Maharashtra Politics: ये रिश्ता क्या कहलाता है? BJP दफ्तर में चव्हाण को 'याद' आई कांग्रेस, पढ़ें पुरानी पार्टी से 'तलाक' की वजहें

Maharashtra Politics: 2018 से कार्यवाही पर सुप्रीम कोर्ट की रोक के कारण, सीबीआई मामले में सुनवाई अभी तक शुरू नहीं हुई है. इस बीच, ईडी ने अपने मामले में न तो कोई गिरफ्तारी की और न ही आरोप पत्र दायर किया है.

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Maharashtra Politics: महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण आज यानी मंगलवार को भाजपा ज्वाइन करने महाराष्ट्र BJP के कार्यालय पहुंचे. इस दौरान उनको अचानक कांग्रेस की 'याद' आ गई. दरअसल, भाजपा ज्वाइन करने के दौरान चव्हाण के साथ महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम और भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस भी उनके साथ थे. भाजपा में शामिल होने के बाद जब अशोक चव्हाण मीडिया से बात कर रहे थे, तब उनकी जुबान फिसल गई और उन्होंने गलती से मुंबई भाजपा चीफ आशीष शेलार को मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष बता दिया. उन्होंने कहा कि मैं मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष को धन्यवाद देता हूं.

अशोक चव्हाण ने जैसे ही ये बातें कही, पास बैठे देवेंद्र फडणवीस ने उन्हें टोका, जिसके बाद ठहाकों का दौर शुरू हो गया. बाद में गलती के लिए माफी मांगते हुए चव्हाण ने कहा कि मैं अभी (भाजपा में) शामिल हुआ हूं. कांग्रेस में 38 साल बिताने के बाद मैं भाजपा में शामिल होकर एक नई यात्रा शुरू कर रहा हूं. उन्होंने कहा कि बीजेपी कार्यालय में ये मेरी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस है, कृपया इस बात को समझें. भाजपा ज्वाइन करने के पीछे की वजहों के बारे में बात करते हुए कहा कि ये मेरा निजी फैसला है. किसी ने मुझे भाजपा में शामिल होने के लिए नहीं कहा है. हालात ऐसे बन गए कि मुझे प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में देश के विकास के लिए ये फैसला लेना पड़ा.

सोशल मीडिया पर लोग उठा रहे सवाल 

भाजपा दफ्तर में कांग्रेस छोड़ने और BJP ज्वाइन करने की वजहों के बारे में भले ही अशोक चव्हाण ने कुछ भी कहा हो, लेकिन कांग्रेस समेत विपक्षी पार्टियां पूर्व मुख्यमंत्री के फैसले पर सवाल उठा रही हैं. महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने एक दिन पहले यानी सोमवार को कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दिया था. अशोक चव्हाण के साथ कांग्रेस के पूर्व एमएलसी अमर राजुरकर भी आज भाजपा में शामिल हो गए. 

दरअसल, भाजपा ज्वाइन करने वाले अशोक चव्हाण के खिलाफ तीन बड़े मामले लंबे समय से कोर्ट में पेंडिग हैं. इनमें से दो केस 2011 के आदर्श सहकारी हाउसिंग सोसाइटी मामले से जुड़े हैं. एक मामला CBI के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो यानी ACB की ओर से दायर किया गया है, जबकि दूसरा मामला प्रवर्तन निदेशालय यानी ED की ओर से दायर किया गया था.

तीसरा, यवतमाल में चव्हाण समेत 15 लोगों के खिलाफ कथित तौर पर जमीन हड़पने का मामला दर्ज किया गया है. इस मामले में भी कानूनी रूप से कोई प्रगति नहीं हुई है. ACB ने 2011 में भारतीय दंड संहिता (IPC) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत धोखाधड़ी, आपराधिक साजिश और जालसाजी समेत विभिन्न आरोपों पर एक FIR दर्ज की थी. मामले में संदिग्धों की शुरुआती सूची में पूर्व सीएम समेत 13 नाम थे.

आदर्श सहकारी हाउसिंग सोसाइटी मामला क्या है?

एसीबी की ओर से दायर मामले में, रक्षा मंत्रालय से शिकायत मिलने के बाद CBI ने जांच शुरू की थी, जिसमें आरोप लगाया गया कि कोलाबा में सार्वजनिक पदों के दुरुपयोग और दस्तावेजों के निर्माण के माध्यम से आदर्श सहकारी हाउसिंग सोसाइटी के लिए अवैध रूप से जमीन आवंटित की गई थी. FIR में आरोप लगाया गया कि चव्हाण 2000 में राज्य के राजस्व मंत्री थे और उन्होंने अन्य आरोपियों के साथ साजिश रची.

ये सोसायटी सबसे पहले रक्षा बलों में शामिल लोगों या उनके रिश्तेदारों के लिए प्रस्तावित की गई थी. आरोपों के बाद चव्हाण को 2010 में मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था. हालांकि, उन्होंने दावों का विरोध किया और इस बात से इनकार किया कि सोसायटी को मंजूरी देने के लिए कोई लाभ उठाया गया और न ही कोई अवैध कदम उठाया गया.

