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कर्नाटक में कांग्रेस की गुटबाजी पर 'अल्पविराम', सिद्धारमैया और शिवकुमार एक-दूसरे को कैसे कर रहे हैं कमजोर?

Karnataka Politics: लोकसभा चुनाव के बाद अब कुछ राज्यों में विधानसभा के चुनाव की तैयारी चल रही है. इससे पहले विधायकों के सांसद बनने के कारण कुछ इलाकों में उप चुनाव होने हैं. इसी में शामिल है कर्नाटक की 3 सीटें जहां सिद्दारमैया और शिवकुमार को अपना पावर दिखाना है. ऐसे में इस लड़ाई के कारण गुटबाजी सामने आने लगी है. हालांकि, शिवकुमार ने एक बयान से इसे शांत करने की कोशिश की है.

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Courtesy: Social Media

Karnataka Politics: कर्नाटक कांग्रेस में गुटबाजी कोई नई बात नहीं है. यहां मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री व अध्यक्ष डीके शिवकुमार के नेतृत्व में पार्टी और सरकार का काम चल रहा है. 2023 में सत्ता में आने के बाद से बीच-बीच दोनों नेताओं के बीच अनबन दिखता रहा है. हालांकि, 2024 लोकसभा चुनाव में ये कम हुई लेकिन, एक बार फिर से गुटबाजी नजर आने लगी है.

अगले कुछ महीनों में विधानसभा की कुछ सीटों के लिए उपचुनाव होने हैं. इसमें मांड्या संसद कुमारस्वामी के संसद पहुंचे से खाली हुई चन्नपटना, भाजपा के बसवराज बोम्मई की जीत से खाली एक सीट और कांग्रेस के ई. तुकाराम की जीत से खाली हुई एक सीट शामिल है.

एक दूसरे को कमजोर करने की तरकीब

डीके शिवकुमार के समर्थकों मुख्यमंत्री की कुर्सी पाने की इच्छा कभी नहीं छुपाई. अब वो एक बार फिर से इस मांग को जोर-शोर से उठा रहे हैं. वो इसके लिए लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन का आरोप लगा रहे हैं. वोक्कालिगा आइकन केंपेगौड़ा की जयंती के अवसर पर एक वोक्कालिगा संत, चंद्रशेखर नाथ स्वामी ने कहा कि सिद्धारमैया को शिवकुमार के लिए मुख्यमंत्री पद छोड़ देना चाहिए.

दूसरी तरफ सिद्धारमैया के समर्थक शिवकुमार पर जिम्मेदारी डालने में लगे हैं. उन्हें राज्य में और कमजोर करने के लिए तीन और उपमुख्यमंत्रियों की मांग की जा रही है. सिद्धारमैया गुट का मानना है कि मई 2023 में सरकार बनने के बाद और उपमुख्यमंत्री बनाए जाने की योजना थी. हालांकि, शिवकुमार ने इसे विफल कर दिया था. कहा जा रहा है लिंगायत, एससी/एसटी और अल्पसंख्यक समुदायों में से उपमुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए.

संत की बात पर शिवकुमार

शनिवार को शिवकुमार ने कहा कि कोई भी मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री बदलने पर बयान जारी करेगा उसे AICC और KPCC द्वारा अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा. हमने पार्टी को सत्ता में लाने के लिए  मेहनत की है. AICC अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, सिद्धारमैया और मैंने दिल्ली में फैसला किया कि सभी को पार्टी के लिए काम करना है.

उन्होंने कहा कि मंत्रियों, विधायकों और संतों को पार्टी के मामलों पर बात नहीं करनी चाहिए. शिवकुमार ने कहा कि संत ने स्नेह से बात की लेकिन उनके आशीर्वाद मेरे लिए पर्याप्त हैं. कृपया मुझे मुख्यमंत्री पद के लिए प्रस्तावित या समर्थन न करें.

आम चुनाव में शिवकुमार को घाटा

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने बढ़त हासिल की है लेकिन नतीजे पार्टी की अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं थे. इसमें सबसे ज्यादा हानि शिवकुमार को को हुई. उनके छोटे भाई डीके सुरेश अपने गृह क्षेत्र में भाजपा-जेडी(एस) गठबंधन के उम्मीदवार ने हरा दिया. जबकि, दक्षिण कर्नाटक में कांग्रेस के पास केवल एक सीट आई. शिवकुमार ने खुद को वोक्कालिगा के रूप में पेश किया लेकिन उनकी ये तरकीब काम नहीं आई.

नई लड़ाई को दिया जन्म

वोक्कालिगा समाज को समर्थन में लेने के लिए शिवकुमार खुद को चन्नपटना विधानसभा सीट उम्मीदवार के रूप में पेश कर रहे हैं. उनका कहना है कि लोकसभा चुनाव में कम सीटें वोक्कालिगा समर्थन जुटाने में सिद्धारमैया असमर्थता और ओबीसी कुरुबा समुदाय का समर्थन न मिलना है. इसके साथ ही कांग्रेस के पारंपरिक एससी/एसटी मतदाता ने पार्टी से दूरी बनाई है.

फिलहाल के लिए अल्पविराम

शिवकुमार के बयान के बाद कांग्रेस की आंतरिक लड़ाई का शोर समाप्त होने की संभावना है. हालांकि, कहा जा रहा है कि उपचुनाव के बाद ये फिर से शुरू हो सकता है. महाराष्ट्र के चुनावों तक शिवकुमार शांत रह सकते हैं. वहीं इन सब के बीच में सिद्दारमैया अभी भी एक मजबूत स्थिति देखा जा रहा है. उन्होंने कथित धन दुरुपयोग के मामले में मंत्री बी. नागेंद्र को उनकी पोस्ट से हटा दिया है.