Lok sabha Elections 2024: लोकसभा चुनाव 2024 आने से पहले कांग्रेस के सामने एक-एक करके कई मुसीबतें खड़ी हो रही हैं. हालांकि कई मुसीबतों को निपटा लिया जा रहा है. ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि आखिर इन विवादों और दिक्कतों को सुलझा कौन रहा है, तो सामने नाम आता है गांधी परिवार की बेटी और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी का. हालांकि प्रियंका गांधी से पहले कांग्रेस के दिग्गज नेता अहमद पटेल का नाम इस लिस्ट में सबसे ऊपर था. उन्हें कांग्रेस के प्रमुख संकटमोटक के रूप में जाना जाता था.
साल 2021 में कोविड के कारण अहमद पटेल का निधन हो गया और कांग्रेस कई राज्यों में गुटबाजी का शिकार हो गई. 23 नेताओं के एक समूह (जिसे जी-23 के रूप में जाना जाता है) की खुली आलोचना ने इस विवाद को और बढ़ा दिया. ऐसे में पार्टी को साफ तौर पर फिर से एक संकटमोटक की एक कमी महसूस हुई. अब राजस्थान, छत्तीसगढ़ और हाल ही में हिमाचल प्रदेश में सुक्खू सरकार के साथ सक्रिय रूप से काम करके प्रियंका गांधी ने संकट को कम करने के लिए कदम बढ़ाया है.
छह कांग्रेस विधायकों के विद्रोह के बीच विक्रमादित्य सिंह ने हिमाचल प्रदेश के मंत्री पद से अपने इस्तीफे की घोषणा की, तो उन्होंने कहा कि उन्होंने घटनाक्रम के बारे में प्रियंका गांधी से बात की. ये सब पार्टी के भीतर संकटों को सुलझाने में उनके बढ़ते कद को दिखाताहै. इस एक कदम से ही विक्रमादित्य ने अपना इस्तीफा वापस ले लिया.
हिमाचल के घटनाक्रम से एक बात तो ऐसा लगा था कांग्रेस के हाथ से एक और राज्य निकलगया. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अगर हिमाचल में सत्ता परिवर्तन हो जाता तो उत्तर भारत 'कांग्रेस मुक्त' हो जाता, लेकिन प्रियंका गांधी के सही समय पर हस्तक्षेप से भाजपा का ऑपरेशन लोटस टल गया.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रोमेश सभरवाल ने मीडिया को बताया कि प्रियंका गांधी मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू और हिमाचल प्रदेश राज्य प्रमुख प्रतिभा सिंह के साथ लगातार संपर्क में थीं. उन्होंने सीएम सुक्खू से कहा कि सभी को और पुराने नेताओं को साथ लेकर चलना उनकी जिम्मेदारी है.
करीब दो महीने से उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच चला रहा सीट बंटवारे का गतिरोध एक हफ्ते खत्म हो गया हैं. इस गतिरोध को खत्म करने का श्रेय भी कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी को जाता है. उन्होंने सपा प्रमुख अखिलेश यादव से फोन पर बात की, जिसके बाद सपा और कांग्रेस की डील पक्की हो गई.
दोनों पार्टियों ने औपचारिक रूप से अपने गठबंधन की घोषणा की, जिसमें कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में 17 सीटें मिलीं. इन सीटों में हाई-प्रोफाइल वाराणसी निर्वाचन क्षेत्र भी शामिल था, जहां समाजवादी पार्टी ने पहले ही अपने उम्मीदवार का नाम घोषित कर दिया था. वाराणसी सीट का प्रतिनिधित्व वर्तमान में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी करते हैं.
इस घटनाक्रम के कुछ दिनों बाद 'यूपी के लड़के' अखिलेश यादव और राहुल गांधी को कांग्रेस की 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' में एक साथ सेल्फी लेते देखा गया. दिलचस्प बात यह थी कि कुछ दिन पहले ही अखिलेश यादव ने इस यात्रा में शामिल होने पर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी.
