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जिस अफीम के लिए बदनाम था मणिपुर, वहीं सिमटने लगी अवैध खेती, समझिए कैसे

मणिपुर में अवैध अफीम की खेती का दायरा अब सिमट रहा है. साल 2022 से 2023 की तुलना में साल 2023 से 2024 के दौरान खेती में 32.13 प्रतिशत तक की गिरावट देखी गई है. मणिपुर में हिंसा के साथ-साथ अवैध ड्रग की तस्करी सरकार के लिए चुनौती रही है. राहत की बात ये है कि सरकार की पहल के बाद अब धीरे-धीरे इसकी खेती लोग छोड़ रहे हैं.

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Edited By: India Daily Live
Poppy Cultivation in Manipur
Courtesy: Social Media

मणिपुर की सबसे बड़ी चुनौती क्या है? मैतेई-कुकी की जंग, अवैध हथियार या ड्रग? यह आप तय नहीं कर पाएंगे. मणिपुर के स्थानीय लोग कहते हैं दो समुदायों के बीच टकराव की एक वजह अफीम की अवैध खेती भी है. पहाड़ी हिस्से में बसे लोग, अफीम की खेती करते हैं और बड़े पैमाने पर इसकी अवैध तस्करी होती है. 3 मई 2023 के बाद से मणिपुर सुलग रहा है. मैतेई और कुकी समुदायों के बीच जानलेवा जंग आए दिन भड़कती है. इन सब के बाद भी राहत की बस इतनी ही खबर है कि यहां अब अफीम की खेती में गिरावट देखी गई है. 

MARSAC ने साल 2021 में इस सर्वे की शुरुआत की थी. मणिपुर की एन बीरेन सरकार, 'वार ऑन ड्रग' नाम से एक कैंपेन चला रही है. यह स्टडी, सितंबर 2023 से लेकर जनवरी 2024 के बीच की गई. मणिपुर रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर (MARSAC) ने अपने एक सर्वे में दावा किया है कि मणिपुर में अवैध अफीम की खेती हाशिए पर है. 4 साल में लगातार इसमें गिरावट देखी जा रही है. अवैध अफीम की खेती पर लगाम लग रही है.

कैसे पता चला सिमट रही अफीम की खेती? 

हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक सितंबर 2023 से लेकर जनवरी 2024 तक के बीच अफीम की खेती वाले इलाकों की मैपिंग की गई. रिपोर्ट में अफीम की खेती में 2022-2023 में 16,632.29 एकड़ से 2023-2024 में 11,288.07 एकड़ तक की गिरावट दिखाई गई है. अवैध अफीम की खेती 9 पहाड़ी जिलों में होती है. ये जिले चंदेल, चुराचांदपुर, कामजोंग, कांगपोकपी, नोनी, सेनापति, तामेंगलोंग, टेंग्नौपाल और उखरुल हैं.

साल 2022-2023 में इन 9 पहाड़ी जिलों में 16,890 एकड़ से ज्यादा अफीम की खेती की गई थी. चुराचांदपुर, चंदेल, कामजोंग, सेनापति, तामेंगलोंग, टेंग्नौपाल और उखरुल शामिल थे. अगर आंकड़ों का विश्लेषण करें तो साल 2023-2024 में अफीम की खेती साल 2022-2023 की तुलना में 32.13 प्रतिशत तक सिमट गई है. 

MARSAC की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि साल 2021-2022 के दौरान 8 जिलों के 28,598.91 एकड़ जमीन में अफीम की खेती हुई थी. मणिपुर का कांगपोकपी जिला अफीम की खेती का एपिसेंटर रहा, जहां करीब 9,517.90 एकड़  खेती गई. 

जिलेवार समझिए कैसे अफीम की खेती पर लगी लगाम

- चूराचांदपुर और कांगपोकपी जिलों में अफीम की खेती का दायरा सिमटा है. अफीम की खेती साल 2021-2022 में 6,688.61 एकड़ से घटकर 2022-2023 में 4,062.04 एकड़ तक आ गई. साल 2021-2022 में 9,517.90 एकड़ से घटकर 2022-2023 में 5,407.47 एकड़ तक इसका दायरा सिमटा.

- तामेंगलोंग जिले में 2022-2023 में लगभग 96.06 एकड़ अफीम की खेती हुई थी. नोनी जिले में अफीम की खेती नहीं होती है. साल 2022 से 2023 के बीच यहां 132 एकड़ जमीन पर अफीम की खेती की गई. 

- सर्वे में यह सामने आया है कि फेरजावल, मणिपुर का इकलौता जिला ऐसा है, जहां अफीम की अवैध खेती नहीं होती है. 

- नारकोटिक्स एंड अफेयर्स ऑफ बॉर्डर (NAB) की एक आधिकारिक रिपोर्ट ने MARSAC के सर्वे पर मुहर लगाई है. अफीम की खेती को रोकने की कोशिशें साल 2017 से ही जारी हैं. अफीम की खेती वाली अब तक 19,135.50 एकड़ जमीनों को खाली कराया जा चुका है.