कर्पूरी ठाकुर के बाद आडवाणी को भारत रत्न, क्या है भाजपा का संदेश?

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि लालकृष्ण आडवाणी का जीवन, जमीनी स्तर पर काम करने से शुरू होकर उपप्रधानमंत्री के रूप में देश की सेवा करने तक का है. उन्होंने हमारे गृह मंत्री और सूचना एवं प्रसारण मंत्री के रूप में भी अपनी पहचान बनाई.

Om Pratap

Lok sabha election 2024: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के बाद केंद्र की मोदी सरकार ने देश के पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न पुरस्कार देने की घोषणा की. केंद्र की मोदी सरकार का ये फैसला समाजवादी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किए जाने के कुछ दिनों बाद आया है. दो हफ्ते के अंदर दो भारत रत्न पुरस्कार की घोषणा राजनीति के उन दो स्तंभों के लिए की गई है, जिनमें से एक सामाजिक न्याय के लिए, तो दूसरे हिंदुत्व के लिए जाने जाते हैं. 

लालकृष्ण आडवाणी जब भाजपा अध्यक्ष थे, तब उन्होंने 1989 में अपने पालमपुर प्रस्ताव में राम जन्मभूमि आंदोलन का समर्थन किया और सितंबर 1990 में सोमनाथ से अयोध्या तक राम मंदिर रथ यात्रा शुरू की. वहीं, कर्पूरी ठाकुर उत्तर भारत में आरक्षण देने वाले पहले नेता थे. उन्होंने 1978 में ओबीसी और अत्यंत पिछड़ा वर्ग दोनों के लिए आरक्षण की बात कही थी. उस दौरान जनसंघ ने भी कर्पूरी ठाकुर के इस फैसले को पूरा समर्थन दिया था. 

जब कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा की गई, तब विपक्ष का चुनावी मुद्दा सामाजिक न्याय का था. कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने के फैसले से भाजपा की ओर से सामाजिक न्याय का संदेश भी दिया गया है. कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने के कुछ दिनों बाद ही इस फैसले का बड़ा प्रभाव देखने को मिला. बिहार में जातिगत सर्वेक्षण कराने वाले जनता दल यूनाइटेड नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी NDA में शामिल हो गए.

वहीं, हिंदुत्व को भारतीय राजनीति के केंद्र में लाने वाले राजनेता आडवाणी को भारत रत्न से सम्मानित किया जाना हिंदुत्व और राम मंदिर आंदोलन की जरूरत पर मुहर लगाना है. आडवाणी को भारत रत्न मिलना उनके लिए भावुक क्षण भी है. मोदी सरकार की ओर से आडवाणी को भारत रत्न दिए जाने की घोषणा के जरिए मतदाताओं को संदेश दिया जा रहा है कि भाजपा हमेशा अपने सीनियर नेताओं की पहचान का ख्याल रखती है. 

आडवाणी को भारत रत्न देने की घोषणा करते हुए पीएम मोदी ने क्या कहा?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म 'X' पर एक पोस्ट में कहा कि मुझे यह बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा. मैंने भी उनसे बात की और इस सम्मान से सम्मानित होने पर उन्हें बधाई दी. हमारे समय के सबसे सम्मानित राजनेताओं में से एक, भारत के विकास में उनका योगदान अविस्मरणीय है. 

भारत रत्न दिए जाने के फैसले के बाद क्या बोले आडवाणी?

भारत रत्न दिए जाने के केंद्र के फैसले को लेकर लालकृष्ण आडवाणी की ओर से भी प्रतिक्रिया सामने आई. उनके कार्यालय की ओर से बयान जारी कर कहा गया कि ये सम्मान प्रदान करने के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री मोदी दोनों को धन्यवाद. अत्यंत विनम्रता और कृतज्ञता के साथ मैं भारत रत्न स्वीकार करता हूं जो आज मुझे प्रदान किया गया है. बयान में कहा गया कि ये न केवल एक व्यक्ति के रूप में मेरे लिए सम्मान है, बल्कि उन आदर्शों और सिद्धांतों का भी सम्मान है, जिनकी मैंने अपनी पूरी क्षमता से जीवन भर सेवा की.

आडवाणी ने 14 साल की उम्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शामिल होने को याद करते हुए कहा कि वे हमेशा समर्पण के साथ अपने देश की सेवा करने के बारे में सोचते थे और अपने जीवन को अपना नहीं बल्कि राष्ट्र से संबंधित मानते थे. उन्होंने दीन दयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी और उनकी दिवंगत पत्नी कमला को भी याद किया. 

संगठन कार्यकर्ता से उपप्रधानमंत्री तक तय किया सफर

एक संगठन कार्यकर्ता से राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले लालकृष्ण आडवाणी 1977 में कांग्रेस के खिलाफ विपक्षी एकता से पैदा हुई जनता पार्टी सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्री बने. 1984 में कांग्रेस के हाथों भाजपा को मिली हार के बाद, पार्टी अध्यक्ष के रूप में आडवाणी ने पहले पार्टी के 1989 के पालमपुर प्रस्ताव के माध्यम से और फिर अपनी 1990 की रथ यात्रा के माध्यम से भाजपा को राम मंदिर आंदोलन के साथ जोड़ा. ये वो दौर था, जब नए हिंदुत्व आइकन का उदय हुआ, जो बाद में जननेता बन गए. पहले राज्यसभा और फिर इसके बाद 1989 से दिल्ली और फिर गांधीनगर से लोकसभा चुनाव जीते.

हालांकि, रथयात्रा ने उन्हें बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद राजनीतिक गर्त में भी धकेल दिया, क्योंकि विध्वंस के बाद धर्मनिरपेक्ष पार्टियों ने इसका दोष उन पर मढ़ दिया. 2005 में जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष कहने पर आडवाणी को भाजपा अध्यक्ष पद से इस्तीफा भी देना पड़ा. हालांकि, 2009 में आडवाणी ने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में एक बार फिर ताल ठोंकी, लेकिन भाजपा को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा. भाजपा को लोकसभा में सिर्फ 116 सीटें मिलीं, जबकि कांग्रेस ने 206 सीटें जीतीं.

2009 के बाद दोबारा सत्ता में आने का नहीं मिला मौका

2009 लोकसभा चुनाव में हार के बाद आडवाणी को दोबारा सत्ता में आने का मौका नहीं मिला. 2013 में, जब नरेंद्र मोदी को गोवा में भाजपा का केंद्रीय अभियान समन्वयक घोषित किया गया , तो आडवाणी ने आवेश में आकर पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया. ऐसा लगा कि पीएम मोदी के साथ उनके रिश्ते खराब हो गए हैं. हालांकि पार्टी के संसदीय बोर्ड ने उनके इस्तीफे को अस्वीकार कर दिया, तत्कालीन भाजपा प्रमुख राजनाथ सिंह ने कहा कि आडवाणी पार्टी का मार्गदर्शन करना जारी रखेंगे और पितृपुरुष ने अपना त्याग पत्र वापस ले लिया.

आडवाणी को भाजपा के सीनियर नेता मुरली मनोहर जोशी को भाजपा मार्गदर्शक मंडल में भी रखा गया. हालांकि मार्गदर्शक मंडल की कभी बैठक नहीं हुई. 2014 में गुजरात के गांधीनगर लोकसभा सीट से आखिरी बार चुनाव जीतने वाले आडवाणी को 2019 के लोकसभा चुनाव में मैदान में नहीं उतारा गया, जिससे उनके राजनीतिक करियर का अंत हो गया.