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1 जुलाई से लागू हो जाएगी 'न्याय संहिता,' कितनी तैयार है हमारी पुलिस? इन कमियों पर उठे सवाल

New Criminal Laws: हमारी पुलिस 1 जुलाई से नए आपराधिक कानून (New Criminal Laws) के लिए कितनी तैयार है. ये सवाल इसलिए क्योंकि कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि अधिक पुलिस स्टेशन्स के कर्मियों और अधिकारियों को नए प्रावधानों से परिचित कराने के लिए मात्र कुछ दिनों की ही ट्रेनिंग दी गई है. ऐसे में पुलिसकर्मी नए कानून के साथ कितना तालमेल बिठा पाएंगे, ये अहम सवाल है.

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New Criminal Laws
Courtesy: Social Media

New Criminal Laws: जून की शुरुआत में असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर शराफत अली, नोएडा के एक पुलिस स्टेशन में तैनात हैं. उन्होंने एक दिन की छुट्टी ली, ताकि नए आपराधिक कानून की बारीकियां समझ सकें और इसके लिए आयोजित ट्रेनिंग में शामिल हो सकें. भारत की क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में सुधार की जरूरतों को देखते हुए ट्रेनिंग जरूरी थी. 

1 जुलाई को तीन मुख्य आपराधिक कानून (क्रिमिनल लॉ) भारतीय दंड संहिता 1860, भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 और दंड प्रक्रिया संहिता 1973 बदल जाएगी. इनकी जगह भारतीय न्याय संहिता 2023 , भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 शामिल होगी, जिन्हें दिसंबर में संसद में पास कराया गया था. लॉ सिस्टम में इस तरह के बड़े बदलाव के लिए देशभर में पुलिस डिपार्टमेंट नए कानूनों के संबंध में पुलिस अधिकारियों को ट्रेनिंग भी दे रही है.

इसी तरह के एक ट्रेनिंग में असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर शराफत अली ने पार्टिसिपेट किया था. स्क्रॉल.इन से बातचीत में उन्होंने कहा कि हमें बताया गया कि नए कानूनों की धाराएं मौजूदा कानूनों की धाराओं से कैसे संबंधित हैं और साथ ही नए कानूनों में क्या बदलाव किए गए हैं.

शराफत अली ने कहा कि हमने पुलिस के लिए भरे जाने वाले नए फॉर्म भी देखे, जिन्हें भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में शामिल किया गया है. उन्होंने बताया कि अंत में ट्रेनिंग सेंटर में छीना-झपटी, बलात्कार, दहेज हत्या और नए कानूनों के तहत पुलिस कैसे आगे बढ़ेगी, इस पर चर्चा की गई.

सेशन खत्म होने के बाद मोबाइल ऐप पर दिया गया टास्क

सेशन खत्म होने के बाद शराफत अली से मोबाइल फोन ऐप के जरिए नए कानूनों से संबंधित टास्क दिया गया. हालांकि, शराफत अली न तो ऐप का नाम बता सके और न ही ये ऐप उनके मोबाइल में था. इससे जुड़े सवाल पर उन्होंने कहा कि मैं अब स्मार्टफोन सीखने के लिए बूढ़ा हो चुका हूं. 

नोएडा फेज 2 पुलिस स्टेशन में उनके साथ काम करने वाले असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर रेणु कुमार को नए कानून लागू होने से सिर्फ 10 दिन पहले, 20 जून तक कोई ट्रेनिंग नहीं मिला था. रेणु कुमार ने कहा कि जून के अंत से पहले उनके लिए तीन दिनों का ट्रेनिंग सेशन आयोजित किया गया था, लेकिन इस बारे में उन्हें अब तक ये नहीं पता कि आखिर ट्रेनिंग कब शुरू होगी?

दिल्ली और उसके आसपास के जिन पुलिस थानों में स्क्रॉल ने दौरा किया, उनमें से कई अधिकारी इस बारे में बात करने से हिचक रहे थे कि क्या वे नए कानूनों से इतने परिचित हैं कि उन्हें सुचारू रूप से लागू कर सकें. जो लोग बोलने के लिए सहमत हुए, उन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें केवल कुछ दिनों के लिए मिनिमम क्लासरूम ट्रेनिंग मिली है और वे अभी भी नए कानूनों के प्रावधानों के साथ तालमेल बिठाने की कोशिश कर रहे हैं.

कई पुलिस अधिकारियों ने माना- न्यू क्रिमिनल लॉ से बदलाव चुनौतीपूर्ण होगा

कई पुलिस अधिकारियों ने माना कि अगले महीने से न्यू लॉ सिस्टम में बदलाव चुनौतीपूर्ण होगा और इसे सहज बनाने में कई महीने लगेंगे. साथ ही, इस बात को भी स्वीकार किया गया कि उनके पास 'ऊपर से आए' नए कानूनों को लागू करने की चुनौती से निपटने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.

