जानें संविधान सभा ने अल्पसंख्यकों के आरक्षण पर कैसे लिया फैसला?

भारत के संविधान में अल्पसंख्यकों से संबंधित प्रावधानों को शामिल किया गया. संविधान मसौदा समिति ने अल्पसंख्यक के अधिकारों पर विचार-विमर्श के बाद अल्पसंख्यकों से संबंधित विशेष प्रावधान को संविधान के अनुच्छेदों (292-301) में जगह दी.

Avinash Kumar Singh

नई दिल्ली: देश को आजादी मिलने के बाद भी आरक्षण की गूंज संसद से लेकर सड़क तक सुनने और देखने को मिलती रहती हैं. बीते कल राज्यसभा में धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान पीएम मोदी ने आरक्षण के मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी को जमकर घेरा. पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू की ओर से आरक्षण पर दिये गए वक्तव्यों को ढाल बनाकर पीएम मोदी ने चुन-चुकर शब्दबाण छोड़े. पीएम मोदी की ओर से आरक्षण पर दिये गए बयान के बाद एक नई बहस वैचारिक विमर्श में आई हैं. वो हैं अल्पसंख्यकों का आरक्षण. 

वैसे तो भारत के समाजिक और सियासी ताने बाने में मुस्लिम समाज का विकास हमेशा से प्राथमिकताओं में शुमार रहा है. देश को आजादी मिलने के बाद भारत के संविधान में अल्पसंख्यकों से संबंधित प्रावधानों को शामिल किया गया. जब संविधान सभा द्वारा भारत के संविधान का मसौदा तैयार किया जा रहा था, तो बहस में अल्पसंख्यक अधिकारों पर चर्चा एक प्रमुख विषय था. 

बी.आर. की अध्यक्षता में एक मसौदा समिति का गठन

29 अगस्त 1947 को संविधान सभा ने डॉ. बी.आर. की अध्यक्षता में एक मसौदा समिति का गठन किया. अम्बेडकर ने भारत के लिए एक मसौदा संविधान तैयार किया.  संविधान के मसौदे पर विचार-विमर्श करते हुए कुल 7,635 में से 2,473 संशोधनों का निपटारा किया गया. समितियों की सिफारिशों और संविधान सभा के निर्णयों पर विचार करते हुए मसौदा समिति की 5 और 6 फरवरी 1948 को बैठक हुई. जिसमें अल्पसंख्यकों से संबंधित विभिन्न प्रावधानों को दस अनुच्छेदों (292-301) में तैयार किया गया और उन्हें अल्पसंख्यकों से संबंधित विशेष प्रावधान शीर्षक के तहत भाग XIV में रखा गया.

मुस्लिम समाज से जुड़े मुद्दों पर चर्चा 

संविधान मसौदा समिति में कुल आठ प्रमुख सदस्य थे, जिनमें सर सैयद मुहम्मद सादुल्ला और प्रांतों व राज्यों के सदस्यों के तौर पर कई दर्जन मुस्लिम भी सदस्य थे. समिति में के.एम. मुंशी, सर सैयद मुहम्मद सादुल्ला, अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर, गोपाला स्वामी आयंगर, एन. माधव राव, टी.टी. कृष्णामाचारी थे. अध्यक्ष सहित सभी आठ सदस्य देश के कानूनी विशेषज्ञ थे. इन मुस्लिम सदस्यों ने मुस्लिम समाज से जुड़े मुद्दों को तो मसौदे पर चर्चा के दौरान उठाया ही, बल्कि मुस्लिम सदस्यों ने देश के विभिन्न मसलों खासकर हिंदू अधिकारों के लिए भी अपनी राय प्रमुखता से रखी.