हाल ही में एक कॉर्पोरेट कर्मचारी ने नोएडा से बेंगलुरु में नौकरी के लिए शिफ्ट किया, जिसमें उसे 30 हजार रुपये की सैलरी बढ़ोतरी मिली लेकिन अब वह इस फैसले को अपनी सबसे बड़ी गलती मान रहा है. उसने बेंगलुरु की खराब सड़कों, जाम से भरे ट्रैफिक और रहन-सहन की मुश्किलों को लेकर निराशा जताई और दूसरों को शहर में शिफ्ट होने से पहले सावधान रहने की सलाह दी.
सोशल मीडिया पर छलका दर्द
रेडिट पर "नोएडा से बेंगलुरु आया और अब पछतावा हो रहा है" शीर्षक से लिखे एक पोस्ट में इस कर्मचारी ने अपनी आपबीती साझा की. उसने बेंगलुरु को "गंदा और अव्यवस्थित" बताया, जहां "सड़कें खराब हैं" और "ट्रैफिक सबसे बुरा है." इसके अलावा, पानी की गुणवत्ता, भीड़भाड़ और सांस्कृतिक मतभेदों ने भी उसे परेशान किया. ग्रेजुएशन के बाद एक साल तक नोएडा में नौकरी करने वाला यह शख्स पहले एनसीआर तक ही नौकरी की तलाश में था. लेकिन बेंगलुरु से बेहतर ऑफर मिलने पर उसने यह कदम उठाया. चार महीने बाद अब वह सोच रहा है कि क्या यह जोखिम सही था.
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"नोएडा छोड़ना गलती थी"
उसने लिखा, "मुझे नोएडा छोड़ने का बहुत अफसोस है. वहां प्रदूषण के बावजूद, मेरे लिए नोएडा सबसे अच्छा टियर-1 शहर है." उसने अपनी पोस्ट में दूसरों को चेतावनी देते हुए कहा, "खुद को समय दें और सोचें- क्या शिफ्ट करना वाकई जरूरी है?"
लोगों ने किया कमेंट
इस पोस्ट ने सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी. एक यूजर, जो बेंगलुरु से नोएडा शिफ्ट हुआ था, ने बताया कि उसने पैसे और तनाव दोनों बचाए. उसने कहा, "बेंगलुरु की तुलना में नोएडा में मुझे ज्यादा सुरक्षित महसूस होता है." एक अन्य यूजर ने क्षेत्रीय भेदभाव का जिक्र करते हुए कहा, "बेंगलुरु में ऐसा लगा जैसे मैं घर खरीद सकता हूं, लेकिन उसे कभी अपना घर नहीं कह सकता."
कई लोगों ने शहर की अव्यवस्था पर निशाना साधा. एक ने लिखा, "यहां कुछ भी ठीक नहीं चलता- सड़कें, फ्लाईओवर, मेट्रो, सब एक अराजक चक्र में फंसे हैं. यह सबसे अव्यवस्थित शहर है." हालांकि, एक स्थानीय निवासी ने बेंगलुरु का बचाव करते हुए कहा कि तेज और अनियोजित विकास इसकी वजह है. उसने लिखा, "मुझे खेद है कि आपको भेदभाव महसूस हुआ. यह कुछ लोगों की हरकतें हैं जो पूरे समुदाय को बदनाम करती हैं."
क्या है असली चुनौती?
यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति की कहानी नहीं, बल्कि भारत के बड़े शहरों में रहन-सहन और नौकरी के अवसरों से जुड़ी जटिलताओं को उजागर करता है. जहां बेंगलुरु को तकनीकी केंद्र के रूप में जाना जाता है, वहीं वहां की बुनियादी सुविधाएं और जीवनशैली कई लोगों के लिए चुनौती बन रही हैं. दूसरी ओर, नोएडा जैसे शहर अपनी व्यवस्था और कनेक्टिविटी के लिए पसंद किए जा रहे हैं. इस कर्मचारी की कहानी दूसरों के लिए एक सबक हो सकती है कि सैलरी बढ़ोतरी के साथ-साथ जीवन की गुणवत्ता पर भी ध्यान देना जरूरी है.
सोच-समझकर लें फैसला
कर्मचारी की यह आपबीती बताती है कि नौकरी के लिए शहर बदलने से पहले वहां की परिस्थितियों का अच्छे से आकलन करना चाहिए. पैसा महत्वपूर्ण है, लेकिन रोजमर्रा की जिंदगी में सुकून और सुविधा भी उतने ही जरूरी हैं. यह कहानी नौकरीपेशा लोगों को यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या थोड़ी सी बढ़ोतरी के लिए बड़े बदलाव का जोखिम उठाना सही है.