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Mathura: बांके बिहारी मंदिर का चबूतरा या कब्रिस्तान, अब कोर्ट से होगा समाधान...जानें पूरा मामला

राम अवतार का कहना है कि बांके बिहारी मंदिर को हथियाने के लिए 70 साल से साजिश चल रही है. इसके लिए कागजों में हेर-फेर किया गया है. मामला मथुरा के शाहपुर गांव का है.

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Edited By: Abhiranjan Kumar
Mathura: बांके बिहारी मंदिर का चबूतरा या कब्रिस्तान, अब कोर्ट से होगा समाधान...जानें पूरा मामला

Mathura Mandir And Kabristan Dispute: मथुरा से करीब 60 किलोमीटर दूर शाहपुर गांव में एक पुराना चबूतरा है. इस चबूतरे के ऊपर मजार बनी हुई है. चबूतरे पर उगी घास और आसपास की झाड़ियां बताती हैं कि अब यहां कोई आता-जाता नहीं है. भले ही इस जगह पर कोई आता-जाता ना हो लेकिन चबूतरे के पास हर वक्त दो पुलिसकर्मी तैनात रहते हैं. गांव में रहने वाले हिंदू चबूतरे को बांके बिहारी मंदिर का अवशेष मानते हैं, जिसे मुगल बादशाह औरंगजेब के राज में तोड़ दिया गया था. वहीं मुस्लिम इस जगह कब्रिस्तान बताते हैं.

चल रही है साजिश

मंदिर और मजार के विवाद में एक नाम बेहद अहम है और वो है राम अवतार गुर्जर का. राम अवतार गुर्जर की याचिका पर ही हाईकोर्ट में सुनवाई हो रही है. राम अवतार का कहना है कि बांके बिहारी मंदिर को हथियाने के लिए 70 साल से साजिश चल रही है. इसके लिए कागजों में हेर-फेर किया गया है. गांव के ही एक शख्स बताते हैं कि 'गांव में पहले सिर्फ हिंदू रहते थे, बाद में हरियाणा के मेवात से मुसलमान आकर बस गए, तभी से उनकी आबादी बढ़ती गई और हिंदू कम हो गए.'

5 सितंबर को होगी सुनवाई

पिछले 3 साल से चल रहा ये विवाद अब इलाहाबाद हाईकोर्ट में है. सच क्या है इसे जानने के लिए 17 अगस्त, 2023 को हाईकोर्ट ने SDM को समन जारी किया था. 5 सितंबर को केस की अगली सुनवाई है, जिसमें जमीन से जुड़ी जानकारी साझा की जाएगी. छाता तहसील में आने वाला शाहपुर गांव उत्तर प्रदेश और हरियाणा बॉर्डर के पास है. गांव की आबादी करीब 6 हजार है, जिनमें आधे मुस्लिम हैं.

क्या कहते हैं रिकॉर्ड

राम अवतार बताते हैं, 'बांके बिहारी का मंदिर सदियों पुराना है. इसका रिकॉर्ड भी है. विवाद हुआ, तो हमने 1953 की खतौनी निकलवाई. उसमें खसरा नंबर 3217 में .36 डिसमिल या करीब 2.25 बीघा जमीन मंदिर के नाम है. 1962-64 में चकबंदी खत्म हुई, तो नया खसरा नंबर 1081 बना. इसमें भी जमीन बांके बिहारी के नाम ही दर्ज रही.' राम अवतार का आरोप है कि जमीन पर कब्जे की कोशिश 1970 में शुरू हुई थी. 1991 में एक बार फिर हेरा-फेरी हुई और मंदिर की जमीन को तालाब की जमीन बताकर दर्ज कर दिया गया, तब से कागजों में ये जमीन तालाब की जमीन बताई जा रही है.

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ऐसे सामने आई सच्चाई

राम अवतार गुर्जर कहते हैं कि समाजवादी पार्टी के बूथ अध्यक्ष रहे भोला पठान ने लेखपाल के साथ कागजों में हेरा-फेरी कर जमीन हथियाने की कोशिश की. हमें तो इसका पता ही नहीं चलता. अक्टूबर, 2019 में एक दिन सुबह-सुबह मुस्लिम पक्ष के लोग बुलडोजर लेकर आए और चबूतरे के पास बने ऐतिहासिक कुएं को तोड़ दिया. वो जमीन के चारों ओर कंटीले तार लगाने लगे. पता चला तो हम दौड़कर गए, बहसबाजी हुई, तब सभी अफसरों को बुलाया गया. फेंसिंग का काम रोक दिया गया. दिसंबर, 2019 में कुछ मुस्लिम वहां अगरबत्ती जला रहे थे, इस पर फिर विवाद हुआ.