साल की शुरुआत में ही देश में पुलिस विभागों ने अपने हज़ारों अधिकारियों और कर्मचारियों को ट्रेंड करने के लिए बड़े पैमाने पर कैपेसिटी बिल्डिंग कैंपेन शुरू किया है. उन्होंने ट्रेनिंग मैटेरियल का एक बड़ा कलेक्शन भी तैयार किया है, जिनमें से कुछ ऑनलाइन उपलब्ध हैं. हर विभाग ने पुलिस कर्मियों के विभिन्न पदों के लिए अलग-अलग क्लासरूम ट्रेनिंग सेशन आयोजित किए हैं, जिनकी टाइमिंग और सब्जेक्ट मैटर अलग-अलग है.

ये ट्रेनिंग निचले स्तर के कर्मचारियों (सब-इंस्पेक्टर और कांस्टेबल) के लिए महत्वपूर्ण है, जो पुलिस स्टेशन के रैंक और फ़ाइल का निर्माण करते हैं. FIR, चार्जशीट और पुलिस डायरी दर्ज करने से लेकर जांच करने तक, उनका सारा काम नए कानूनों के तहत होगा.

सब इस्पेक्टर्स और कांस्टेबल्स बोले- मिनिमम ट्रेनिंग मिली है

दिल्ली, हरियाणा के फरीदाबाद और गुड़गांव के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के नोएडा के पुलिस थानों में सब-इंस्पेक्टर्स और कांस्टेबल्स ने कहा कि उन्हें नए कानूनों के संबंध में मिनिमम ट्रेनिंग मिली है. नोएडा के एक पुलिस स्टेशन में कंप्यूटर ऑपरेटर के रूप में काम कर रहे एक कांस्टेबल ने नाम न बताने की शर्त पर स्क्रॉल को बताया कि उसे एक दिन की ट्रेनिंग मिली थी. 

दिल्ली के बदरपुर पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर गणेश कुमार के अनुसार, कांस्टेबल्स और सब-इंस्पेक्टर्स को केवल कुछ दिनों का ट्रेनिंग दिया गया था, क्योंकि 12वीं पास और इंटरमीडिएट स्तर के लोगों से लॉ की ट्रेनिंग की उम्मीद नहीं की जा सकती है.

बदरपुर पुलिस स्टेशन के असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर राम कुमार भी इस बात से सहमत हैं. उन्होंने कहा कि हम समय और अनुभव के साथ नए कानूनों को सीखेंगे. पुलिस को इस तरह से, दबाव में काम करने की आदत है. दावा किया जा रहा है कि कई पुलिस थानों ने पुलिस बल को ट्रेंड करने के अपने तरीके तैयार कर लिए हैं.

एग्जाम्पल से समझिए, पुलिस कैसे कर रही स्टाफ को ट्रेंड

उदाहरण के लिए, बदरपुर पुलिस स्टेशन में डमी केस रजिस्ट्रेशन के ज़रिए स्टाफ़ को ट्रेंड किया जा रहा है. सबूत के तौर पर इंस्पेक्टर गणेश कुमार ने पुलिस स्टेशन की रोज़ाना की डायरी निकाली, जिसमें स्टाफ़ की ओर से की गई सभी कार्रवाइयों का रिकॉर्ड होता है.

डायरी में, हर शिकायत और FIR एंट्री के लिए, भारतीय न्याय संहिता के तहत किए गए अपराधों की धारा संख्या को वर्तमान में लागू भारतीय दंड संहिता के तहत अपराधों की धारा संख्याओं के बगल में ब्राइकेट में लिखा जा रहा था.

पुराने और नए कानून को लेकर पुलिस अधिकारियों में ये भ्रम

स्क्रॉल से बात करने वाले अधिकांश पुलिस अधिकारियों ने नए कानूनों के एप्लिकेशन के बारे में बुनियादी सवालों के संबंध में भ्रम और स्पष्टता की कमी व्यक्त की. उन्होंने कहा कि नये कानूनों के संबंध में सबसे विवादास्पद सवालों में से एक ये है कि अगर कोई क्राइम 1 जुलाई से पहले किया गया था, लेकिन शिकायत 1 जुलाई को या उसके बाद की गई है, तो क्या FIR में पुरानी भारतीय दंड संहिता या नई भारतीय न्याय संहिता लागू होगी?

सीनियर वकीलों ने भी इस पर अनिश्चितता की बात कही है. इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि पुलिस अधिकारी भी इस सवाल से असमंजस में थे. 

फरीदाबाद के एक पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर गणेश कुमार और स्टेशन हाउस ऑफिसर ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि क्राइम की तारीख के हिसाब से मुकदमा चलाया जाएगा. उन्होंने पुष्टि की कि अगर कोई अपराध 1 जुलाई से पहले किया गया है, तो उस पर भारतीय दंड संहिता के तहत कार्रवाई की जाएगी.

