Lok Sabha Elections 2024: लोकसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही सभी पार्टियां अपने-अपने धुरंधरों के नामों का ऐलान करने में लगी हैं. कई ऐसी सीटें भी हैं जहां प्रत्याशियों की टक्कर काफी रोमांचक होने वाली है. इन्हीं में से एक सीट है पश्चिम बंगाल की कृष्णानगर लोकसभा सीट. यहां से भाजपा ने 'राजमाता' अमृता राय को अपना उम्मीदवार घोषित किया है, वहीं तृणमूल कांग्रेस ने अफनी फायरब्रांड नेता महुआ मोइत्रा को मैदान में उतारा है.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, बंगाल की कृष्णानगर सीट पर इस बार आक्रामक चुनावी टक्कर होगी. क्योंकि भाजपा ने मोइत्रा के खिलाफ राजमाता की उम्मीदवारी तय कर दी है. मोइत्रा कई बार अपने आक्रामक भाषणा को लेकर चर्चाओं में रहती हैं. कुछ दिन पहले ही उन्होंने एक मामले में कहा कि वे माफी नहीं मांनेंगी. उनके टैम्प्रामेंट को समझते हुए भाजपा ने भी ऐसे ही उम्मीदवार राजमाता का चुनाव किया है.
भाजपा का ये चुनावी दांव कोलकाता के पॉश ला मार्टिनियर स्कूल फॉर गर्ल्स और लोरेटो कॉलेज की स्टूडेंट को मोहराजार पोरिबार (महाराजा का परिवार) के प्रतिनिधि के साथ एक आदर्श गृहिणी के रूप में भी पेश करना है. हाल ही में पीएम मोदी ने राजमाता अमृता रॉय से फोन पर बात की थी. भाजपा की ओर से एस ऑडियो को सोशल मीडिया पर वायरल किया गया था. इस दौरान पीएम मोदी ने कहा कि पश्चिम बंगाल के गरीबों का पैसा लूटा जा रहा है. इसे ईडी जब्त कर रही है.
पीएम मोदी और अमृता रॉय की बातचीत उसी दिन हुई थी जब मोइत्रा को कथित विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) उल्लंघन मामले में एक और ईडी समन का मिला था. ये मामला कैश-फॉर-क्वेश्चन केस से ही जुड़ा हुआ था. इसी मामले में मोइत्रा को पिछले साल लोकसभा से निलंबित किया गया था. इसके अलावा राज्य के सत्तारूढ़ टीएमसी नेताओं का कथित भ्रष्टाचार पश्चिम बंगाल में भाजपा के मुख्य मुद्दों में से एक है.
मोइत्रा ने साल 2019 के लोकसभा चुनाव में नादिया जिले में पड़ने वाली कृष्णानगर सीट पर भाजपा के कल्याण चौबे को 63,000 से ज्यादा वोटों से हराया था. टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने मौजूदा सांसद और मैटिनी आइडल तापस पॉल, जो अब दिवंगत हो चुके हैं, की जगह उन्हें टिकट दिया था.
अमृता रॉय की शादी कृष्णानगर राजघराने में हुई थी. उनके पति राजा कृष्ण चंद्र रॉय के वंशज सौमिश चंद्र रॉय हैं. उन्हें राजबारी राजमाता या कृष्णानगर के शाही महल की रानी मां के नाम से भी जाना जाता है. अमृता रॉय का जन्म और पालन-पोषण कोतकाता में हुआ. वे मूल रूप से हुगली जिले के चंदन नगर की रहने वाली हैं.
उनका परिवार भी प्रतिष्ठित परिवारों में आता है. अमृता रॉय ने एक मीडिया रिपोर्ट के हवाले से कहा था कि उनके परिवार के कई लोग वकील हैं. उनके दादा सुधांशु शेखर मुखर्जी एक नामी क्रिमिनल लॉयर थे. उनके पिता किशोर प्रसाद मुखर्जी और चाचा शक्तिनाथ मुखर्जी भी कोलकाता में जाने-माने बैरिस्टर हैं.
