Lok Sabha Elections 2024: अरविंद केजरीवाल ने जिस तरह से सियासत की मुख्यधारा में खुद को और अपनी पार्टी को स्थापित किया वो किसी से छिपा नहीं है. आंदोलन से सत्ता के शीर्ष तक पहुंचने का सफर केजरीवाल की कुशलता का नतीजा है. 2013 में दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ शानदार चुनावी जीत के साथ केजरीवाल ने अपनी राजनीति शुरू की थी. अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को चुनावों में तो हराया ही साथ ही उसी की मदद से दिल्ली में सरकार भी बनाई थी. तब से लेकर आज तक दिल्ली में कांग्रेस और आप के बीच दिल कभी नहीं मिले.
2019 के आम चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में कांग्रेस के साथ चुनावी गठबंधन की खूब प्रयास किए लेकिन तब फैसले का अधिकार फिर से शीला दीक्षित के हाथों में ही आ गया था. शीला दीक्षित अपने रुख पर कायम रहीं और आम आदमी पार्टी के साथ चुनावी समझौता नहीं किया. दिल्ली से चलते हुए आम आदमी पार्टी पंजाब पहुंची और कांग्रेस को ही बेदखल कर सत्ता हासिल की. 2022 में तो कांग्रेस आप के सामे टिक नहीं सकी. देखा जाए तो दिल्ली और पंजाब में आप ने कांग्रेस की जड़ों को खखला कर दिया और सत्ता के शीर्ष तक पहुंच गई.
अब वक्त 2024 का है और बदलते समय में सियासी अंदाज देखिए कि एक बार फिर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को एक साथ आना पड़ रहा है. दोनों सियासी दल सीटों के बंटवारे पर भी बातचीत भी कर रहे हैं. कांग्रेस का हाल तो कुछ ऐसा है कि उसे पूरे देश में क्षेत्रीय दलों के साथ चुनाव से पहले ही समझौता करना पड़ रहा है. लेकिन यहां ये कहना गलत नहीं होगा कि आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल के लिए तो कांग्रेस का साथ जरूरी से अधिक मजबूरी बन गया है.
पंजाब और दिल्ली के साथ ही आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच गोवा, गुजरात और हरियाणा में भी सीट शेयरिंग की संभावन जताई जा रही है. सीट शेयरिंग को लेकर हुई बैठक में आम आदमी पार्टी की तरफ से संदीप पाठक, आतिशी और सौरभ भारद्वाज शामिल हुए, जबकि कांग्रेस की ओर से मुकुल वासनिक, अशोक गहलोत, भूपेश बघेल, सलमान खुर्शीद, मोहन प्रकाश, दीपक बाबरिया और अरविंदर सिंह लवली मौजूद रहे.
बैठक के बाद सीटों के बंटवारे को लेकर दोनों दलों में से किसी की तरफ कोई आधिकारिक जानकारी तो नहीं दी गई है, लेकिन जिस तरह की जानकारी सामने आ रही है उसके मुताबिक आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के सामने दिल्ली की 7 लोकसभा सीटों में से 3 और पंजाब में 13 में 6 संसदीय सीटों पर चुनाव लड़ने का प्रस्ताव रखा है. गुजरात और गोवा में एक-एक सीट और हरियाणा में आम आदमी पार्टी 3 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ सकती है. हालांकि, दोनों दलों के बीच अभी कई मुद्दे अनसुलझे हैं.
देखने वाली बात ये भी है कि भारत जोड़ो यात्रा के समापन तक राहुल गांधी को अरविंद केजरीवाल पसंद नहीं आ रहे थे. यहां तक कि समापन समारोह के लिए जब विपक्ष के कई नेताओं को न्योता भेजा तो भी अरविंद केजरीवाल को नहीं बुलाया गया. बाद के दिनों में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों का साथ आना एक तरह से मजबूरी बन गई. माना तो ये भी जाता है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की भूमिका इसमें अहम रही.
अब जब लोकसभा चुनाव नजदीक हैं तो ऐसे में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का साथ एक दूसरे को खूब भा रहा है. कांग्रेस के लिए अकेला चलना संभव नहीं है और अरविंद केजरीवाल फिर कांग्रेस का हाथ पकड़कर कितनी दूर चलेंगे ये कहना मुश्किल है. ऐसे में दोनों को मजबूरी में एक-दूजे का होना पड़ रहा है. खैर ये सियासत है और सियासी दोस्ती के अपने मायने होते हैं.