Madhya Pradesh Assembly Election 2023: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है. चुनाव में किसके सिर जीत का सेहरा बंधेगा और कौन सत्ता के शीर्ष तक पहुंचेगा ये समय और मतदाता तय करेंगे. चुनावी मौसम में नेता अब हर घर दस्तक दे रहे हैं. आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है और सियासी दल एक-दूसरे पर तंज कसते हुए नजर आ रहे हैं. सभी दलों के अपने-अपने दावे हैं लेकिन इस बीच तमाम ऐसे फैक्टर्स भी हैं जिन पर बात जरूरी है. ऐसा ही एक फैक्टर है राजनीति में भागीदारी या इसे हिस्सेदारी भी कह सकते हैं.
सियासी दल अल्पसंख्यकों के कल्याण को लेकर बड़े-बड़े दावे और वादे करते हैं. खासकर वक्त चुनाव का हो तो ये बाते थोड़ी और लच्छेदार हो जाती है. अब ये राजनीति है और सियासत में बातों का क्या. लेकिन लोग तो बातें करेंगे और जब इन बातों की पड़ताल होती है तो एक तरह से सब सिफर ही नजर आता है. कहना गलत नहीं होगा कि अल्पसंख्यकों को राजनीति में हिस्सेदारी देने की बात आते ही अच्छे-अच्छे चुप्पी साध लेते हैं.
बात मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव की करें तो यहां भी हालात कुछ अलग नहीं हैं. मुसलमानों को लेकर अक्सर बात होती है, उनकी भागीदारी पर चर्चा होती है. लेकिन सूबे की चुनावी राजनीति पर नजर डालें तो सियासी दल जुबानी जमा खर्च में ही आगे नजर आ रहे हैं. उम्मीदवारों की लिस्ट में कुछ नामों को छोड़ दिया जाए तो मुस्लिम समुदाय के लोगों को मायूसी ही हाथ लगी है. इसकी बानगी तब देखने को मिलती है जब रविवार को घोषित कांग्रेस की 144 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट में मुस्लिम समुदाय से केवल एक उम्मीदवार को जगह मिली है. वहीं, बीजेपी की अब तक की चार सूचियों के कुल 136 उम्मीदवारों में कोई भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं है.
कांग्रेस और बीजेपी से इतर दूसरे सियासी दलों की बात करें तो कमोबेश स्थिति कुछ ऐसी ही है. बहुजन समाज पार्टी, आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी की तरफ से घोषित की गई उम्मीदवारों की सूची में भी हाल ऐसा ही है. बीएसपी ने 73 उम्मीदवारों में से एक मुस्लिम कंडिडेट को टिकट दिया है. आम आदमी पार्टी ने अपने 39 उम्मीदवारों में से दो मुस्लिम कंडिडेट को टिकट दिया है. वहीं सपा ने अपने 9 उम्मीदवारों में से किसी भी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया है.
मध्य प्रदेश में मुस्लिम आबादी लगभग 7 से 8 फीसदी है यानी सूबे में उनकी आबादी 50 से 60 लाख है. राज्य भर में दो दर्जन से अधिक सीटें औसी हैं जहां वो निर्णायक भूमिका में नजर आ सकते हैं. राज्य की जिन विधानसभा सीटों पर मुस्लिम वोटर्स की मौजूदगी का असर लदिख सकता है उनमें भोपाल उत्तर, भोपाल मध्य, नरेला, जबलपुर उत्तर, जबलपुर पूर्व, बुरहानपुर, देवास, शाजापुर, उज्जैन उत्तर, ग्वालियर दक्षिण, इंदौर-1, इंदौर-3, देपालपुर, खंडवा, खरगोन, सागर, रतलाम शहर, सतना शामिल हैं.
ये बात तो मौजूदा समय की रही चलिए अब एक नजर 2018 में हुए विधानसभा चुनाव पर डाल लेते हैं. राज्य विधानसभा में समुदाय के प्रतिनिधित्व का सवाल है तो साल 2018 के विधानसभा चुनावों में दो मुस्लिम उम्मीदवार आरिफ अकील और आरिफ मसूद कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते थे. दोनों भोपाल शहर से हैं. किसी अन्य पार्टी से कोई मुस्लिम उम्मीदवार नहीं चुना गया था.
एक वक्त था जब मुस्लिमों की विधानसभा में अच्छी उपस्थिति थी. खासकर कांग्रेस प्रमुखता से जगह देती थी. 1962 में मुस्लिम समुदाय से लगभग 7 विधायक चुने गए थे. इनमें से 6 कांग्रेस के टिकट पर चुने गए थे. साल 1967 में मुस्लिम विधायकों की संख्या घटकर 3 हो गई, लेकिन 1972 में बढ़कर 6 हो गई. अगले तीन चुनावों में मुस्लिम विधायकों की संख्या 3, 6 और 5 थी. राम जन्मभूमि आंदोलन के बाद 1990 में ये संख्या घटकर 2 रह गई. 1993 के चुनावों में मुस्लिम समुदाय से कोई भी विधायक निर्वाचित नहीं हुआ.
चुनावी राजनीतिक के जानकारों का कहना है कि राम जन्मभूमि आंदोलन के बाद राज्य की विधानसभा में मुसलमानों की भागीदारी कम हुई है. कांग्रेस मुस्लिम समुदाय के नेताओं को तरजीह तो देती है लेकिन उम्मीदवार के रूप में उन्हें चुनावी समर में उतारने से बचती नजर आती है. एक बात गौर करने वाली ये भी है कि राज्य में मुस्लिम समुदाय का कोई बड़ा चेहरा भी नहीं है. ऐसा कोई नहीं है जिसका समुदाय प्रभाव हो और आवाज सियासी दलों के बीच सुनी जाए.
बात सिर्फ 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव की करें तो कांग्रेस हर कदम बेहद सावधानी से बढ़ा रही है. कमलनाथ हर वो तरकीब आजमा रहे हैं, जिससे बीजेपी पर वो बढ़त बना सकें. कमलानाथ हिंदुत्व पर भी बीजेपी को बढ़त लेने का कोई मौका नहीं देना चाहते हैं. हाल फिलहाल की घटनाओं पर नजर डालें तो कमलनाथ कहते नजर आए हैं, 'मैं मंदिर जाता हूं तो बीजेपी को पेट में दर्द क्यों होता है.' खुद को हनुमान भक्त बताने के लिए कमलनाथ हिंदू राष्ट्र की वकालत करने वाले धीरेंद्र शास्त्री का कार्यक्रम छिंदवाड़ा में करा चुके हैं. कमलनाथ का बनवाया हनुमान मंदिर अक्सर चर्चा में रहता है.
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