List Of Corrupt Judges: दिल्ली हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के सरकारी घर में नोट मिलने का मामला एकदम गरमा गया है. इस घटना ने देश की न्याय व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है. चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय ने प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना को जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी घर में लगी आग की रिपोर्ट सौंपी है.
रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्मा के घर से जले हुए भारतीय नोट मिले हैं. लेकिन जस्टिस वर्मा ने अपने सरकारी घर में पैसे मिलने की बात को एकदम नकार दिया है. उन्होंने कहा, 'मुझे आउटहाउस के स्टोररूम में पैसे होने की कोई जानकारी नहीं थी. और न ही मेरे परिवार के किसी सदस्य को.' जस्टिस वर्मा ने कहा कि पैसे कहां से आए, इसका सवाल ही नहीं उठता. उन्होंने इस आरोप को एकदम गलत बताया और कहा कि उन्हें जले हुए नोटों की कोई बोरी दिखाई या सौंपी नहीं गई.
जस्टिस एसएन शुक्ला: इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज रहते हुए सीबीआई ने जस्टिस एसएन शुक्ला के खिलाफ दिसंबर 2019 में करप्शन का मामला दर्ज किया था. उन पर आरोप था कि उन्होंने पैसे लेकर लखनऊ के एक मेडिकल कॉलेज को फायदा पहुंचाने के लिए गलत आदेश दिए. जस्टिस शुक्ला जुलाई 2020 में रिटायर हो गए.
जस्टिस निर्मल यादव: 2008 में 15 लाख रुपये कैश का पार्सल पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की जस्टिस निर्मलजीत कौर के घर पहुंचा था. उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी. बाद में आरोप लगा कि ये पैसे जस्टिस निर्मल यादव के घर भेजे जाने थे, जो उसी हाईकोर्ट में जज थे. ये केस अभी भी चल रहा है.
जस्टिस शमित मुखर्जी: 2003 में दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस शमित मुखर्जी को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था. उन पर करोड़ों रुपये के जमीन घोटाले में शामिल होने का आरोप था. सीबीआई ने आरोप लगाया कि उन्होंने एक रेस्टोरेंट मालिक के पक्ष में आदेश दिया था, जिसने पब्लिक जमीन पर कब्जा कर रखा था. इसके लिए उन्हें पैसे देने की बात भी सामने आई थी.
जस्टिस सौमित्रा सेन: कलकत्ता हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस सौमित्रा सेन पर 1993 में कोर्ट द्वारा नियुक्त रिसीवर के रूप में 32 लाख रुपये की हेराफेरी का आरोप लगा था. राज्यसभा ने उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पारित किया, जिसके बाद उन्होंने सितंबर 2011 में इस्तीफा दे दिया था.
जस्टिस पीडी दिनाकरन: जस्टिस दिनाकरन ने जुलाई 2011 में सिक्किम हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के पद से इस्तीफा दे दिया था, क्योंकि उन पर बहुत ज्यादा संपत्ति बनाने और गलत काम करने के आरोप लगे थे. 2010 में, आरोपों की जांच के लिए राज्यसभा में एक कमेटी बनाई गई थी. संभावित महाभियोग से बचने के लिए उन्होंने पद छोड़ दिया.
ये मामले न्यायपालिका की इमेज को खराब करते हैं और लोगों का न्याय व्यवस्था से विश्वास कम करते हैं. जरूरी है कि इस मामले की अच्छी तरह से जांच हो और दोषियों को कड़ी सजा मिले, ताकि न्यायपालिका की इज्जत बनी रहे.