Naxal in Chhattisgarh: भारत में नक्सलवाद एक गंभीर मुद्दा है. कई राज्य ऐसे हैं जो नक्सलवाद से प्रभावित हैं. इनसे निपटने के लिए सरकार तरह-तरह के ऑपरेशन को अंजाम दे रही है. सरकार की पहली कोशिश यही रहती है कि नक्सलवाद से जुड़े लोगों को समाज से जुड़े मुख्य धारा से जोड़ा जाए. यह वजह है कि नक्सली समूह से जुड़े कई लोग सरेंडर करके मुख्यधारा में आ चुके हैं. नक्सल संगठन में भर्ती होने के लिए लोगों को कई कुर्बानियां देनी पड़ती है. इसकी कहानी कुछ पूर्व माओवादियों ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से बताई है. अमित शाह बस्तर के दौरे पर गए तो उन्होंने कई पूर्व नक्सलवादियों से मुलाकात की थी.
अमित शाह से पूर्व माओवादियों ने बताया कि अगर नक्सल संगठन में शामिल कोई व्यक्ति शादी करना चाहता है तो उसे बहुत बड़ी कुर्बानी देनी पड़ती है, जिसकी वजह से उनकी जिदंगी तबाह हो जाती है.
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह रविवार को छत्तीसगढ़ के कई इलाकों में गए थे. इस दौरान उन्होंने कई पूर्व नक्सल परिवारों से मुलाकात भी की. इस दौरान पूर्व माओवादियों ने आपबीती सुनाई. उन्होंने बताया कि अगर कोई माओवादी शादी करना चाहता है तो उसे नसबंदी करानी पड़ती है. बिना नसबंदी के वह शादी नहीं कर सकता. ऐसे में कई लोग शादी करने के लिए कुर्बानी देते हैं.
कई सालों बाद खुद को सरेंडर करने वाले एक पूर्व नक्सलवादी ने बताया कि उसने शादी करने के लिए नसबंदी कराई थी. लेकिन कई सालों बाद उसने सरेंडर किया और अपना ऑपरेशन कराया और आज वह एक बच्चे का पिता भी है.
इस दौरान केंद्रीय मंत्री अमित शाह को एक पूर्व महिला माओवादी ने अपनी आपबीती सुनाई. उसका नाम सुकांति है. उसने बताया कि उसके पति को भी उससे शादी करने के लिए नसबंदी करानी पड़ी थी. नसबंदी के बाद उसकी जिंदगी तबाह हो चुकी थी. उसका पति एक मुठभेड़ में मारा गया. पति की मौत के बाद सुकांति ने पुलिस को सरेंडर कर दिया और खुद को समाज की मुख्यधारा से जोड़ा.
नक्सल संगठनों के विशेषज्ञ बताते हैं कि नसबंदी का आदेश देने का मुख्य कारण यह था कि किसी भी नक्सली के लिए परिवार और संतान के साथ भावनात्मक जुड़ाव का मतलब संगठन से अलग हो जाना हो सकता था. नक्सल नेताओं का मानना है कि यदि किसी नक्सली के पास परिवार और बच्चे होते हैं, तो वे आंदोलन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता खो सकते हैं. उनका मानना था कि जब तक नक्सलियों के पास कुछ खोने के लिए नहीं होता, वे आंदोलन में पूरी तरह से सक्रिय रहते हैं.
ऐसे में यदि वे शादी कर लेते हैं और बच्चों के पिता बनते हैं, तो उनका ध्यान परिवार पर जा सकता है, जिससे आंदोलन को कमजोर होने का खतरा बढ़ सकता है. यही कारण था कि शादी से पहले नसबंदी का फरमान जारी किया जाता था, ताकि नक्सलियों की मानसिकता पूरी तरह से आंदोलन के प्रति बनी रहे.