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हस्ताक्षर किए चौधरी चरण सिंह, कुर्ते की जेब से मुहर निकालकर कागज पर ठोका 'प्रधानमंत्री, भारत सरकार'... पूरा थाना हो गया सस्पेंड

Chaudhary Charan Singh Bribe Case: यह घटना 1979 की है, जब उस समय के प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह एक व्यक्ति की शिकायत पर शाम के छह बजे यूपी के इटावा जिले के ऊसराहार पुलिस स्टेशन पहुंचे थे.

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Edited By: Princy Sharma
 Chaudhary Charan Singh Bribe Case
Courtesy: Pinterest

Kisan Diwas 2024: चौधरी चरण सिंह को किसानों का मसीहा कहा जाता है, क्योंकि वह किसानों के लिए हमेशा संघर्ष करते थे और उनके अधिकारों की रक्षा करते थे. प्रधानमंत्री बनने के बाद, चौधरी साहब को ज्यादातर शिकायतें पुलिस वालों के खिलाफ आती थीं. दरअसल,पुलिस किसानों और ग्रामीणों का शोषण करती थी. इस वजह से उन्होंने पुलिस थानों और तहसीलों में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़ा अभियान चलाया था. एक दिन इटावा जिले के ऊसराहार थाने से ऐसी ही एक शिकायत उनके पास पहुंची.

यह घटना अगस्त 1979 की है, जब चौधरी चरण सिंह किसान के वेश में ऊसराहार थाने पहुंचे. शाम करीब 6 बजे वह थाने में पहुंचे और पहले सिपाही से अपनी शिकायत की, 'मेरा बैल चोरी हो गया है, रिपोर्ट लिखवानी है.' सिपाही ने उनकी बात अनसुनी कर दी. इसके बाद थानेदार भी आ गए, लेकिन उन्होंने भी रिपोर्ट लिखने से मना कर दिया.

किसान के वेश में थाने पहुंचे पीएम

चौधरी चरण सिंह किसान का वेश धरे लौटने लगे, तभी एक सिपाही ने उन पर तरस खाया और रिपोर्ट लिखने के लिए 100 रुपये का खर्चा बताया. मोलभाव के बाद, यह रकम 35 रुपये पर तय हो गई. रिपोर्ट लिखवाने के बाद, थाने के मुंशी ने उनसे पूछा, 'आप हस्ताक्षर करेंगे या अंगूठा लगाएंगे?' चौधरी साहब ने कहा, 'हस्ताक्षर करूंगा.' इसके बाद उन्होंने अपनी पेन से रिपोर्ट पर हस्ताक्षर किए और मुंशी की मेज पर रखे स्टांप पैड से अपनी मुहर लगा दी, जिस पर लिखा था, 'प्रधानमंत्री, भारत सरकार.'

पूरे थाना हुआ था सस्पेंड

यह देख थाने में हड़कंप मच गई. थोड़ी देर बाद, चौधरी चरण सिंह का काफिला थाने पहुंचा और उन्होंने पूरे थाने के कर्मचारियों को सस्पेंड कर दिया. इस घटना ने साबित कर दिया कि चौधरी साहब भ्रष्टाचार के खिलाफ किसी भी हद तक जा सकते थे.

कौन हैं चौधरी चरण सिंह?

चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर 1902 को उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के बाबूगढ़ छावनी के पास नूरपुर गांव में हुआ था. 1929 में वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गए और 1940 में सत्याग्रह आंदोलन के दौरान जेल भी गए. 3 अप्रैल 1967 को वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, लेकिन 17 अप्रैल 1968 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद, 17 फरवरी 1970 को उन्होंने फिर से यूपी के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. इसके बाद, वह केंद्र सरकार में गृहमंत्री बने और मंडल आयोग और अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की. 1979 में वह वित्त मंत्री और उपप्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) की स्थापना के लिए काम किया. उसी साल, 28 जुलाई 1979 को वह समाजवादी पार्टियों और कांग्रेस (यू) के समर्थन से भारत के प्रधानमंत्री बने.