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India Daily

लोगों के पास खर्च करने के लिए पैसा नहीं, आर्थिक असमानता से निपटने के लिए बॉटम-अप एप्रोच अपनाए मोदी सरकार: कांग्रेस की अपील

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि देश के लोगों को लाभार्थी नहीं सशक्त नागरिक बनाना होगा. साथ ही देश में आर्थिक असमानता को खत्म करने के लिए सरकार को क्रोनीइज्म से हटकर बॉटम-अप एम्पावरमेंट पर ध्यान देना होगा.

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Edited By: Sagar Bhardwaj
Modi government should adopt bottom-up approach to deal with economic inequality Congress appeals

कांग्रेस पार्टी ने केंद्र की मोदी सरकार से आर्थिक नीतियों में बड़ा बदलाव लाने की मांग की है. पार्टी ने कहा कि देश में बढ़ती आर्थिक असमानता और कम खपत की समस्या से निपटने के लिए नीति-निर्माण का फोकस "क्रोनीइज्म" (खास लोगों को फायदा पहुंचाने) से हटाकर "बॉटम-अप एम्पावरमेंट" (निचले स्तर से सशक्तिकरण) की ओर बढ़ना चाहिए. कांग्रेस ने ग्रामीण आय को बढ़ाने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को लागू करने जैसे कदमों को इस दिशा में पहला कदम बताया है.

इंडस वैली एनुअल रिपोर्ट 2025 का दिया हवाला

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने वेंचर कैपिटल फर्म ब्लूम वेंचर्स की रिपोर्ट "इंडस वैली एनुअल रिपोर्ट 2025" का हवाला देते हुए भारत की आर्थिक स्थिति पर चिंता जताई. रिपोर्ट में भारत के आर्थिक परिदृश्य और स्टार्टअप इकोसिस्टम का विश्लेषण किया गया है. उन्होंने कहा कि भारत में प्रति व्यक्ति खपत व्यय केवल 1493 रुपये है, जो चीन के मुकाबले एक तिहाई से भी कम है. उन्होंने बताया कि दोपहिया वाहन, एयर कंडीशनर, जूते-चप्पल और फास्ट-मूविंग कंज्यूमर गुड्स (FMCG) जैसे आवश्यक जीवनशैली उत्पादों की खपत भी बेहद कम है. जहां वैश्विक स्तर पर बिकने वाले एयर कंडीशनरों में भारत की हिस्सेदारी 7% है, वहीं चीन की हिस्सेदारी 55% है.

आर्थिक असमानता की गहरी खाई
जयराम रमेश ने कहा कि भारत की "खपत करने वाली श्रेणी" (कंज्यूमिंग क्लास) सिर्फ 3 करोड़ परिवारों तक सीमित है, जो देश की आबादी का करीब 10% है. ये लोग ही बड़े पैमाने पर सामान और सेवाएं खरीद पाते हैं. इसके अलावा, 7 करोड़ परिवार एस्पिरेंट क्लास में आते हैं, जिनकी खरीदने की क्षमता सीमित है. सबसे चिंताजनक बात यह है कि 20.5 करोड़ परिवार, यानी करीब 1 अरब लोग, ऐसे हैं जिनके पास रोजमर्रा की जरूरतों से इतर कोई खर्च करने योग्य आय नहीं है.

विकास की कहानी सिर्फ सबसे अमीर वर्ग तक सीमित 
उन्होंने कहा कि खपत करने वाली श्रेणी बढ़ नहीं रही है. एयर पैसेंजर ट्रैफिक और दोपहिया वाहनों की बिक्री जैसे प्रमुख संकेतक स्थिरता दिखाते हैं. हाल के वर्षों के लगभग हर डेटा स्रोत ने पुष्टि की है कि भारत में असमानता बढ़ रही है और "विकास की कहानी सिर्फ सबसे अमीर वर्ग तक सीमित हो गई है."

लाभार्थी नहीं, सशक्त नागरिक बनाएं
रमेश ने केंद्र सरकार की नीतियों पर निशाना साधते हुए कहा, 'अधिकांश भारतीय केवल बुनियादी जरूरतों को ही वहन कर पाते हैं. सरकार की नजर में वे सिर्फ 'लाभार्थी' हैं, जो योजनाओं पर निर्भर हैं. उन्हें अधिकार-संपन्न आर्थिक नागरिक के रूप में नहीं देखा जाता. इस दलदल से निकलने का रास्ता नीति-निर्माण को क्रोनीइज्म से हटाकर निचले स्तर से सशक्तिकरण की ओर ले जाना है. इसके लिए सबसे पहले ग्रामीण आय को बढ़ाना होगा, जिसमें मनरेगा मजदूरी को मुद्रास्फीति से अधिक बढ़ाना शामिल है."

MSP को कानूनी दर्जा देना होगा
पार्टी के प्रवक्ता अभय दुबे ने एक अलग प्रेस कॉन्फ्रेंस में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को कानूनी गारंटी बनाने की कांग्रेस की पुरानी मांग को दोहराया. उन्होंने 17 दिसंबर 2024 को संसदीय स्थायी समिति ऑन एग्रीकल्चर (2024-25) की रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि जब तक MSP को कानूनी गारंटी नहीं दी जाती, तब तक किसानों को इसका पूरा लाभ नहीं मिलेगा.

दुबे ने कहा, "देश में सोयाबीन उत्पादन के दो बड़े राज्य हैं महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश, जहां 90% सोयाबीन पैदा होता है. महाराष्ट्र चुनाव के दौरान वहां के किसानों ने बताया कि सोयाबीन का समर्थन मूल्य 4,892 रुपये प्रति क्विंटल है, लेकिन उन्हें इससे भी कम कीमत मिल रही है. सरकार को इस पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए."

सरकार के सामने चुनौती
कांग्रेस का यह बयान भारत की आर्थिक नीतियों के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करता है. पार्टी का तर्क है कि जब तक ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत नहीं किया जाता और आम लोगों की क्रय शक्ति नहीं बढ़ाई जाती, तब तक देश की विकास गाथा अधूरी रहेगी. उनका कहना है कि मौजूदा नीतियां सिर्फ अमीर वर्ग को फायदा पहुंचा रही हैं, जबकि बहुसंख्यक आबादी पीछे छूट रही है.