कहा जाता है कि एक सफल राजनेता का सबसे बड़ा गुण उसकी भाषण शैली होती है. मंच पर बोलना, संवाद करना और भाषण देना राजनीति के क्षेत्र में उसे बहुत आगे बढ़ाता है. चाहे पंडित जवाहर लाल नेहरु हों या अटल बिहारी वाजपेयी, इन नेताओं की सबसे खास बात रही है कि वे अच्छे वक्ता भी थे. इन सभी मानकों को धता बताकर भी कुछ नेता अपवाद भी साबित हुए हैं. हम बात कर रहे हैं ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की. 24 साल से ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक एक समय पर ऐसे नेता थे जिन्हें अपने ही राज्य की भाषा उड़िया नहीं आती थी. इसके बावजूद उन्होंने हर चुनाव में खुद को अव्वल साबित किया.
ओडिशा से ताल्लुक रखने वाले नवीन पटनायक के पिता भी राजनेता रहे हैं. राजनीति में कदम रखने से पहले नवीन पटनायक को न तो उड़िया भाषा और न ही वहां की संस्कृति की अच्छी जानकारी थे. इसके बावजूद अपनी मेहनत, संवेदनशीलता और राजनीति की वजह से वह ओडिशा के लोगो के पसंदीदा नेता बने. लगातार 24 साल मुख्यमंत्री रहने के चलते वह भारत में सबसे ज्यादा समय तक सीएम रहने वाले नेताओं की लिस्ट में दूसरे नंबर पर पहुंच गए हैं. पहले नंबर पर आज भी सिक्किम के पूर्व सीएम पवन कुमार चामलिंग हैं.
अपने पिता बीजू पटनायक की मृत्यु के बाद उनके नाम से बीजू जनता दल (BJD) नाम से एक पार्टी बनाकर 1997 में राजनीति में एंट्री की. ओडिशा की राजनिति में उतरने से पहले नवीन पटनायक की जिदंगी काफी रोमांचक रही. उन्हें ट्रैवलिंग का शौक था. डनहिल उनका पसंदीदा सिगरेट और ग्राउस उनकी पसंदीदा व्हिस्की थी. इसके अलावा किताबे लिखना और एक्टिंग करना भी उन्हें बहुत पसंद था.
अपनी इसी दीवानगी की वजह से उन्होनें निकोलस मेयर की निर्देशित फिल्म 'द डिसाइवर्स' में एक छोटा रोल किया है. नवीन पटनायक को लिखने का शौक था. उन्होंने तीन किताबें भी लिखीं हैं. अपनी शुरुआती शिक्षा ओडिशा के कटक से प्राप्त करने के बाद नवीन ने देहरादून के प्रतिष्ठित वेल्हम स्कूल में एडमिशन लिया. इसके बाद, वह 'द दून स्कूल' में पहुंचे. नवीन पटनायक प्रखर कांग्रेसी संजय गांधी के क्लासमेट हुआ करते थे.
कला, संस्कृति और इतिहास में उनकी गहरी रुचि थी. ओडिशा के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उन्हें उड़िया भाषा नहीं आती थी. भाषण के दौरान उन्हें रोमन भाषा में स्क्रिप्ट लिखकर दी जाती थी, तभी वह उड़िया में बोल पाते थे. कभी-कभी अपने भाषण में वह गलत भी पढ़ जाते लेकिन यह बात कभी उनके लिए समस्या नहीं बनी. कहा जाता है कि केंद्र की राजनीति में बिना दखल दिए और केंद्र सरकार से बिना कोई तकरार किए नवीन पटनायक सिर्फ काम करने और ओडिशा तक ही सीमित रहने में मशगूल रहे हैं.
ओडिशा में एक बार फिर लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ-साथ हो रहे हैं. एनडीए से गठबंधन की उम्मीदें टूटने के बाद बीजेडी के सामने कांग्रेस और बीजेपी दोनों हैं. नवीन पटनायक अपने नेतृत्व में एक बार फिर सरकार बनाने का दावा ठोंक रहे हैं. वहीं, राज्य से लगभग खत्म हो चुकी कांग्रेस पार्टी एक बार फिर से खुद को जिंदा करने के लिए जान झोंक रही है.