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लिव इन रिलेशनशिप में रहने का दावा नहीं कर सकते मुसलमान, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा?

Live in Relationship for Muslims: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि इस्लाम धर्म को मानने वाला कोई भी शख्स लिव-इन रिलेशनशिप में रहने का दावा नहीं कर सकता है, खासकर तब, जब पहले से उसकी कोई पत्नी हो.

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Edited By: India Daily Live
Muslim Couple

Live in Relationship for Muslims: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिससे इस विषय पर कानूनी स्थिति साफ हुई है. कोर्ट ने यह साफ किया है कि इस्लाम धर्म को मानने वाला कोई भी व्यक्ति, जो पहले से शादीशुदा है और उसका एक जीवित जीवनसाथी है, लिव-इन रिलेशनशिप में रहने का दावा नहीं कर सकता.

शादीशुदा मुस्लिम के साथ लिव इन में रहती थी महिला

यह फैसला उस वक्त सामने आया जब एक हिंदू महिला और एक मुस्लिम पुरुष, जो लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे थे, ने कोर्ट का रुख किया. याचिकाकर्ता चाहता था कि उसके खिलाफ दर्ज अपहरण के मामले को खत्म किया जाए और पुलिस उनके रिश्ते में दखल ना दे. हालांकि, सुनवाई के दौरान चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. कोर्ट को पता चला कि ये दोनों पहले भी अपनी सुरक्षा के लिए कोर्ट में अर्जी लगा चुके हैं. साथ ही यह भी साफ हुआ कि मुस्लिम पुरुष पहले से ही शादीशुदा है और उसकी एक पांच साल की बेटी भी है.

मुस्लिम पुरुष ने पत्नी को दिया था तीन तलाक

बाद में सुनवाई में यह भी बताया गया कि पत्नी को अपने पति के लिव-इन रिलेशनशिप से कोई दिक्कत नहीं है क्योंकि वो बीमार रहती हैं. लेकिन, इस कहानी में एक और मोड़ आया जब कोर्ट को बताया गया कि मुस्लिम पुरुष ने अपनी पत्नी को तीन तलाक दे दिया है.

इन उलटफेरों से भरी जानकारी के बाद अदालत ने माना कि यह याचिका असल में इस लिव-इन रिलेशनशिप को वैध ठहराने के लिए दायर की गई थी. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि किसी ऐसे व्यक्ति के लिए लिव-इन रिलेशनशिप का दावा करना स्वीकार्य नहीं है, जो पहले से शादीशुदा हो और उसका एक नाबालिग बच्चा भी हो. साथ ही, उसका धर्म भी इस तरह के रिश्ते की अनुमति नहीं देता.

लिव इन रिलेशनशिप को लेकर कोर्ट ने साफ किया अपना रुख

हालांकि, कोर्ट ने यह भी साफ किया कि अगर दो लोग अविवाहित हैं और अपनी मर्जी से साथ रहना चाहते हैं, तो मामला अलग हो सकता है. ऐसे में भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 उनकी रक्षा कर सकता है और सामाजिक मान्यताओं को प्राथमिकता नहीं दी जा सकती. अंत में, कोर्ट ने पत्नी और बच्चे के अधिकारों को ध्यान में रखते हुए याचिका खारिज कर दी.

गलत तरह से कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग न करें वकील

कोर्ट ने यह कहते हुए फैसला सुनाया कि लिव-इन रिलेशनशिप को जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती. साथ ही, यह भी कहा कि विवाह से जुड़े मामलों में संविधान और समाज में मानी जाने वाली नैतिकता के बीच संतुलन होना चाहिए. इस महत्वपूर्ण फैसले के अलावा, कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि पुलिस महिला को उसके माता-पिता के घर पहुंचाए और इस बारे में रिपोर्ट दे. 

साथ ही कोर्ट ने वकीलों को इस तरह से गलत जानकारी देकर कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग ना करने की चेतावनी दी है. इस फैसले से लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर कानून और सामाजिक धारणाओं के बीच संबंध को समझने में मदद मिलती है.