मामले में चव्हाण को राहत देते हुए, 22 दिसंबर 2017 को जस्टिस रंजीत वी मोरे और साधना एस जाधव की खंडपीठ ने महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल सी विद्यासागर राव की ओर से पारित उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें पूर्व सीएम के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सीबीआई को मंजूरी दी गई थी. 

2018 में सीबीआई ने आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में की अपील

2018 में सीबीआई ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जो अभी भी लंबित है. अलग-अलग कार्यवाही में, चव्हाण ने पहले भी ट्रायल कोर्ट के समक्ष मामले से अपना नाम हटाने के लिए आवेदन किया था. लेकिन कोर्ट की ओर से याचिका खारिज कर दी गई थी. आदेश के खिलाफ अपील करने वाली चव्हाण की अलग-अलग याचिकाएं भी 2014 और 2015 में हाई कोर्ट की ओर से खारिज कर दी गई थीं. फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया. जनवरी 2018 में, जस्टिस जे चेलमेश्वर और एसके कौल की बेंच ने मुंबई में एक विशेष न्यायाधीश के समक्ष लंबित सीबीआई मामले में कार्यवाही पर रोक लगा दी. रोक अभी भी जारी है और मामले में कोई प्रगति नहीं हुई है. अदालत ने अभी तक सीबीआई की ओर से दायर आरोपपत्र पर संज्ञान नहीं लिया है.

ED ने भी 2012 में मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया था. मामले में कोई गिरफ्तारी नहीं हुई और कोई आरोपपत्र दायर नहीं किया गया. 29 अप्रैल 2016 को, हाई कोर्ट ने केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय (MoEF) को 31 मंजिला इमारत को तुरंत ध्वस्त करने का आदेश दिया. खंडपीठ ने केंद्र और राज्य सरकार को संबंधित नौकरशाहों, मंत्रियों और राजनेताओं के खिलाफ कानून के अनुसार उचित नागरिक या आपराधिक कार्यवाही शुरू करने पर विचार करने का निर्देश दिया.

हालांकि, आदर्श हाउसिंग सोसाइटी के अनुरोध पर, बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील दायर करने के लिए अपने आदेश पर 12 सप्ताह के लिए रोक लगा दी. जुलाई 2016 में SC ने हाउसिंग सोसाइटी को अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया और केंद्र के सैन्य संपदा निदेशालय को अपील के लंबित रहने तक जमीन और इमारत पर कब्जा करने के लिए कहा, जिस पर अभी तक फैसला नहीं हुआ है. केंद्र ने आश्वासन दिया कि जब तक शीर्ष अदालत विवाद का फैसला नहीं कर लेती तब तक कोई विध्वंस नहीं होगा.

क्या है यवतमाल मामला?

यवतमाल में दायर मामले में, 26 जून 2015 को बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच के जस्टिस एबी चौधरी और पीएन देशमुख की खंडपीठ ने जवाहरलाल दर्डा एजुकेशन की ओर से कथित अतिक्रमण के मामले में चव्हाण और अन्य की याचिका खारिज कर दी. पीठ ने यवतमाल के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के फैसले को चुनौती देने वाली चव्हाण और अन्य की आपराधिक याचिका खारिज कर दी, जिन्होंने अतिक्रमण को अवैध बताया था. मजिस्ट्रेट ने एक आरटीआई कार्यकर्ता की मांग के अनुसार एफआईआर दर्ज करने का भी आदेश दिया.

शिकायत के अनुसार, शिक्षा सोसायटी ने 1990 के दशक की शुरुआत में लगभग 1,000 वर्ग मीटर भूमि पर एक अंग्रेजी माध्यम स्कूल और एक विशाल परिसर की दीवार का निर्माण किया. हाई कोर्ट ने माना कि जांच अवश्य की जानी चाहिए क्योंकि इसमें लगभग चार साल की देरी हो चुकी है. यह देखते हुए कि आवेदक अत्यधिक प्रभावशाली व्यक्ति थे, अदालत ने राज्य के गृह विभाग से जांच की निगरानी के लिए एक उच्च स्तरीय अधिकारी नियुक्त करने और इसे चार महीने के भीतर पूरा करने को कहा. इसमें कहा गया है कि आवेदकों ने बिना किसी औचित्य के इतने वर्षों तक जांच में देरी की है. भगवान ही जानें कि इन आम लोगों को राहत देने के लिए कब पूरा अतिक्रमण हटाया जाएगा. शिकायतकर्ता आरटीआई कार्यकर्ता दिगंबर पजगड़े का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील एसएन ततवावाड़ी ने कहा कि रिपोर्ट जमा नहीं की गई है और मामले में कोई प्रगति नहीं हुई है.