आदित्य कुमार/ नोएडा: उत्तर प्रदेश के अयोध्या में 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा के बाद भगवान राम की मूर्ति स्थापित होनी है. राम भक्तों के लिए यह दिन किसी सपने को साकार करने से कम नहीं है. आखिर पांच सौ साल से भी अधिक इंतजार के बाद यह दिन आ रहा है.
इस बीच माता सीता के बारे में चर्चा कम हो रही है और सीता माता के बिना भगवान राम की कल्पना कहां कर सकते हैं? तो हम आपको बताने जा रहे हैं माता जानकी के जन्म की वो कहानी जो अनसुनी है. उनका जन्म कहां हुआ? आखिर माता सीता नाम सीता क्यों पड़ा?
माता जानकी राजा जनक की पुत्री थी, राजा जनक विदेह राज्य के राजा थे, जो की अभी बिहार का उत्तरी क्षेत्र है. माना जाता है कि राजा जनक का राज्य विदेह (मिथिला क्षेत्र) विशाल था. जो कि समय के साथ अब कुछ क्षेत्र नेपाल में पड़ता है, कुछ क्षेत्र भारत में पड़ता है. उन क्षेत्रों में आज भी मैथिली भाषा बोली जाती है और माता सीता को धिया (बेटी) व भगवान राम को पाहून (जमाई) माना जाता है.
आचार्य पंडित मुकेश बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से आचार्य हैं, और मिथिला क्षेत्र में भगवान राम और सीता से जुड़े शोध में लगे हुए हैं. वो बताते हैं कि हिन्दू धर्म ग्रंथो के अनुसार त्रेता युग में राजा जनक का राज्य सबसे खुशहाल था. लेकिन एक बार भीषण अकाल पड़ गया, नागरिक बहुत परेशान थे. तब राजा जनक ने प्रजा को संबल देने के लिए खुद ही हल जोतने का सोचा. मुकेश मिश्र बताते हैं कि राजा जनक ने हल जोतना शुरू ही किया था कि हल के कोने से एक मिट्टी का बर्तन (मटका) टकराया और टूट गया. उसी मिट्टी के बर्तन में छोटी बच्ची मिली थी.
आचार्य पंडित मुकेश मिश्र कहते हैं कि उस मटके से जब नवजात बच्ची बाहर आई तो राजा जनक उसे अपने साथ अपने राज्य की राजधानी (जनकपुर नेपाल) लेकर चले गए. उस वक्त जनकपुर मिथिला राज्य में ही आते थे. पंडित बताते हैं कि आज भी जनकपुर में जानकी मंदिर स्थित है. आचार्य मुकेश बताते हैं कि जब बच्ची के नामकरण की बात आई तो राजा जनक ने बच्ची का नाम सीता रखा, क्योंकि हल के आगे के हिस्से को सीत कहते हैं और उस से टकरा कर भूमिजा (भूमि से उत्पन्न यानी सीता) का जन्म हुआ था अतः उनका नाम सीता रखा गया.
सीतामढ़ी के निवासी राम शरण अग्रवाल ने भगवान सीता राम, बौद्ध पर शोध कर रहे हैं. वो बताते हैं कि जो हल जोतने की बात राजा जनक की सामने आती है वो सीतामढ़ी जिला के हलेश्वर स्थान है. वृहद विष्णु पुराण के अनुसार सीतामही (अब सीतामढ़ी) के हलेश्वर स्थान से हल जोतते हुए राजा जनक अभी के सीतामढ़ी शहर तक (लगभग सात किलोमीटर) हल जोतते रहे थे. सीतामढ़ी के पुनौरा में माता सीता धरती से उत्पन्न हुई थी. आज भी वो स्थान वहां मौजूद हैं. त्रेता युग में उस जगह पर पुनरिक ऋषि मुनि का विशाल आश्रम हुआ करता था. अब उस जगह पर माता सीता की मंदिर बनाया गया है.
राम शरण अग्रवाल बताते हैं कि विष्णु पुराण में 23 श्लोक सीतामढ़ी के वैभव के बारे में है और छः श्लोक लक्ष्मणा नदी के बारे में हैं जो अभी लखनदेई नदी है. यह नदी सीतामढ़ी के बीचों बीच अभी भी बह रही है. अग्रवाल कहते हैं कि जैन ग्रंथों में भी यह उल्लेख मिलता है कि जहां सीता माता की जन्मस्थली है वहां बहुत बड़ा एक बरगद का पेड़ है और तालाब है. सीतामढ़ी के पुनौरा धाम में आज ये दोनों मौजूद हैं.