समाजवादी पार्टी से समझौते के साथ-साथ आम आदमी पार्टी (आप) भी बातचीत के लिए एक मेज पर आ गई. उसके बाद कांग्रेस और आप को अपने मतभेदों को दूर करने और कई राज्यों में गठबंधन में सिर्फ दो दिन लगे. हालांकि यह पहली बार नहीं है कि प्रियंका गांधी ने महत्वपूर्ण निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में हस्तक्षेप किया है. उन्होंने पिछले कुछ वर्षों में मुख्य वार्ताकार (खेवनहार) की भूमिका बखूबी निभाई है.
राजस्थान में अशोक गहलोत-सचिन पायलट समझौता और 2017 उत्तर प्रदेश सीट-बंटवारा इसके उदाहरण हैं. सात साल पहले 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने खुद को इसी तरह से गठबंधित किया था. तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कांग्रेस को चुनाव लड़ने के लिए 100 से भी कम सीटें देने पर तुले हुए थे. कांग्रेस ने 138 सीटों की मांग की और तत्कालीन यूपी प्रभारी गुलाम नबी आजाद और राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर पर बातचीत करने का दबाव डाला.
कांग्रेस नेता रोमेश सभरवाल कहते हैं कि जैसे इंदिरा गांधी और राजीव गांधी लोगों के साथ बातचीत करते थे, वैसे ही प्रियंका गांधी जनता से जुड़ी हुई हैं. राहुल गांधी अपनी यात्रा के माध्यम से जनता तक पहुंचने पर फोकस कर रहे हैं, वहीं प्रियंका ने पार्टी के भीतर संकट प्रबंधन की भूमिका निभाई है. 2020 में भी जब सचिन पायलट और उनके 18 विधायकों ने तत्कालीन अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली राजस्थान सरकार के खिलाफ विद्रोह किया था, तो प्रियंका ने पर्दे के पीछे से संघर्ष को खत्म करने का काम किया था.
प्रियंका ने 'टीम राहुल' के सदस्य माने जाने वाले सचिन पायलट से बात की और सरकार में उनके समर्थकों के बड़े प्रतिनिधित्व का आश्वासन दिया. दूसरी ओर उन्होंने राहुल गांधी के आवास पर अशोक गहलोत के साथ भी बैठक की. कथित तौर पर उनसे भविष्य में नेतृत्व की भूमिका के लिए पायलट की महत्वाकांक्षा के प्रति अधिक उदार होने के लिए कहा.
कुछ ऐसा ही नजारा छत्तीसगढ़ में देखने को मिला था. तब वरिष्ठ नेता टीएस सिंह देव ने 2018 में राज्य विधानसभा चुनाव से पहले उनसे किए गए बारी-बारी से मुख्यमंत्री पद के वादे का हवाला देते हुए राज्य में स्तता परिवर्तन की मांग की. हालांकि तब छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कुर्सी छोड़ने के मूड में नहीं थे. राहुल गांधी टीएस सिंह देव से की गई प्रतिबद्धता का सम्मान करने के पक्ष में थे. इसी बीच प्रियंका गांधी ने चतुराई से मामले को ठंडे बस्ते में डाला और जोर देकर कहा कि इस तरह के कदम से पार्टी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.
उन्होंने 2022 के उत्तर प्रदेश चुनाव की तैयारियों में भूपेश बघेल को शामिल किया. पार्टी नेतृत्व ने तत्कालीन छत्तीसगढ़ के सीएम को चुनाव में वरिष्ठ पर्यवेक्षक बनाया. वास्तव में माना जाता है कि प्रियंका गांधी ने पंजाब के मुख्यमंत्री पद से अमरिंदर सिंह को हटाने और नवजोत सिंह सिद्धू को राज्य इकाई प्रमुख के रूप में पार्टी तंत्र में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.