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India Daily

Independence Day Special: आजादी के बाद भी गुलामी की जंजीरों में जकड़ी थीं ये रियासतें, नहीं चलता था भारत सरकार का कानून

Independence Day Special: देश में 15 अगस्त 1947 के बाद भी कई रियासतें ऐसी थी जो भारत के आजाद होने के बाद भी एक तरह से गुलामी की जंजीर में जकड़ी हुई थी. आइए जानते हैं ये रियासते भारत में कब पूरी तरह से शामिल हुए.

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Edited By: Purushottam Kumar
Independence Day Special: आजादी के बाद भी गुलामी की जंजीरों में जकड़ी थीं ये रियासतें, नहीं चलता था भारत सरकार का कानून

नई दिल्ली: अंग्रेजों ने करीब 200 साल तक हमारे देश पर शासन किया. अंग्रेजी हुकूमत के आजादी पाने की चाहत हर भारतवासी को थी. इस गुलामी की जंजीर को तोड़ने के लिए लाखों लोगों ने अपने प्राणों की आहुति देने की ठानी और फिर सन 1947 में हजारों लोगों फिर की कुर्बानी देने के बाद 15 अगस्त 1947 को हमारा देश आजाद हुआ. हमारा देश 1947 को आजाद हुआ यह बात तो करीब - करीब लोगों को पता है हैं, लेकिन यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि आजादी मिलने के बाद भी कई ऐसे रियासतें थे जो कई सालों तक आजाद भारत में भी गुलाम रहे.

दरअसल, 15 अगस्त 1947 को जब देश को आजादी मिली तो दो देश बने थे भारत और पाकिस्तान. इस दौरान सभी रियासतों के सामने तीन विकल्प रखे गए थे, जिसमे पहला विकल्प भारत में शामिल होने का था, दूसरा विकल्प पाकिस्तान में शामिल होने का था और तीसरा विकल्प स्वतंत्र रहने का था. भारत को आजादी मिलने के बाद कुछ रियासत को स्वतंत्र शासन की चाहत थी. इसी कड़ी में भोपाल, हैदराबाद, जोधपुर, त्रावणकोर, और जूनागढ़ शामिल था. आइए जानते हैं ये रियासते भारत में कब पूरी तरह से शामिल हुए.

जूनागढ़ रियासत
देश की आजादी के समय जूनागढ़ के नवाब मोहम्मद महाबत खानजी को जूनागढ़ को भारत में शामिल होने का प्रस्ताव दिया गया तब उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया. बेजनीर भुट्टो के दादा शाहनवाज़ भुट्टो को मुस्लिम लीग और जिन्ना के इशारों पर यहां का दीवान बनाया गया था. जूनागढ़ आज भारत का हिस्सा हैं, लेकिन इसे कभी पाकिस्तान में विलय करने का ऐलान कर दिया गया था. ये कहानी है 1947 की तारीख थी 14 अगस्त जब यह ऐलान कर दिया गया था की जूनागढ़ को पाकिस्तान में विलय किया जाएगा. 

ये खबर जैसे ही सरदार पटेल तक पहुंची उन्होंने जूनागढ़ के दो बड़े प्रांत मांगरोल और बाबरियावाड़ पर सेना को भेजकर कब्जा कर लिया और फिर करीब तीन महीने के संघर्ष के बाद नवंबर में भारतीय सेना ने पूरी तरह से जूनागढ़ पर अपना कब्जा कर लिया. इसके बाद एक जनमत संग्रह करवाया गया जिसमें 90 प्रतिशत से ज्यादा लोगो ने जूनागढ़ को भारत में विलय करने का समर्थन किया. जिसके बाद 1948 में 20 फरवरी को जूनागढ़ पूरी तरह से भारत का हिस्सा बना और यह राज करने वाला महावत खान पाकिस्तान भाग गया.

जोधपुर रियासत
जोधपुर रियासत की अगर हम बात करें तो आपको यह जानकर हैरानी होगी की इस रियासत का राजा हिंदी था लेकिन इसके बावजूद भी वह जोधपुर को पाकिस्तान का हिस्सा बनाना चाहता था. दरअसल इसके पीछे की वजह यह थी की पाकिस्तानी जिन्ना की तरफ से जोधपुर के राजा हनवंत सिंह को कराची बंदरगाह पर पूरी तरह से नियंत्रण देने की बात कही गई थी. इस बात की जानकारी जब वल्लभभाई पटेल को लगी तो उन्होंने राजा हनवंत सिंह से मुलाकात की और उन्हें जिन्ना से बड़ा प्रस्ताव पेश किया और इसके साथ ही भारत में रहने को लेकर कई अन्य फायदे के बारे में बताया. वल्लभभाई पटेल अपने इस चल में कामयाब हो जिसके चलते जोधपुर आज पाकिस्तान का नहीं बल्कि भारत का हिस्सा है.

हैदराबाद रियासत
हैदराबाद का नवाब निजाम उस्मान अली खान था. निजाम की चाहत थी कि हैदराबाद को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में देखने को थी. जिन्ना के तरफ से भी निजाम को खुला समर्थन मिला हुआ था. निजाम पूरी तरह से पाकिस्तान और इंग्लैंड की कठपुतली था. जिन्ना की और से निजाम को इस बात का भरोसा दिया गया था की भारत के खिलाफ वह अपना जंग जारी रखे और अगर जरूरत पड़ी तो पाकिस्तानी की सेना उसका साथ देगी. दूसरी तरफ माउंटबेटन की इच्छा थी कि हैदराबाद भारत का हिस्सा हो जाए. तारीख थी 13 सितंबर साल था 1948 जब भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन पोलो' के तहत हैदराबाद पर आक्रमण किया और फिर चार दिन तक जारी संघर्ष के बाद निजाम ने सेना के सामने अपने हथियार डाल दिए और फिर हैदराबाद का भारत में विलय किया गया.

त्रावणकोर रियासत
आजादी के बाद त्रावणकोर का भी विलय नहीं किया गया था. इतिहासकारों की माने को भारत में विलय न करने की सलाह मोहम्मद अली जिन्ना की थी. जिसके बाद भारत में इस रियासत के दीवान और वकील सर सीपी रामास्वामी अय्यर ने विलय नहीं की थी. हालांकि, बाद में सीपी अय्यर के खिलाफ लोगों ने प्रदर्शन किया था और और इस दौरान उन पर जानलेवा हमला भी किया था जिसके बाद 30 जुलाई 1947 को उन्होंने इसे भारत में शामिल करने को लेकर सहमति जताई थी.

भोपाल रियासत
भोपाल रियासत के नवाब हमीदुल्लाह खान ने भी भारत में अपनी रियासत का विलय करने से इंकार कर दिया था. ऐसा कहा जाता है की इसके पीछे भी पाकिस्तान के जिन्ना का हाथ था. जानकारी के अनुसार यह के नवाब को जिन्ना की और से पाकिस्तान में सेक्रेटरी जनरल का पद भी ऑफर किया जा चुका था. भोपाल को भारत में शामिल करने को लेकर भारत सरकार और वहां के नवाब के बीच लंबी खींचतान चली और फिर नवाब ने 30 अप्रैल 1949 को भोपाल को भारत में विलय करने पर अपनी सहमति जता दी थी.