ने फैसले को बदल दिया है. कोर्ट ने दोषी मानते हुए मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया है. कोर्ट ने दोषी शेख आसिफ अली को मिली फांसी की सजा बदलते हुए कई तर्क दिए हैं. हाई कोर्ट का यह फैसला इस समय चर्चा का विषय बना हुआ है.
एक शख्स जो 6 साल की बच्ची के साथ रेप करता है. बच्ची की मौत हो जाती है. आरोपी पर मुकदमा चलता है. लोअर कोर्ट उसे दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाती है. लोअर कोर्ट के फैसले के खिलाफ आरोपी हाई कोर्ट पहुंचता है. हाई कोर्ट ने आरोपी को दोषी माना लेकिन मौत की सजा उम्रकैद में बदल दिया. यानी जिस आरोपी 6 साल की बच्ची का रेप करने पर फांसी होनी थी अब उसे फांसी नहीं होगी. वह जिंदा रहने तक जेल में रहेगा. हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि दोषी ने खुद को अल्लाह को समर्पित कर दिया है. वह दिन में 5 वक्त की नमाज अदा करता है. उसके परिवार की आर्थिक हालात सही नहीं हैं. हाई कोर्ट का ये फैसला इस समय सुर्खियों में हैं.
ये फैसला ओडिशा हाई कोर्ट ने दिया है. दोषी का नाम शेख आसिफ अली है. जस्टिस एसके साहू और जस्टिस आरके पटनायक की खंडपीठ ने लोअर कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए सजा बदल दी. हाई कोर्ट के इस फैसले पर वकील सवाल खड़े कर रहे हैं.
लोअर कोर्ट ने करार दिया था दोषी
शेख आसिफ अली को लोर कोर्ट ने आईपीसी की धारा 302/376 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 के तहत दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई थी. ओडिशा हाई कोर्ट ने फांसी की सजा को बदलते हुए कहा कि 2014 में अपराध के समय 26 वर्ष का आसिफ अली मौत आने तक जेल में रहेगा. इसके साथ ही हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से पीड़िता के माता-पिता को 10 लाख रुपये देने को कहा है.
वकीलों ने फैसले पर खड़े किए सवाल?
वकीलों की कहना है कि अगर कोई दोषी दिन में पांच बार नमाज पढ़ता है. उसने खुद को अल्लाह को समर्पित कर दिया है. उसने अपने गुनाहों को भी कबूल कर लिया है. भगवान के सामने उसने खुद को सरेंडर कर दिया है तो क्या इस आधार पर उसकी सजा को कम कर देना चाहिए. जिस कृत्य के लिए कम से कम फांसी की सजा होती है क्या भगवान के प्रति समर्पित होने से मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदला जा सकता है?
परिवार की आर्थिक स्थिति नहीं है सही?
जस्टिस एसके साहू और जस्टिस आरके पटनायक की खंडपीठ ने फैसला सुनाते हुए दोषी के नमाज पढ़ने और ईश्वर के सामने समर्पित करने के अलावा और भी कई अन्य तर्क दिए. कोर्ट ने कहा शेख आसिफ अली अपने घर में अकेला कमाने वाला था. उसकी 63 साल की बूढ़ी मां है. इसके अलावा उसकी दो बहनें भी हैं, जिनकी अभी शादी नहीं हुई है. वह मुंबई में मिस्त्री का काम किया करता था. उसके परिवार की आर्थिक स्थिति सही नहीं है.
अच्छा क्रिकेट और फुटबॉल खिलाड़ी था
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में आगे कहा कि स्कूल में उसका चरित्र और आचरण सही थी. उसने 2010 में दसवीं की परीक्षा पास की थी. आर्थिक तंगी की वजह से वह आगे की पढ़ाई नहीं कर पाया था. कोर्ट ने कहा कि वह युवावस्था में एक फुटबॉल और क्रिकेट का अच्छा खिलाड़ी था.
जेल में भी सही था आचरण
हाई कोर्ट ने दोषी की सजा को बदलते हुए कहा कि वह 10 सालों तक न्यायिक हिरासत में रहा. जेल में भी उसका आचरण और चरित्र सही था. अब तक जेल में रहने के दौरान उसके खिलाफ कोई भी ऐसी रिपोर्ट नहीं आई है जो उसके आचरण और चरित्र पर सवाल उठाती हो.