बिहारी जी का सिंहासन तोड़ दिया गया

राम अवतार कहते हैं कि 15 मार्च, 2020 को चोरी-चुपके चबूतरे पर बना बिहारी जी का सिंहासन तोड़ दिया गया और मजार बना दी  गई. खबर हुई तो हम लोगों ने इकट्ठा होकर मजार तोड़ दी. पुलिस-प्रशासन के अधिकारी आ गए. पुलिस ने हमें अरेस्ट कर लिया. उसी रात चबूतरे पर फिर मजार बनवा दी गई. मामला बढ़ा तो मजिस्ट्रेट ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश देकर पुलिस की ड्यूटी लगा दी, तभी से यहां पुलिसवाले तैनात हैं.

सीएम को लिखा पत्र

राम अवतार कहते हैं, 'भोला पठान के लेटर पर आए आदेश के आधार पर लेखपाल ने 108/5 को 1081 कर दिया और खतौनी पर चढ़वा दिया. इससे जमीन कब्रिस्तान के नाम पर दर्ज हो गई और किसी को पता भी नहीं चला. अब हम कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे हैं. 2020 में मामला बढ़ गया, तो हमने अफसरों से शिकायत की. 19 मार्च, 2020 को मुख्यमंत्री को लेटर लिखा, लेकिन कुछ नहीं हुआ. इसके बाद हम जिलाधिकारीसे मिले, उन्होंने एक जांच कमेटी बनाई. कमेटी ने रिपोर्ट भी दी, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई. वक्फ बोर्ड से पूछा गया कि क्या ये जमीन आपके यहां दर्ज है, तो उसने भी मना कर दिया. उत्तर प्रदेश में मस्जिद और कब्रिस्तान की जमीन वक्फ बोर्ड में दर्ज रहती है, लेकिन इस जमीन के मामले में ऐसा नहीं था.'

अफसरों की मिलीभगत

राम अवतार सवालिया लिहाज में कहते हैं कि 'आजादी से पहले सरकारी कागजों में ये जमीन बांके बिहारी मंदिर के नाम पर दर्ज है, तो फिर कभी आबादी, कभी पोखर, कभी कब्रिस्तान के नाम कैसे दर्ज हो सकती है. अफसरों की मिलीभगत के बिना ऐसा नहीं हो सकता. गांव के लोग बताते हैं कि हमने अपने बड़े-बुजुर्गों से सुना था कि यहां बांके बिहारी का मंदिर था. बहुत साल पहले बाढ़ आई थी, उसमें मंदिर का ऊपर का हिस्सा बह गया, लेकिन चबूतरा और सिंहासन बचा था. हमारे सामने यहां पूजा होती थी, पर अब तीन साल से सब बंद है.

क्या कहते हैं मुस्लिम

विवादित जमीन को लेकर मुस्लिम पक्ष के लोगों का कहना है कि गांव में 25 से 30 घर पठानों के हैं. जिस जमीन को बांके बिहारी का मंदिर बताया जा रहा है, वहां हमारे बुजुर्ग दफन हैं. 2020 में हम लोग कब्रिस्तान की फेंसिंग कर रहे थे. दूसरे पक्ष के कुछ लोग आए और कहने लगे कि यहां से नाली के लिए रास्ता दो, तभी फेंसिंग करने देंगे. हमने कहा कि गंदे पानी के लिए रास्ता नहीं दे सकते, लेकिन आने-जाने का रास्ता रहेगा. इस पर उन लोगों ने हंगामा कर दिया कि मंदिर की जमीन पर कब्जा किया जा रहा है.

पंचायत के सामने रखे जाएं कागज

गांव के मुस्लिम इस बात से नाराज हैं कि विवाद में धर्म रक्षा संघ और विश्व हिंदू परिषद के लोग शामिल हो गए हैं. इससे बात बनने की बजाय बिगड़ गई. हालांकि, राम अवतार और मुस्लिम पक्ष के लोग दोनों कहते हैं कि पंचायत के सामने कागज रखे जाएं, जो सही हो, उसे जमीन का कब्जा मिल जाए.

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