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कोलकाता कांड पर एनजीओ की चुप्पी! उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ उठाए सवाल

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कोलकाता कांड पर बोलते हुए कहा कि कुछ एनजीओ अक्सर मामूली घटना पर सड़कों पर उतर आते हैं, अब चुप्पी साधे हुए हैं. उनकी चुप्पी 9 अगस्त 2024 को हुए इस जघन्य अपराध के अपराधियों के दोषी कृत्य से भी बदतर है. 

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Edited By: India Daily Live
 Vice President Jagdeep Dhankhar
Courtesy: Social Medai

कोलकाता में ट्रेनी डॉक्टर से रेप और हत्या का मामले में एनजीओ की चुप्पी पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रविवार को सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने कहा कि कुछ एनजीओ जो एक घटना के लिए सड़क पर हैं, वे चुप्पी साधे हुए हैं. हमें उनसे सवाल करना होगा. उनकी चुप्पी 9 अगस्त 2024 को हुए इस जघन्य अपराध के अपराधियों के दोषी कृत्य से भी बदतर है. 

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि जो लोग राजनीति और ब्राउनी पॉइंट खेलना चाहते हैं, एक-दूसरे को पत्र लिखते रहते हैं, वे अपनी अंतरात्मा की आवाज का जवाब नहीं दे रहे हैं. देश को एक ऐसी सुरक्षित और प्रणालीगत प्रक्रिया अपनानी होगी जिससें मानवता की सेवा में लगे किसी क्षेत्र के लोगों को कोई खतरा नहीं हो.

कपिल सिब्बल की आलोचना

उपराष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के अध्यक्ष कपिल सिब्बल की आलोचना की. उन्होंने एक प्रस्ताव में कहा था कि यह घटना एक लक्षणात्मक अस्वस्थता थी तथा कहा था कि ऐसी घटनाएं आम बात हैं. यह पहली बार नहीं है जब धनखड़ ने कोलकाता हत्याकांड पर बात की है. 

पीटीआई के अनुसार धनखड़ ने कहा, मैं स्तब्ध हूं मुझे दुख है और कुछ हद तक आश्चर्य भी है कि सुप्रीम कोर्ट बार में पद पर आसीन कोई व्यक्ति, एक सांसद, इस तरह से काम कर रहा है और क्या कह रहा है? एक लक्षणात्मक अस्वस्थता और सुझाव दिया कि ऐसी घटनाएं आम बात हैं? कितनी शर्म की बात है! इस तरह के रुख की निंदा करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं. यह उच्च पद के साथ सबसे बड़ा अन्याय है.

निर्भया कांड का किया जिक्र

ऋषिकेश स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में आयोजित कार्यक्रम के दौरान उपराष्ट्रपति ने कहा कि साल 2012 में निर्भया कांड जैसी घटना घटी थी, इस कांड ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया और इस घटना के बाद कानून में बदलाव हुआ था. उन्होंने सवाल खड़े करते हुए कहा कि अपनी सत्ता का लाभ उठाते हुए हमारी लड़कियों और महिलाओं पर इस तरह के जघन्य अन्याय को अंजाम देते हैं? मानवता के साथ इससे बड़ा अन्याय और क्या हो सकता है? क्या हम अपनी लड़कियों की पीड़ा को कम आंकते हैं?