NEET UG 2024: क्या नीट (यूजी)-2024 की एग्जाम को लेकर हो रहा हंगामा कुछ कोचिंग इंस्टीट्यूट्स की साजिश है? सरकारी सूत्रों के मुताबिक, इस विवाद के पीछे वे कोचिंग इंस्टीट्यूट हो सकते हैं जिनके छात्रों का इस बार का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा.
सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 1,563 छात्रों को दिए गए ग्रेस मार्क्स वापस ले लिए गए हैं. इन छात्रों को अब राष्ट्रीय एग्जाम एजेंसी (एनटीए) द्वारा आयोजित रीटस्ट में शामिल होने का विकल्प दिया जाएगा. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने काउंसलिंग प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाई है.
न्यूज 18 पर छपी रिपोर्ट के अनुसार सरकारी सूत्रों का दावा है कि भले ही इस बार की एग्जाम पहले के मुकाबले काफी आसान थी लेकिन कुछ कोचिंग इंस्टीट्यूट पूरी एग्जाम प्रणाली पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं. गौर करने वाली बात ये है कि अभी तक पेपर लीक का कोई सबूत नहीं मिला है. सूत्रों ने कहा कि आसान प्रश्नपत्र और कम Syllabus से असली नुकसान कोचिंग सेंटर्स को हुआ है, जो सिलेबस की मुश्किलों और स्कोप का फायदा उठाते हैं, क्योंकि ऐसा होने पर ही छात्र उनकी कोचिंग लेने के बारे में सोचते हैं.
सूत्रों के मुताबिक जिन कोचिंग इंस्टीट्यूट्स के छात्र नीट (यूजी)-2024 में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सके उनके लिए यह स्थिति उनके छात्रों के बीच उनकी साख गिराने वाली है. ऐसे में ये कोचिंग इंस्टीट्यूट ही इस विवाद की अगुवाई कर रहे हैं, जबकि बाकी कोचिंग इंस्टीट्यूट इस मामले में चुप्पी साधे हुए हैं.
उल्लेखनीय है कि इस बार की NEET (UG) एग्जाम में लगभग 15% सिलेबस घटाया गया था, आवेदन करने वाले छात्रों की संख्या भी बढ़कर लगभग 23.3 लाख हो गई थी और कुल मिलाकर प्रश्नपत्र भी पहले के मुकाबले काफी आसान था. सूत्रों का कहना है कि आसान प्रश्नपत्र और कम सिलेबस असल में कोचिंग इंस्टीट्यूट्स के लिए नुकसानदेय साबित हुआ है.
ये इंस्टीट्यूट मुश्किल और विस्तृत पाठ्यक्रम के सहारे ही चलते हैं, क्योंकि मुश्किल पाठ्यक्रम होने पर ही छात्र इनकी सेवा लेते हैं. सरकारी सूत्रों के मुताबिक, नीट (यूजी)-2024 जैसी आसान एग्जाम व्यवस्था कोचिंग इंस्टीट्यूट्स को प्रभावित करती है, क्योंकि कम मुश्किल एग्जाम में छात्रों को व्यापक कोचिंग की कम जरूरत महसूस होती है.
इस बार एग्जाम को पूरा करने के लिए 20 अतिरिक्त मिनट दिए गए, जिसकी वजह से कट-ऑफ भी अधिक रहा. सूत्रों का कहना है कि कम सिलेबस होने से छात्र समय रहते अपनी पढ़ाई पूरी कर पाए और अच्छे से रिविजन कर सके, जिसके चलते उनका प्रदर्शन बेहतर रहा और अंक भी ज्यादा आए. गौरतलब है कि इस एग्जाम में शामिल होने के लिए कोई ऊपरी आयु सीमा नहीं है और प्रयासों की भी कोई सीमा नहीं है, जिसके कारण अनुभवी छात्र बाद के प्रयासों में बेहतर अंक प्राप्त कर लेते हैं. सूत्रों का यह भी कहना है कि कठिन प्रश्नपत्र कोचिंग इंडस्ट्री को फायदा पहुंचाते हैं, वहीं ग्रामीण छात्र जो महंगी कोचिंग का खर्च नहीं उठा सकते, ऐसे में उनका मुकाबला करना मुश्किल हो जाता है.
सरकार ने इसी फरवरी महीने में कठोर सार्वजनिक एग्जाम {(Tough Public Exams (Unfair Means Prevention)} अधिनियम लागू किया है. इस अधिनियम में कोचिंग इंस्टीट्यूट्स के कई महत्वपूर्ण पहलुओं को शामिल करते हुए विस्तृत दिशानिर्देश दिए गए हैं.
यह अधिनियम कोचिंग सेंटर्स को परिभाषित करता है, रजिस्ट्रेशन के लिए शर्तों और आवश्यक डॉक्यूमेंट्स को डिफाइन करता है, फीस से जुड़े मुद्दों को साफ करता है, कोचिंग सेंटर स्थापित करने के लिए बुनियादी ढांचे की पहले की जरूरतों को साफ करता है. कोचिंग सेंटर्स के लिए आचार संहिता स्थापित करता है, मेंटल हेल्थ के महत्व पर बल देता है. इतना ही नहीं यह अधिनियम कोचिंग सेंटर्स के अंदर काउंसलर्स और मनोवैज्ञानिकों (Psychologists) के रखने को प्रॉयरिटी देने की वकालत करता है, बैचों को अलग-अलग न करने और रिकॉर्ड बनाए रखने का भी प्रावधान करता है.
सरकारी सूत्रों का दावा है कि इसी वजह से कोचिंग इंस्टीट्यूट परेशान हैं और अब नीट-2024 विवाद के जरिए राष्ट्रीय एग्जाम एजेंसी की विश्वसनीयता को कम करने की कोशिश कर रहे हैं. चाहे जो भी हो, इस पूरे विवाद में सच्चाई क्या है, इसकी जांच की जा रही है. लेकिन एक बात तो साफ है कि मेडिकल शिक्षा क्षेत्र में सुधार लाने और ग्रामीण छात्रों को समान अवसर प्रदान करने के लिए उठाए गए कदमों का स्वागत किया जाना चाहिए.