'केजरीवाल ने 22 मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश...', LG और CM में तेज हुई जुबानी वार, चुनाव से पहले गर्माया दिल्ली का सियासी पारा
Delhi Assembly Election: LG कार्यालय के बयान में यह भी बताया गया कि 2016 से 2023 के बीच कुल 23 धार्मिक संरचनाओं को ध्वस्त करने के आदेश दिए गए थे, जिनमें 22 मंदिर और 1 मुस्लिम धार्मिक स्थल शामिल था.
Delhi Assembly Election: दिल्ली विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक गलियारे में हलचल शुरू हो गई है. दिल्ली की आप सरकार और उपराज्यपाल के बीच तीखी नोकझोक जारी है. एलजी सचिवायल ने दावा किया कि 2016 से 2023 के बीच केजरीवाल सरकार ने कुल 24 धार्मिक ढांचों को गिराने का आदेश जारी किए थे. इसमें 22 मंदिर और 1 मुस्लिम समुदाय का ढांचा शामिल था.
दरअसल, दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी ने आरोप लगाया कि दिल्ली के हिंदू और बौद्ध मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने दिया है. हालांकि, एलजी सचिवालय ने आतिशी के आोरपों का खंडन किया. आतिशी ने आरोप लगाते हुए कहा था कि 22 नवंबर को धार्मिक समिति की बैठक हुई थी. इस बैठक में वेस्ट पेटल नगर, दिलशान गार्डन, सीमापुरी, गोकुलपुरी, न्यू उस्मानपुर, सुल्तानपुरी और सुंदर नगरी के मंदिों को तोड़ने का आदेश दिया गया था. आतिशी ने आरोप लगाया था कि बीजेपी और केंद्र सरकार मिलकर दिल्ली में मंदिरों और बौद्ध मंदिरों को तोड़ने की योजना पर काम कर रही है.
LG कार्यालय ने लागए आरोप
दिल्ली के उपराज्यपाल कार्यालय ने दावा किया है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 8 फरवरी 2023 को विभिन्न हिस्सों में 9 मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया था. इसके साथ ही, यह भी कहा गया कि इस आदेश को दिल्ली सरकार के गृह मंत्री मनीष सिसोदिया ने भी मंजूरी दी थी. इस पर दिल्ली सरकार ने अपनी सफाई में कहा कि धार्मिक स्थानों की ध्वस्तीकरण की प्रक्रिया कानून के अनुसार की जाती है.
LG कार्यालय की तरफ से जारी बयान में कहा गया कि केजरीवाल और सिसोदिया द्वारा मंजूरी दिए गए इन आदेशों में से 7 मंदिर करावल नगर क्षेत्र में स्थित थे, जबकि बाकी दो मंदिर न्यू उस्मानपुर में थे. साथ ही, यह भी कहा गया कि इससे पहले, 23 जून 2016 को दिल्ली के पूर्व गृह मंत्री सत्येन्द्र जैन ने भी 8 मंदिरों को ध्वस्त करने की मंजूरी दी थी.
चुनाव से पहले गर्माया दिल्ली का सियासी पारा
दिल्ली की राजनीति में एक बार फिर से गर्माहट आ गई है. जहां एक तरफ AAP पार्टी इस मामले को राजनीति से जोड़कर देख रही है, वहीं दूसरी तरफ बीजेपी और अन्य विपक्षी दल इसे धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ मान रहे हैं. अब देखने वाली बात यह होगी कि इस विवाद का समाधान कैसे निकलता है और दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच संवाद का कौन सा रास्ता अपनाया जाता है.