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आज 3 मई है... मैं मणिपुर बोल रहा हूं, मेरे 226 बच्चे बिना वजह मारे गए, 60 हजार भटक रहे...मेरी कहानी सुनोगे?

Manipur Violence One Year: मैं मणिपुर बोल रहा हूं. आज 3 मई है. पिछले साल आज के ही दिन मेरे दो बेटे आपस में भिड़ गए. उन्हें न तो कोई समझा पा रहा है, न वे खुद समझ पा रहे हैं. हालात ये हैं कि मेरे सैकड़ों बच्चे मारे जा चुके हैं, सैकड़ों घायल हैं, हजारों लापता और बेघर हो गए हैं. क्या आप मेरी कहानी सुनेंगे?

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Edited By: India Daily Live
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Manipur Violence One Year: पिछले साल यानी 2023 में 2 मई तक सबकुछ सही था, लेकिन अचानक 3 मई को मेरे बच्चों को पता नहीं क्या हुआ कि वे एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए. अगर कोई मसल था, तो उन्हें आपस में बैठना चाहिए था. मेरे बड़े और जिम्मेदार बेटों को उन्हें बैठाकर आपस में सलाह-मशवीरा करना चाहिए था. लेकिन पता नहीं किसी ने मेरे बच्चों को समझाया नहीं, या फिर वे खुद नहीं समझ पाए और धीरे-धीरे पूरा मणिपुर तबाह होने लगा. गली-गली, चौक-चौराहों पर गाड़ियां जलने लगीं, गोलियां चलने लगीं, लोगों के घर फूंके जाने लगे... आज भी ये सब बदस्तूर जारी है. मैं मणिपुर हूं, आइए, आपको अपनी कहानी सुनाता हूं.

दरअसल, पिछले साल आज के ही दिन यानी 3 मई को मेरे दो बच्चे मैतेई और कुकी आपसे में भिड़ गए. देखते ही देखते छोटी सी बात बड़ी हिंसा में तब्दील हो गई. हिंसा भी ऐसी कि पहले तीन दिनों में ही 52 लोगों की मौत हो गई.पिछले एक साल में धीरे-धीरे ये संख्या बढ़ती गई और अब तक मेरे मारे गए बच्चों की संख्या 226 हो गई है. आप सोचिए कि मैं अपने बच्चों की लाश को लेकर कैसे रह रही हूं. जरा ये भी सोचिएगा कि मारे गए मेरे बच्चों में 20 महिलाएं और 8 बच्चे भी शामिल हैं. आखिर इनका कसूरवार कौन है? इनकी मौत के लिए जिम्मेदार कौन है, कोई जवाब नहीं देता. क्या आपके पास कोई जवाब है?

Manipur marks one year of conflict: Counting the cost — amid tears

अब आगे सुनिए... मेरे 28 बच्चे तो ऐसे हैं, जिनका कुछ पता नहीं चल रहा है कि उन्हें जमीन निगल गई या फिर आसमान खा गया? मेरे बच्चों की आपस की लड़ाई में अब तक 1500 से अधिक घायल हुए हैं और करीब 60 हजार से ज्यादा इधर-उधर भटक रहे हैं. मेरे बच्चों के बनाए हुए करीब 13 हजार से अधिक आशियानें इस नफरत की तूफान में तबाह हो गए हैं. हालत ऐसी हो गई कि चुराचांदपुर, कांगपोकपी और मोरेह जैसे कुकी-ज़ोमी बहुल क्षेत्रों में रहने वाले मैतेई लोगों को मैतेई-बहुसंख्यक घाटी में ले जाया गया. मेरे कई बेटे तो पड़ोसी राज्य मिजोरम या देश के किसी और शहर या राज्य में चले गए और मुझे संतुष्टि है कि वे वहां चैन की सांस ले रहे होंगे.

अब जान लीजिए कि इन दिनों मैं किन हालातों से गुजर रही हूं

अधिकारियों की बातों से तो यही लग रहा है कि समय के साथ हिंसा का स्तर कम हुआ है, लेकिन ये कितना सच है, ये आपको भी पता है. अभी भी कुछ-कुछ समय के बाद मेरे अंदर हिंसा की चिंगारी भड़क जाती है. कोई न कोई बच्चा काल के गाल में समा जाता है. 13 अप्रैल के बाद से तो हिंसा की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं. बात कांगपोकपी जिले में दो बेटों की हत्या की हो या फिर बिष्णुपुर जिले के सीआरपीएफ चौकी पर हमले की... जहां सीआरपीएफ के दो जवानों की निर्मम हत्या कर दी गई.

Manipur marks one year of conflict: Counting the cost — amid tears

मेरे बच्चों की लड़ाई में 16 जवानों के घर भी उजड़ गए...

राज्य में जारी हिंसा के बीच मारे गए लोगों में 16 सीआरपीएफ और राज्य पुलिस के जवान हैं, जिनके घर उजड़ गए. आखिर इनका क्या कूसर था. ये तो मुझे संवारने और मेरे बच्चों के झगड़े को सुलझाने आए थे, लेकिन मेरे बच्चों को समझाने के चक्कर में अपने परिवार की भी चिंता नहीं की और बेचारे... मेरा एक सवाल ये है कि आखिर ये सब कुछ कब थमेगा? क्योंकि कुछ अधिकारी बता रहे हैं कि उनका अनुमान है कि सुरक्षाकर्मियों से लूटे गए करीब 2000 हथियार तो बरामद कर लिए गए हैं, लेकिन 4000 हथियार अभी भी मेरे कुछ ऐसे बेटों के हाथ में हैं, जो बिगड़ैल हैं. जिन्हें दूसरों की जान की जरा भी परवाह नहीं. अब ये इन हथियारों का कहां और कैसे यूज करेंगे, ये तो वो ही जानें. लेकिन अगर इन्हें नहीं रोका गया तो...

ऐसे लोग जिन्होंने मैतेई और कुकी समुदाय की जिम्मेदारी ली है, उनका कहना है कि मेरे दो टुकड़े कर दिए जाएं. हम एक साथ नहीं रह सकते हैं. अब आप बताइए, ये कितना और कैसे उचित है, कैसे और कितना संभव है?