Maharashtra Mid-Day Meal: महाराष्ट्र सरकार का हाल ही में लिया गया निर्णय, जिसमें मिड-डे मील योजना के तहत स्कूलों में अंडे और बाजरे से बनी मिठाई जैसी खास डिश के लिए ₹50 करोड़ की फंडिंग में कटौती की गई है. इसके बाद बड़ा विवाद खड़ा हो गया है. इस निर्णय को लेकर सरकार पर कई सवाल उठ रहे हैं, खासकर बच्चों के पोषण और शिक्षा के अधिकार के संदर्भ में. यह कदम महाराष्ट्र सरकार द्वारा गरीब और पिछड़े क्षेत्रों में बच्चों के पोषण संकट को और बढ़ाने वाला माना जा रहा है.
महाराष्ट्र सरकार के इस निर्णय के मुताबिक, अंडा पुलाव और मीठा खिचड़ी/नाचनी सतिया जैसे खास डिश अब वैकल्पिक रूप में उपलब्ध कराए जाएंगे. सरकारी आदेश में कहा गया है कि इन व्यंजनों से मिलने वाले पोषण और चीनी की आपूर्ति सार्वजनिक भागीदारी के माध्यम से की जाएगी. इसका मतलब यह है कि अब इन व्यंजनों के लिए कोई अतिरिक्त फंडिंग नहीं दी जाएगी.
महाराष्ट्र में 2024-25 के राज्य बजट में यह बताया गया कि राज्य सरकार केवल 0.04% अपने कुल खर्च से प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण योजना (PM-POSHAN) पर खर्च करेगी, जो स्कूलों में बच्चों को पोषक आहार उपलब्ध कराती है. यह योजना केंद्रीय सहायता के साथ राज्य स्तर पर चल रही है. लेकिन, राज्य सरकार का इस पर खर्च पिछले चार वर्षों में 1% से भी कम रहा है, और यह आंकड़ा लगातार घटता जा रहा है.
महाराष्ट्र में नवंबर 2023 में मिड-डे मील में अंडे को शामिल किया गया था, जो राज्य में इस योजना की शुरुआत के बाद दो दशकों तक नहीं हुआ था. हालांकि, अब राज्य सरकार ने महज एक साल के भीतर अंडे को इस योजना से बाहर करने का फैसला लिया है. इस कदम से खासतौर पर बच्चों को मिलने वाले प्रोटीन की आपूर्ति पर असर पड़ने की संभावना है, क्योंकि अंडे मिड-डे मील के एक महत्वपूर्ण और सस्ती सोर्स है.
महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि यह निर्णय वित्तीय संकट के कारण लिया गया है. राज्य ने वित्तीय घाटे को अपने सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) के अनुपात में 3% से नीचे बनाए रखने का प्रयास किया है और यह निर्णय उसी की एक कड़ी के रूप में देखा जा रहा है. हालांकि, विशेषज्ञों और एनजीओ का कहना है कि महाराष्ट्र जैसे समृद्ध राज्य के लिए वित्तीय संकट का तर्क सही नहीं है.
'अन्न अधिकार अभियान' नामक एक एनजीओ ने इसे वित्तीय कंगाली के रूप में खारिज किया और कहा कि एक समृद्ध राज्य द्वारा एक महत्वपूर्ण योजना में कटौती करना बिल्कुल गलत है. यह निर्णय ऐसे समय में लिया गया है जब राज्य में बच्चों के कुपोषण की स्थिति काफी गंभीर है.
महाराष्ट्र में कुपोषण की स्थिति बेहद चिंताजनक है. नीति आयोग के आंकड़ों के अनुसार, 2019 तक 35% बच्चों का वजन सामान्य से कम था, जबकि 36% बच्चे शारीरिक रूप से अविकसित थे. यह आंकड़े 2015-16 से अब तक लगभग समान बने हुए हैं. इन बच्चों के लिए मिड-डे मील के रूप में मिलने वाला पोषण एक महत्वपूर्ण सहारा था.
इसके अलावा, गरीब परिवारों के लिए बच्चों के लिए अंडे खरीदना एक बड़ा खर्च हो सकता है, खासकर जब खाद्य कीमतों में लगातार वृद्धि हो रही हो. 2023 और 2024 के बीच खाद्य मूल्य सूचकांक ने 8% से अधिक की महंगाई दर दिखाई है, जो गरीब परिवारों पर अतिरिक्त बोझ डाल रही है.
महाराष्ट्र सरकार के इस कदम की विपक्ष ने कड़ी आलोचना की है. कांग्रेस के प्रवक्ता अतुल लोंधे ने इसे आर्थिक और मानसिक दिवालियापन करार दिया है और कहा कि यह निर्णय बच्चों के लिए एक बड़ा झटका है. वहीं, शिवसेना (UBT) के विधायक आदित्य ठाकरे ने भी इस फैसले को जनविरोधी बताते हुए कहा कि यह सरकार उन बच्चों के हक को मार रही है जिनके पास वोट और आवाज नहीं है.
आदित्य ठाकरे ने कहा, 'बहुत से बच्चों के लिए मिड-डे मील ही उनका एकमात्र पोषण स्रोत है. यह दिखाता है कि सरकार अब जनता के नहीं, बल्कि केवल राजनीति करने वाले नेताओं के हाथों में है.'
महाराष्ट्र सरकार की इस कटौती के बाद अब यह देखना होगा कि राज्य सरकार बच्चों के पोषण की स्थिति को सुधारने के लिए क्या कदम उठाती है. मिड-डे मील योजना का उद्देश्य न केवल बच्चों को स्कूलों में आकर्षित करना है, बल्कि कुपोषण जैसी गंभीर समस्याओं को भी हल करना है.