उन्होंने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि शादी से पहले रॉय ने फैशन डिजाइनिंग की पढ़ाई की. उन्होंने कहा कि मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं राजनीति में एंट्री करूंगी, लेकिन किसी ने जिसका मैं बहुत सम्मान करती हूं, प्रस्ताव रखा और मैंने इसे स्वीकार कर लिया. उन्होंने आगे कहा कि नादिया और बंगाल के इतिहास में राजा कृष्ण चंद्र के योगदान के बारे में हर कोई जानता है. हर कोई हमारे परिवार को जानता है और मुझे विश्वास है कि कृष्णानगर के लोग मुझे आशीर्वाद देंगे.
कृष्णानगर राजघराने पर स्टडी करने वाले इतिहासकार स्वदेश रॉय बताते हैं कि कई लोगों का मानना है कि कृष्णानगर का नाम महाराजा कृष्ण चंद्र रॉय के नाम पर रखा गया है, लेकिन यह सच नहीं है. कृष्णानगर का पुराना नाम रेउई था, जहां गोपी जाति के वैष्णव रहते थे (नादिया बंगाल में वैष्णव आंदोलन का केंद्र था). चूंकि रेउई पर भगवान कृष्ण के भक्तों का प्रभुत्व था, इसलिए इसके आसपास बसा शहर कृष्णानगर के नाम से जाना जाने लगा.
18वीं शताब्दी में राज करने वाले महाराजा कृष्ण चंद्र रॉय का कला के संरक्षण और राज्य की संस्कृति में बड़ा योगदान माना जाता है जिसके चलते वो बंगाल के महान व्यक्ति माने जाते हैं. उन्हें 10 दिनों तक चलने वाले भव्य दुर्गा पूजा उत्सव शुरू करने का भी श्रेय दिया जाता है.
बंगाल की दूर्गा पूजा दुनिया भर में मशहूर है तो वहीं पर कृष्णानगर का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण त्योहार जगद्धात्री पूजा का श्रेय भी उन्हीं को दिया जाता है. कृष्णचंद्र को भरतचंद्र रे का बचाव करने के लिए भी जाना जाता है जिन्होंने अन्नदमंगल महाकाव्य लिखा था.
इस महाकाव्य को बंगाली भाषा के विकास में एक मील का पत्थर माना जाता है और संगीतकार रामप्रसाद सेन का भी समर्थन किया. बंगाल के मुल्ला नसीरुद्दीन, बीरबल और तेनाली रमन के समकक्ष दरबारी विदूषक गोपाल भर से जुड़ी मजाकिया कहानियों का संग्रह कृष्ण चंद्र के दरबार के इर्द-गिर्द बुना गया है, और उन्हें एक सनकी लेकिन परोपकारी शासक के रूप में दिखाया गया है.
हालांकि परिवार के इतिहास का कम से कम एक हिस्सा अब टीएमसी की पार्टी के कब्जे में आ चुका है. ब्रिटिश काल में कई छोटे राजघरानों की तरह, कृष्णानगर परिवार भी नवाब सिराज उद-दौला के अधीन मुगल साम्राज्य का एक जागीरदार था लेकिन जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने पूर्व पर नजर रखनी शुरू की, तो कृष्ण चंद्र ने जगत सेठ बंधुओं, मीर जाफर, ओमी चंद, राय दुर्लभ और अन्य लोगों के साथ मिलकर उसके और उसके जनरल रॉबर्ट क्लाइव के साथ मिलकर प्रसिद्ध युद्ध में सिराज उद-दौला को हरा दिया.
प्लासी के युद्ध में सिराज उद-दौला की हार ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की पहली बड़ी जीत और कृष्ण चंद्र के उत्थान में एक मील का पत्थर साबित हुई. कृष्ण चंद्र बाद में अंग्रेजों और विशेष रूप से क्लाइव के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध में रहे, जो आगे चलकर बंगाल के गवर्नर बने.
इस रिश्ते ने 1760 के दशक में महाराजा के लिए अच्छा काम किया, जब नए बंगाल नवाब मीर कासिम ने उन्हें फांसी देने का आदेश दिया. क्लाइव ने न केवल इसे खारिज कर दिया, बल्कि कृष्ण चंद्र को पांच ब्रिटिश तोपें, 'महाराजा' की उपाधि और कृष्णानगर की जमींदारी भी उपहार में दी.