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चुनावी नारे कभी जुबान पर चढ़े तो कभी बदलकर रख दी चुनावी फिजा, क्या है सियासत में नारों की अहमियत?

Lok Sabha Elections 2024 : चुनावी में नारों में अलग तरह का जोश और उत्साह होता है. नारों का अपना मनोविज्ञान होता है. कई बार ये नारे दिल और दिमाग में बस जाते हैं. नारे लोगों को एकजुट करने का काम करते हैं और इनसे प्रभावित होकर जनता मतदान करती है. आज हम आपको कुछ ऐसे ही चुनावी नारों के बारे में बता रहे हैं. 

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Edited By: Pankaj Soni
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Lok Sabha Elections 2024 : लोकसभा चुनाव 2024 के लिए सभी दलों ने चुनाव प्रचार शुरू कर दिया है. राजतीतिक दल चुनावी नारे गढ़ने में जुटे हैं. बीजेपी ने 2024 के चुनाव में 'मोदी का परिवार' नाम से चुनावी नारा  भी गढ़ लिया है. चुनावों में नारों का बड़ा महत्व है. पहले चुनाव से लेकर अब तक के चुनाव में हर बार कोई न कोई नया नारा सामने आता है, जो पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश भरने से लेकर जनता से किसी दल के पक्ष या विपक्ष में वोट देने की अपील करता है. 

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्याल, वर्धा के सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज डिपार्टमेंट में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सदीप वर्मा कहते हैं कि चुनावी नारे पार्टी कार्यकर्ताओं के अंदर जोश भरने और जनता के मूड को बदलने का काम करते हैं. इन नारों का अपना मनोविज्ञान होता है, जो बहुत बार-बार किसी राजनीतिक दल के पक्ष या फिर विपक्ष में माहौल तैयार करने का काम करता है.

डॉ. सदीप वर्मा कहते हैं कि इस परिपेक्ष्य में आप आप बीजेपी के एक नारे को ले सकते हैं. जैसे, "राम लला हम आएंगे मंदिर वहीं बनाएंगे". 1992 में बीजेपी की ओर यह नारा सामने आया था. इसके जवाब में कांग्रेस ने इसी नारे में एक लाइन और जोड़ दी कि "राम लला हम आएंगे मंदिर वहीं बनाएंगे, लेकिन तारीख नहीं बताएंगे". मतलब साफ दिख रहा है कि एक से दो नारा बन गया जो अलग-अलग दो दलों का समर्थन भी करता है और विरोध भी करता है. 2024 के लोकसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है और  नारे गढ़ने का दौर शुरू हो चुका है. आज हम आपको भारतीय चुनावों को चर्चित कुछ नारों के बारे में बता रहे हैं. 

हाल के दो चुनावों में किन से नारों की रही धूम 

2019 का चुनाव

भाजपा :  मोदी है तो मुमकिन है. अबकी बार, फिर मोदी सरकार. ये नारे कारगर साबित हुए.
कांग्रेस :  मोदी हटाओ, देश बचाओ. अब होगा न्याय....

2014 का चुनाव

कांग्रेस :  हर हाथ शक्ति, हर हाथ तरक्की. जनता कहेगी दिल से, कांग्रेस फिर से. कट्टर सोच नहीं, युवा जोश. 
भाजपा : अबकी बार मोदी सरकार. अच्छे दिन आने वाले हैं. सबका साथ, सबका विकास. हर-हर मोदी, घर-घर मोदी. मोदी की ब्रांड वैल्यू ने नारों की एनर्जी को और बढ़ा दिया.

वो चुनावी नारे जो फलक पार छा गए  

- 1971 के चुनाव में ‘गरीबी हटाओ, देश बचाओ’नारे से  इंदिरा अपने समकालीन नेताओं पर भारी पड़ीं.
- 1977 में जनता पार्टी ने नारा दिया,  ‘इंदिरा हटाओ, देश बचाओ’. इसके बाद इंदिरा रायबरेली हार गईं.
- 1990 में कांग्रेस ने नारा दिया, ‘जात पर न पात पर, इंदिरा जी की बात पर, मोहर लगेगी हाथ पर’. इस पर जनता ने फिर इंदिरा का साथ दिया.
- इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 के चुनाव में कांग्रेस ने नारा दिया ‘इंदिरा तेरी यह कुर्बानी याद करेगा हिंदुस्तानी.’
- भाजपा 2004 में ‘इंडिया शाइनिंग’ के अपने ही नारे में चमक खो बैठी और हार गई.
- 2004 में ही भाजपा के मुकाबले कांग्रेस ने ‘कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ’ पर जोर दिया.
-तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने 2011 में नारा दिया, ‘मां माटी और मानुस’ जिसके सहारे उनको पश्चिम बंगाल की सत्ता हासिल हुई.