Kolkata Horror: काम के प्रति डेडिकेटेड थी और कड़ी मेहनत करती थी. उसका टारगेट अपने स्पेशलाइजेशन में गोल्ड मेडल लेना था. माता-पिता को उम्मीद थी कि वो 9 अगस्त को घंटों की शिफ्ट के बाद आएगी, लेकिन उसे आने में देर हो जाएगी. वो आई भी लेकिन एबुलेंस में, पीठ के बल लेटी हुई, कफन में लिपटी हुई. उम्मीदों के टूटने की दर्दभरी ये कहानी कोलकाता के ट्रेनी डॉक्टर की है, जिसकी आरजी कर अस्पताल के सेमिनार हॉल में लाश मिली थी. ट्रेनी डॉक्टर के साथ दरिंदगी की पुष्टि हुई थी. मामले को लेकर पूरे देश में हंगामा हुआ था.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, 8 अगस्त की सुबह 31 साल की पोस्टग्रेजुएट रेजिडेंट डॉक्टर की दिन की शुरुआत बाकी सामान्य दिनों की ही तरह हुई. वो लगभग 10 बजे आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के श्वसन चिकित्सा विभाग (Department of Respiratory Medicine) की ओपीडी में पहुंची. यहां वो एक लंबी शिफ्ट में काम करने के लिए मानसिक रूप से तैयार हुई. कैंपस में एक हॉस्टल में रहने के बाद, वो एक साल से अधिक समय से कोलकाता के बाहरी इलाके और आरजी कर अस्पताल से लगभग 14 किमी उत्तर में अपने घर से आना-जाना कर रही थी.
ट्रेनी डॉक्टर के साथ काम करने वाले उनके सहयोगियों ने बताया कि वो अपने काम को लेकर बेहद फोकस्ड रहती थी. 8 अगस्त को जब वो अस्पताल में दाखिल हुईं तो ओपीडी में मरीजों की भीड़ थी,जिसे देख वो और तुरंत काम में जुट गईं. उन्होंने छह मरीजों को अटेंड किया और उन्हें चाय पीने के अलावा कुछ पलों के लिए ब्रेक लेने का समय नहीं मिला.
डिपार्टमेंट की यूनिट 2ए में तैनात ओपीडी में उनकी टीम में एक रेजिडेंट मेडिकल ऑफिसर, एक वरिष्ठ रेजिडेंट डॉक्टर, एक फैकल्टी मेंबर, साथ ही इंटर्न और हाउस स्टाफ शामिल थे. ओपीडी बिल्डिंग के कमरा 204 में ट्रेनी डॉक्टर दोपहर तीन बजे तक मौजूद थीं. इसके बाद वे वार्ड में अपनी टीम के साथ शामिल हो गई. उसकी टीम ने दोपहर का खाना मंगवाया था, लेकिन ट्रेनी डॉक्टर काम की वजह से देर से आई थी, इसलिए उनकी टीम ने उनका खाना खाना अलग रख दिया था.
थर्ड ईयर के ट्रेनी डॉक्टर ने बताया कि पीड़िता दोपहर 3 बजे के बाद आई और उसने अपना खाना बगल के 'स्लीप रूम' में खाया, जहां हम आमतौर पर खाते हैं. वो थोड़ी संकोची थी. एक सीनियर फैकल्टी मेंबर और थर्ड ईयर के ट्रेनी डॉक्टर करीब साढ़े चार बजे चले गए. पीड़िता ने उन्हें फोन कर किसी मरीज की तबीयत खराब होने और उसे देखने के लिए जाने के बारे में बताया था. थर्ड ईयर के ट्रेनी डॉक्टर ने कहा कि ये उसका आखिरी कॉल था, इसके बाद उसकी कॉल नहीं आई, अगली सुबह मुझे उसकी भयानक मौत के बारे में पता चला.
फर्स्ट ईयर की पीजी डॉक्टर ने कहा कि देर से लंच करने के बाद, वह अपनी यूनिट में मरीजों की देखभाल करने के लिए जल्दी से चली गई. आपातकालीन भवन की तीसरी मंजिल पर 80 बिस्तरों वाले विभाग में छह यूनिट हैं और यह उसका काम करने का स्थान था. दीदी (पीड़िता) वार्ड की ओर भाग रही थी, तभी मैं कॉरिडोर में उससे टकरा गया. हमने एक-दूसरे से नमस्ते किया और उसने कहा कि उसे वार्ड में बहुत काम है. दोनों सेमिनार हॉल के एक दरवाजे से गुजरे.
वार्ड में आने के बाद, वह अपने मरीजों की पूरी लगन से जांच करती रही, उनके इलाज से संबंधित रिपोर्ट्स देखती रही और उनकी दवाओं के बारे में नर्सों से कोऑर्डिनेट करती रही. दिन के दौरान पीड़िता को थर्ड ईयर के पीजी डॉक्टर गाइड करते थे, लेकिन रात में वह अपनी यूनिट की जिम्मेदारी संभालती थी, जिसमें दो फर्स्ट ईयर के पीजी डॉक्टर, एक इंटर्न और एक हाउस स्टाफ शामिल था.
सहकर्मियों ने बताया कि उसने रात के खाने के लिए आधी रात के आसपास ब्रेक लिया, फिर 9 अगस्त को सुबह 2 बजे के आसपास आराम करने के लिए अस्पताल आने के करीब 16 घंटे बाद सेमिनार हॉल में आराम करने चली गई. ये नींद उसकी आखिरी नींद साबित हुई.