Surrogacy Regulation Act: क्या है सरोगेसी रेगुलेशन एक्ट जिसको लेकर दिल्ली हाई कोर्ट पहुंचा शादीशुदा जोड़ा
Surrogacy Regulation Act: सरोगेसी विनियमन अधिनियम 2021 की धारा 4 (iii) (c) (i) को एक शादीशुदा जोड़े ने दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी. इस मामले पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सरकार को नोटिस जारी किया.
Surrogacy Regulation Act: दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को एक विवाहित जोड़े की सरोगेसी पर दायर याचिका पर केंद्र और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया. विवाहित जोड़ा सरोगेसी विनियमन अधिनियम 2021 की धारा 4 (iii) (c) (i) को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट पहुंचा था, जो सरोगेसी के लिए मां को एक निश्चित आयु सीमा तक सरोगेसी के जरिए मां न बनने के प्रतिबंधित करता है.
याचिका में कहा गया कि सरोगेसी रेगुलेशन एक्ट 2021 की धारा 4 (iii) (c) (i) भारत के संविधान के आर्टिकल 16 और आर्टिकल 21 का उल्लंघन करता है, जिसमें प्रजनन का अधिकार भी शामिल है. लेकिन सरोगेसी रेगुलेशन एक्ट 2021 किसी इच्छुक व्यक्ति के लिए प्रजनन के अधिकार पर रोक लगाता है, जो व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है.
शादीशुदा जोड़े ने राज्य-स्तरीय मेडिकल बोर्ड के 28 मार्च, 2023 के उस आदेश को भी याचिका में चुनौती दी जिसमें चिकित्सा संकेत के लिए प्रमाण पत्र जारी करने का आवेदन बिना किसी कारण के खारिज कर दिया गया था. कपल ने याचिका में कहा है कि इस तरह आवेदन को खारिज करना व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.
इस याचिका पर सुनवाई करते हुए बुधवार को दिल्ली हाई के न्यायमूर्ति मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने सरकार को नोटिस जारी करते हुए कहा कि सरोगेसी अधिनियम में आयु सीमा कुछ वैज्ञानिक आधार पर निर्धारित किया गया है.
कपल ने याचिका में कहा है कि वो 19 सालों से शादीशुदा हैं, लेकिन विवाह के बाद उनकी कोई संतान नहीं है. अभी तक वो बच्चे के स्नेह से वंचित हैं.
याचिकाकर्ताओं के सभी प्रयास व्यर्थ जाने के बाद, उन्होंने अपने डॉक्टरों की सलाह के मुताबिक IVF तकनीक के जरिए बच्चा करने का फैसला किया. डॉक्टरों की सलाह के अनुसार कपल ने मान्यता प्राप्त IVF में इलाज कराने का फैसला किया. लेकिन के डॉक्टर आईवीएफ तकनीक के जरिए भी कपल को संतान का सुख नहीं दे पाए. जिसके बाद कपल को सरोगेसी के जरिए बच्चा पैदा करने के लिए सलाह दी गई.
कपल ने याचिका में बताया कि उनके चिकित्सीय संकेत के लिए प्रमाण पत्र जारी करने के आवेदन को उपस्थित होने का कोई अवसर दिए बिना ही खारिज कर दिया. ऐसा करना न्यायिक सिद्धांत के खिलाफ है.