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India Daily

मनमोहन सिंह जैसा दूसरा नहीं होगा, जब भारत की संप्रभुता पर बात आई तो प्रधानमंत्री की कुर्सी की क़ुर्बानी देने से भी नहीं चुके

परमाणु हथियारों को लेकर लेफ्ट पार्टियों का रूख हमेशा ऐसा ही रहा है. जब भारत और अमेरिका के बीच परमाणु समझौता हो रहा था, तब भी सीपीएम और अन्य लेफ्ट पार्टियां इसका विरोध कर रही थीं. उनका तर्क था कि यह समझौता भारत की संप्रभुता पर असर डाल सकता है और इसके कारण देश की सुरक्षा पर भी खतरा आ सकता है

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Edited By: Gyanendra Sharma
manmohan Singh
Courtesy: Social Media

चुनावों के समय विवादों का उठना स्वाभाविक है, लेकिन हाल ही में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के एक चुनावी वादे ने राजनीति में नया बवाल खड़ा कर दिया है. सीपीएम ने अपने घोषणापत्र में यह वादा किया है कि अगर उनकी सरकार बनती है तो वे परमाणु हथियारों को नष्ट करने के लिए कदम उठाएंगे. इस वादे ने राजनीति के गलियारों में गर्मा-गर्म बहस छेड़ दी है. 

सीपीएम की यह कोई नई बात नहीं है. पार्टी शुरू से ही परमाणु हथियारों के खिलाफ रही है. पार्टी का मानना है कि परमाणु हथियारों का किसी भी देश के पास होना मानवता के लिए खतरे की बात है और यह शांति स्थापना में रुकावट डालते हैं. इस दृष्टिकोण के कारण ही सीपीएम ने पहले भी भारत के परमाणु कार्यक्रम और परमाणु परीक्षणों पर सवाल उठाए थे.

मनमोहन सरकार में परमाणु समझौता

परमाणु हथियारों को लेकर लेफ्ट पार्टियों का रूख हमेशा ऐसा ही रहा है. जब भारत और अमेरिका के बीच परमाणु समझौता हो रहा था, तब भी सीपीएम और अन्य लेफ्ट पार्टियां इसका विरोध कर रही थीं. उनका तर्क था कि यह समझौता भारत की संप्रभुता पर असर डाल सकता है और इसके कारण देश की सुरक्षा पर भी खतरा आ सकता है. लेफ्ट पार्टियों ने इसे एक तरह से भारत के परमाणु आत्मनिर्भरता के खिलाफ बताया था.

विजय गोखले ने किताब में किया दावा

विदेश सचिव रहे विजय गोखले की दो साल पहले एक किताब आई थी. 'द लॉन्ग गेमः हाउ द चाइनीज नेगोशिएट विद इंडिया. इस किताब में उन्होंने दावा किया, 'लेफ्ट पार्टियों ने परमाणु समझौते का विरोध करने का फैसला चीन की वजह से लिया था. 2008 में चीन ने भारत में लेफ्ट पार्टियों के साथ अपने करीबी संबंधों का इस्तेमाल किया. उसने भारत-अमेरिका के बीच परमाणु समझौते को तोड़ने के लिए भारत के अंदर राजनीतिक विरोध शुरू करवाया था.किताब में दावा किया है कि चीन ने भारत में लेफ्ट पार्टियों और लेफ्ट की ओर झुकाव वाली मीडिया के जरिए परमाणु समझौते में अड़ंगा डालने की कोशिश की. 

अमेरिका से ही न्यूक्लियर डील

सीपीआई और सीपीएम  शरू से ही अमेरिका से ही न्यूक्लियर डील का विरोध करता रहा है.जब बुश 2006 में भारत दौरे पर आए थे. तब केरल और बंगाल में विधानसभा चुनाव भी होने ही थे,लेफ्ट पार्टियां ने दोनों राज्यों में वापसी की. चुनाव नतीजों के बाद मनमोहन सरकार को बाहर से समर्थन दे रहीं लेफ्ट पार्टियों ने परमाणु समझौते से बाहर हटने का दबाव बनाना शुरू कर दिया.

2006 में जब बुश भारत दौरे पर आए थे, तब केरल और बंगाल में विधानसभा चुनाव भी होने ही थे. इसलिए लेफ्ट पार्टियां थोड़ी शांत रहीं. लेकिन दोनों ही राज्यों में जोरदार वापसी ने लेफ्ट पार्टियों को खुलकर विरोध करने का मौका दे दिया.लेफ्ट पार्टियों के नेता सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी देने लगे, लेकिन मनमोहन सिंह देश हित में लिए फैसले से पीछे नहीं हटे. 

सीपीएम के घोषणापत्र में किए गए इस वादे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. उन्होंने इसे 'खतरनाक' करार दिया है. पीएम मोदी ने एक रैली में कहा, "भारत जैसे देश, जिसके दोनों पड़ोसियों के पास परमाणु हथियार हों, क्या उस देश में परमाणु हथियार खत्म करना ठीक होगा?" मोदी का यह बयान इस बात पर जोर देता है कि भारत की सुरक्षा के संदर्भ में परमाणु हथियारों का महत्व है, खासकर तब जब उसके पड़ोसियों के पास भी ये अस्तित्व में हों.