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'16 फीसदी मेडिकल स्टूडेंट, 31 फीसदी ट्रेनी डॉक्टरों ने सुसाइड का सोचा था', कोलकाता कांड के बीच चौंकाने वाली रिपोर्ट

नेशनल मेडिकल कमीशन यानी NMC के एक सर्वे में पाया गया है कि 28 फीसदी ग्रेजुएट और 15 फीसदी पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल स्टूडेंट एन्जाइटी और डिप्रेशन समेत मेंटल हेल्थ इश्यू से पीड़ित हैं. इसके अलावा, 16 फीसदी यूजी और 31 फीसदी मेडिकल स्टूडेंट्स ने आत्महत्या तक के बारे में सोच लिया था. कलंक और गोपनियता भंग जैसी चिंताएं इन्हें मदद लेने में बाधा डालती हैं, जिसके कारण NMC ने कुछ सिफारिशें भी की हैं.

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Edited By: India Daily Live
National Medical Commission
Courtesy: social media

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) की ओर से किए गए एक ऑनलाइन सर्वे में कहा गया है कि 28% ग्रेजुएट मेडिकल स्टूडेंट और 15% पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल स्टूडेंट मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर से पीड़ित हैं. इसमें एन्जाइटी और डिप्रेशन शामिल हैं. हाल के दिनों में मेडिकल स्टूडेंट्स के बीच सुसाइड की कई घटनाओं के बाद NMC की ओर से गठित टास्क फोर्स की ओर से किए गए सर्वेक्षण में पाया गया कि लगभग 16% यूजी स्टूडेंट्स और 31% पीजी स्टूडेंट्स ने आत्महत्या के बारे में सोचा था.

सर्वेक्षण में देश भर के मेडिकल कॉलेजों के 25 हजार 590 यूजी स्टूडेंट्स, 5 हजार 337 पीजी स्टूडेंट्स और 7 हजार 035 फैकल्टी मेंबर्स ने पार्टिसिपेट किया. NMC टास्क फोर्स की ओर से जारी सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, मेडिकल कॉलेजों में छात्रों के लिए मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच को 3 हजार 648 (19%) यूजी स्टूडेंट्स की ओर से बहुत या कुछ हद तक दुर्गम माना गया और इन सेवाओं की गुणवत्ता को 4 हजार 808 (19%) की ओर से बहुत खराब या खराब माना गया.

41 फीसदी पीजी स्टूडेंट्स मदद मांगने में असहज

सर्वेक्षण के नतीजों से पता चलता है कि पीजी स्टूडेंट्स के बीच लगभग 41% ने मदद मांगने में असहजता महसूस की. मेंटल हेल्थ सपोर्ट प्राप्त करने के परिदृश्य की जांच करने पर, विशेषज्ञों ने पाया कि अधिकांश (44%) स्टूडेंट्स गोपनीयता की चिंताओं के कारण मदद मांगने से बचते हैं. मदद मांगने में कलंक भी एक महत्वपूर्ण बाधा बनकर सामने आई. 20% उत्तरदाताओं ने सामाजिक निर्णय और मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों की गलतफहमी का डर व्यक्त किया.

इसके अतिरिक्त, 16% पीजी छात्रों ने अनिर्दिष्ट चुनौतियों (Unspecified Challenges) का हवाला दिया, जो स्पष्ट रूप से क्लासीफाइड नहीं की गई.  इसके अलावा, भविष्य की नौकरी की संभावनाओं (9%) और लाइसेंसिंग मुद्दों (1%) पर प्रभाव के बारे में चिंताएं, मेंटल हेल्थ चाहने वाले व्यवहारों और प्रोफेशनल करियर के बीच जटिल अंतर्संबंध (Complex interrelationships) को प्रदर्शित करती हैं.

NMC टास्क फोर्स का कहना है कि अगर भविष्य के हेल्थ प्रोफेशनल्स को खुद इन चिंताओं का सामना करना पड़ रहा है, तो मरीजों को मदद लेने के लिए प्रभावित करने की उनकी क्षमता एक ऐसा सवाल बन जाता है, जिस पर विचार करने की जरूरत है.

टास्क फोर्स ने हेल्थ प्रोफेशनल्स के लिए की सिफारिशें

टास्क फोर्स ने पूरे परिसर में 24x7 हेल्प सिस्टम देने के लिए सभी मेडिकल कॉलेजों में स्वास्थ्य मंत्रालय की टेली मेंटल हेल्थ असिस्टेंस एंड नेटवर्किंग एक्रॉस स्टेट्स (टेली-मानस) पहल को लागू करने की सिफारिश की है. इसने यह भी सुझाव दिया है कि रेजिडेंट डॉक्टर प्रति सप्ताह 74 घंटे से अधिक और लगातार 24 घंटे से अधिक काम नहीं करें.

आमतौर पर हेल्थ प्रोफेशनल्स के शेड्यूल में हर सप्ताह एक दिन की छुट्टी, एक दिन 24 घंटे की ड्यूटी और शेष पांच दिनों के लिए 10 घंटे की शिफ्ट शामिल है. निमहंस बैंगलोर में मनोचिकित्सा के प्रोफेसर डॉ सुरेश बड़ा मठ की अध्यक्षता वाली टास्क फोर्स का कहना है कि अत्यधिक ड्यूटी घंटे मेडिकल छात्रों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए जोखिम पैदा करते हैं और रोगी सुरक्षा से भी समझौता करते हैं. ये स्वीकार करना दिल दहला देने वाला है कि हमारे कई प्रतिभाशाली दिमाग चुपचाप संघर्ष करते हैं, कुछ तो आत्महत्या के बारे में भी सोचते हैं. यह एक ऐसी वास्तविकता है जिसे हम अब और अनदेखा नहीं कर सकते.