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Padma Awards 2025: 3 गुमनाम नायकों को मिला पद्मश्री सम्मान, देश ने सराहा उनका अनमोल योगदान

गोवा की 100 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी, 150 महिलाओं को पुरुष प्रधान क्षेत्र ढाक वादन में प्रशिक्षित करने वाले पश्चिम बंगाल के ढाक वादक और कठपुतली का खेल दिखाने वाली पहली भारतीय महिला उन 30 गुमनाम नायकों में शामिल हैं जिन्हें पद्मश्री से सम्मानित करने की घोषणा की गई है।

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Edited By: Garima Singh
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नयी दिल्ली, 25 जनवरी:  गोवा की 100 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी, 150 महिलाओं को पुरुष प्रधान क्षेत्र ढाक वादन में प्रशिक्षित करने वाले पश्चिम बंगाल के ढाक वादक और कठपुतली का खेल दिखाने वाली पहली भारतीय महिला उन 30 गुमनाम नायकों में शामिल हैं जिन्हें पद्मश्री से सम्मानित करने की घोषणा की गई है. सरकारी बयान में शनिवार को यह जानकारी दी गई.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 76वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर सरदेसाई को पद्मश्री से सम्मानित करने की घोषणा की. जिसमे लीबिया लोबो सरदेसाई, गोकुल चंद्र डे और  82 वर्षीय सैली होलकर शामिल हैं.

गोवा की स्वतंत्रता सेनानी लीबिया लोबो सरदेसाई

गोवा के स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली लीबिया लोबो सरदेसाई ने पुर्तगाली शासन के खिलाफ लोगों को एकजुट करने के लिए 1955 में एक जंगली इलाके में भूमिगत रेडियो स्टेशन ‘वोज दा लिबरडाबे (वॉयस ऑफ फ्रीडम)’ की स्थापना की थी.

पश्चिम बंगाल के ढाक वादक गोकुल चंद्र डे

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 76वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर सरदेसाई को पद्मश्री से सम्मानित करने की घोषणा की. पुरस्कार पाने वालों में पश्चिम बंगाल के 57 वर्षीय ढाक वादक गोकुल चंद्र डे भी शामिल हैं जिन्होंने पुरुष-प्रधान क्षेत्र में 150 महिलाओं को प्रशिक्षण देकर लैंगिक रूढ़िवादिता को तोड़ा.

गोकुल डे ने ढाक प्रकार का एक हल्का वाद्ययंत्र भी बनाया, जो वजन में पारंपरिक वाद्ययंत्र से 1.5 किलोग्राम कम था. उन्होंने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया और पंडित रविशंकर तथा उस्ताद जाकिर हुसैन जैसी हस्तियों के साथ कार्यक्रम किए.

शिल्प कला की संरक्षक सैली होलकर

पद्मश्री सम्मान की सूची में शामिल महिला सशक्तीकरण की मुखर समर्थक 82 वर्षीय सैली होलकर ने लुप्त हो रही माहेश्वरी शिल्प कला को पुनर्जीवित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और पारंपरिक बुनाई तकनीकों में प्रशिक्षण देने के लिए मध्य प्रदेश के महेश्वर में हथकरघा स्कूल की स्थापना की.

रानी अहिल्याबाई होल्कर की विरासत से प्रेरित और अमेरिका में जन्मीं सैली होलकर ने बुनाई की 300 साल पुरानी विरासत को पुनर्जीवित करने के लिए अपने जीवन के पांच दशक समर्पित कर दिए.

(इस खबर को इंडिया डेली लाइव की टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की हुई है)