इस्लाम को छोड़कर, किसी भी धर्म में दो शादियों की इजात नहीं है. सभी धर्मों के व्यक्तिगत कानून कहते हैं कि अगर, एक ही वक्त में कोई शख्स दो शादियां करता है तो दूसरी शादी अवैध होगी और वह अगर पत्नी या पति चाहे तो सजा की हकदार होगा. इस्लाम धर्म में बहुविवाह को कानूनी मान्यता मिली है लेकिन दूसरे किसी भी धर्म के लोग अगर ऐसा करते हैं तो उन्हें सजा मिल सकती है. केरल हाई कोर्ट ने कहा है कि धारा 494 के तहत, किसी व्यक्ति को दूसरी शादी करने के लिए सजा नहीं जा सकती है, अगर तलाक की एक पक्षीय डिक्री हो गई हो. यह दूसरी शादी को वैधता को भी चुनौती नहीं देता हो. जस्टिस ए भदरुद्दीन ने फैसला सुनाया है किसी भी दो पक्षों का वैध विवाह तब नहीं होगा, अगर तलाक का एक पक्षीय निर्णय कोर्ट की ओर से किया जा सका हो. दूसरी शादी ऐसी स्थिति में मान्य होगी.
केरल हाई कोर्ट ने कहा, 'इस केस में, अपनी दूसरी शादी की तारीफ पर आरोपी को यह नहीं पता था कि तलाक की एकपक्षीय डिक्री को रद्द करने के लिए दूसरी याचिका दायर हो चुकी है. इसलिए, यह फैसला सुनाया जाता है कि अगर तलाक की डिक्री हो चुकी हो और दूसरा पक्ष शादी कर ले तो बाद में अगर एकपक्षीय डिक्री रद्द करने का फैसला भी आए तो भी, आरोपी के खिलाफ बहुविवाह का मामला नहीं बनता है, यह बाइगेमी नहीं है.'
इस केस में एक पक्ष ने आरोपी के खिलाफ एक आपराधिक याचिका दायर की थी. याचिका में कहा गया था कि उसने बहुविवाह किया है, ऐसे में उस पर क्रिमिनल केस चलना चाहिए. बचाव में पीड़ित ने कहा है कि इस याचिका को रद्द कर दिया जाए. शिकायतकर्ता का कहना है कि याचिकाकर्ता ने दूसरी शादी कर ली जब उनकी शादी अस्तित्व में थी. उसके मां-बाप ने दूसरी शादी में जाने के लिए उसे उकसाया था.
याचिकार्ता के वकील ने कहा कि एकपक्षीय तलाक 12 मई 2017 को दिया गया था. यह कहा गया कि शिकायतकर्ता ने एक पक्षीय डिक्री के खिलाफ कोई अपील नहीं दायर की है. जून 2017 में ही एकपक्षीय डिक्री के खिलाफ याचिका दायर करने की समयावधि बीत गई है. तब याचिकाकर्ता ने दूसरी लड़की से 30 दिसंबर 2017 को शादी कर ली. यह कोर्ट ने कहा कि कोर्ट ने 30 दिसंबर को शादी की, जब उसे तलाक की एकपक्षीय डिग्री मिल चुकी थी.
एकपक्षीय डिक्री की अवधि के दौरान ही पहले आरोपी शादी कर ली थी. डिक्री के खिलाफ अपील दायर करने की समयावधि भी बीत चुकी थी. दूसरी शादी के वक्त, शख्स तलाकशुदा था, विवाहित नहीं था, ऐसे में शादी करना अपराध नहीं है. कोर्ट ने आरोपी के खिलाफ दायर आपराधिक केस को रद्द कर दिया. उसके खिलाफ दर्ज भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 494 और 109 को रद्द कर दिया गया. इसके तहत दोषी पाए जाने पर अधिकतम 7 साल की सजा और जुर्माने दोनों से दंडित किया जा सकता है.