Explainer: कांग्रेस का विरोध तेज, विपक्ष का जातिगत समीकरण कमजोर... जानें नीतीश के INDI Bloc से बाहर आने का असर

भाजपा के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, भाजपा को पूरे देश में चुनाव लड़ना है. ऐसे में हम बिहार में चुनावी लड़ाई को कठिन नहीं बनाना चाहते थे. नीतीश कुमार के हमारे साथ आने के बाद बिहार की लड़ाई पहले के मुकाबले आसान हो गई है.

Om Pratap

Know Nitish kumar coming out of INDI Bloc impact: नीतीश कुमार के I.N.D.I.A गठबंधन से बाहर आने और NDA ज्वाइन करने का क्या असर होगा, इस पर बहस छिड़ी हुई है. एक बात जो स्पष्ट तौर पर निकलकर सामने आ रही है, वो ये कि नीतीश कुमार की एनडीए में दोबारा वापसी का इससे बेहतर समय नहीं हो सकता था. काफी हद तक ये भाजपा के लिए ज्यादा फायदेमंद है. ये इसलिए क्योंकि बिहार जाति सर्वेक्षण के वास्तुकार नीतीश कुमार ही थे. 

उधर, बात की जाए विपक्ष के नुकसान की तो इसका व्यापक असर होता दिख रहा है. नीतीश के I.N.D.I.A गठबंधन से बाहर आने के बाद छोटे और क्षेत्रीय दलों की ओर से कांग्रेस का विरोध तेज हो सकता है. साथ ही 2024 के लिए विपक्षी पार्टियों को जातिगत समीकरण कमजोर हो सकता है. बता दें कि नीतीश ही वे राजनेता थे जिन्होंने विपक्षी (INDIA) ब्लॉक की पटना में जून 2023 में पहली बैठक की अध्यक्षता की थी. इसलिए, लोकसभा चुनावों से पहले उनके पाला बदलने का बिहार में एनडीए की सीटों में बढ़ोतरी की पूरी उम्मीद तो है. साथ ही उनके पाला बदलने का प्रतीकात्मक और ठोस दोनों प्रभाव पड़ेगा.

नीतीश कुमार के NDA में वापसी का फैसला, सामाजिक न्याय के साथ हिंदुत्व का मुकाबला करने की विपक्ष की कोशिश पर सवालिया निशान लगाता है. नीतीश का NDA में जाना 'हिंदुत्व के साथ-साथ सामाजिक न्याय' के मुद्दे को भी मजबूत करता है. दरअसल, पिछले जून में जब नीतीश ने 2024 के लोकसभा चुनावों में एकजुट होकर भाजपा से मुकाबला करने के लिए पटना में 17 विपक्षी दलों की बैठक की अध्यक्षता की. उस बैठक की अध्यक्षता करने वाले नीतीश कुमार अब एनडीए के साथ हैं.

फिलहाल I.N.D.I.A गठबंधन की ये है स्थिति

वहीं, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि टीएमसी राज्य में सभी 42 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी, जबकि आम आदमी पार्टी ने भी कहा है कि वो पंजाब में किसी से भी सीट शेयर नहीं करेगी. इसके अलावा, पिछले शनिवार को अखिलेश यादव ने कांग्रेस को केवल 11 सीटें देने की घोषणा करके आश्चर्यचकित कर दिया. इससे पहले कांग्रेस लगातार यूपी में 20 लोकसभा सीटों पर लड़ने पर जोर दे रही थी. इन सबके बीच खास बात ये कि जेडीयू नेता और नीतीश के भरोसेमंद सहयोगी केसी त्यागी ने नीतीश कुमार के इस्तीफा देने के बाद राजद के बजाय कांग्रेस पर निशाना साधा.

केसी त्यागी ने कहा कि कांग्रेस अहंकारी हो गई है, वह क्षेत्रीय दलों पर अपनी योग्यता से अधिक सीटें देने के लिए दबाव बनाने की कोशिश कर रही है. उन्होंने ये भी कहा कि कांग्रेस 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' में विपक्षी नेताओं को इसलिए आमंत्रित कर रही है, ताकि राहुल गांधी को प्रोजेक्ट किया जाए. कुल मिलाकर कांग्रेस का विरोध भारतीय राजनीतिक के उस समय की याद दिलाता है, जब 1960 और 70 में समाजवादी और जनसंघ एक साथ कांग्रेस के खिलाफ राजनीति कर रहे थे. वैसी ही स्थिति आज भी दिखने लगी है. 

ये वो समय है, जब विपक्षी पार्टियां सामाजिक न्याय और गठबंधन की जीत के लिए भाजपा को घेरने की कोशिश में जुटी है. ऐसे समय में 2024 के आम चुनाव के लिए नीतीश कुमार के फैसले का काफी प्रभाव माना जा सकता है. राजनीतिक जानकारों की मानें तो भाजपा ने 2019 में बिहार की 40 में से सिर्फ 17 सीटों पर चुनाव लड़ा था और सभी पर जीत हासिल की थी. अगर उसने इस बार 17 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ा होता, तो उसकी सीटों में इजाफा भी हो सकता था, लेकिन उसने जदयू को महत्व दिया. इसके पीछे भी कई कारण हो सकते हैं. 

जदयू का NDA में आने और भाजपा को स्वीकारने की ये है वजह

भाजपा के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, भाजपा को पूरे देश में चुनाव लड़ना है. ऐसे में हम बिहार में चुनावी लड़ाई को कठिन नहीं बनाना चाहते थे. नीतीश कुमार के हमारे साथ आने के बाद बिहार की लड़ाई पहले के मुकाबले आसान हो गई है. अब हम सिर्फ उन क्षेत्रों, राज्यों और लोकसभा सीटों पर फोकस कर सकते हैं, जहां 2019 में हम कमजोर थे. 

वहीं, जदयू के एक सूत्र के मुताबिक, हमारी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं का मानना था कि अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन का मतदाताओं पर प्रभाव पड़ सकता है. ऐसा सभी ने महसूस किया कि राम मंदिर उद्घाटन की गूंज हर जगह है. न सिर्फ भाजपा के मतदाताओं के बीच बल्कि गैर भाजपा पार्टियों के मतदाताओं के बीच भी. जदयू के सूत्र ने कहा कि एनडीए में हमारे वापस जाने का इससे बेहतर समय नहीं हो सकता था.