वैली के दिल में बसा चिनाव और किश्तवाड़ एक ऐसा इलाका जो कई सालों से संघर्ष के दौर से गुजरता रहा. 1990 के दशक से इस क्षेत्र में कई हिंसात्मक घटनाएं हुई, तीन साल बाद यानी 1993 में मुस्लिम चरमपंथियों ने किश्तवाड़ जिले के सारथल इलाके में 17 हिंदू बस यात्रियों की हत्या कर दी.यह नरसंहार हिंदुओं के खिलाफ सामुदायिक हमलों की एक कड़ी शुरुआत थी. साल 2001 में लश्कर-ए-तैयाब के आतंकवादियों ने किश्तवाड़ के पास डोडा जिले के लैडर गांव में 17 हिंदू ग्रामीणों की बेरहमी से हत्या कर दी. इसके बाद भी हिंसा जारी रही. फिर 2008-13 में टारगेट अटैक किया गया जिसमें कई हिंदुओं की जान चली गई.
आज, किश्तवाड़ एक नई पहचान के साथ खड़ा है. 2019 के बाद से इस क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव आया है. हिंसा की घटनाएं आतंकवाद से तबाह हुए हिंदू मंदिरों का पुनर्निर्माण होना इस तरह के परिवर्तन से घाटी में शांति है. हाल की जन्माष्टमी की जुलूस किश्तवाड़ के इतिहास की सबसे बड़ी जुलूसों में से एक थी, जिसकी शायद किसी ने कल्पना नहीं की होगी. स्थानीय हनुमान मंदिर के पंडित ने मंदिरों के पुनर्निर्माण पर चर्चा करते हुए कहा, 'पहले जो मंदिर बर्बाद हो गए थे, अब उन्हें बहुत प्रेम और स्नेह के साथ पुनर्निर्मित किया गया है. अब ये मंदिर हमारे समुदाय की अडिग आस्था और शक्ति के प्रतीक हैं.'
बता दें कि आर्टिकल 370 हटने के बाद, किश्तवाड़ ने विकास के नए युग में कदम रखा है बटोट-किश्तवाड़ सड़क, जिसे अब राष्ट्रीय राजमार्ग का दर्जा मिला है, इस क्षेत्र की जीवन रेखा बन गई है. वहीं खेलेनी टनल और अन्य बुनियादी ढांचा परियोजनाओं ने किश्तवाड़ में नई ऊर्जा भर दी है, यहां कनेक्टिविटी में सुधार हुआ है और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिला है.