दूसरी ओर, नोएडा फेज 2 पुलिस स्टेशन के असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर गौरव मलिक और गुड़गांव के एक पुलिस स्टेशन के हेड कांस्टेबल ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि FIR दर्ज करने की तारीख महत्वपूर्ण है. उनके अनुसार, अगर जुलाई या उसके बाद कोई शिकायत दर्ज की जाती है, तो उस पर भारतीय न्याय संहिता के तहत कार्रवाई की जाएगी, भले ही क्राइम कभी भी किया गया हो.

कुछ पुलिस अधिकारी बोले- जैसा साहब बोलेंगे, वैसा ही करेंगे

स्क्रॉल ने जिन अन्य पुलिस अधिकारियों से बात की, उनमें से अधिकांश ने कहा कि वे इस संबंध में सीनियर अधिकारियों से मिले आदेशों के अनुसार ही आगे बढ़ेंगे. नये कानून के लागू होने से मात्र एक सप्ताह पहले इसके लागू होने के ऐसे बुनियादी प्रश्न पर अनिश्चितता का होना शुभ संकेत नहीं है. 

फरीदाबाद के स्टेशन हाउस अफसर ने अलग जवाब देते हुए कहा कि नए प्रावधानों में कोई भी खामी या कठिनाई समय के साथ हल हो जाएगी. इंस्पेक्टर गणेश कुमार ने इस मामले में ज़्यादा ठोस तर्क दिए. उन्होंने कहा कि बहुत से विवादास्पद और अस्पष्ट प्रावधानों पर अदालत की व्याख्या का इंतज़ार करना होगा.

हालांकि, इसमें कोई संदेह नहीं है कि पुलिस को एक साथ दो कानूनी प्रणालियों के बीच संतुलन बनाना होगा. जुलाई से पहले दर्ज अपराधों के लिए पुराने कानूनों का इस्तेमाल करना और जुलाई के बाद दर्ज अपराधों के लिए नए कानूनों का इस्तेमाल करना.

वीडियो रिकॉर्डिंग संबंधी चिंताएं भी मौजूद

स्क्रॉल से बातचीत में कई पुलिसकर्मियों ने एक चुनौती उठाई, जो ये थी कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में यह अनिवार्यता है कि अपराध स्थल पर कोई भी तलाशी या जब्ती तथा गवाह और पीड़ित के बयान ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों (मोबाइल फोन) के माध्यम से दर्ज किए जाने चाहिए.

उनमें से कई ने माना कि उन्हें इस तरह की रिकॉर्डिंग करने के लिए कोई स्पेशल ट्रेनिंग या गाइडेंस नहीं दिया गया है. उन्होंने सवाल उठाया कि उनसे जांच कार्य के साथ-साथ रिकॉर्डिंग करने की अपेक्षा कैसे की जा सकती है और हर दिन अपने फोन पर सैकड़ों वीडियो रिकॉर्ड करने की व्यावहारिक कठिनाई की ओर इशारा किया.

क्या होगा यदि रिकॉर्डिंग के बीच में ही हमारे फोन की मेमोरी खत्म हो जाए, यह एक आम सवाल था. असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर मलिक ने कहा कि वीडियो रिकॉर्डिंग के लिए विभाग को हाई क्वालिटी वाले डिजिटल इप्क्यूमेंट्स उपलब्ध कराने चाहिए.

इसके अलावा, फरीदाबाद के सराय ख्वाजा पुलिस स्टेशन के एक असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर ने नाम न बताने की शर्त पर स्क्रॉल को बताया कि उन्हें अगले कुछ महीनों तक कोई भी FIR, आरोप पत्र या डायरी एंट्री करते समय अपनी मेज पर नई क़ानून की किताब खुली रखनी होंगी ताकि नए कानूनों की धारा संख्या याद रहे. अधिकांश पुलिस अधिकारियों ने इस बात पर सहमति जताई कि नई प्रणाली में परिवर्तन कठिन होगा.

हेड कांस्टेबल ने कहा- नए सिस्टम में आने में कम से कम छह महीने लगेंगे

गुड़गांव के हेड कांस्टेबल ने कहा कि नए सिस्टम के अभ्यस्त होने में हमें कम से कम छह महीने लगेंगे. नोएडा की असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर रेणु कुमार ने कहा कि उनकी सबसे बड़ी चिंता ये है कि इन बदलावों से आम लोग भ्रमित हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि हर कोई हत्या और धोखाधड़ी जैसे सामान्य अपराधों के लिए IPC के प्रावधानों को जानता है. अब, जब हम नई धारा संख्याओं का उपयोग करना शुरू करेंगे, तो वे हम पर संदेह करेंगे और हमसे सवाल करेंगे. असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर मलिक ने सुझाव दिया कि जनता को भी नए कानूनों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए.