आप अमीर हैं, अच्छे घर से आते हैं, इसलिए प्राइवेट कॉलेज में एडमिशन ले लिया, लेकिन अब क्या देश के गावों में ड्यूटी नहीं करेंगे. ये कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के MBBS स्टूडेंट्स को फटकार लगाई. दरअसल, कर्नाटक सरकार की ओर से एक नोटिफिकेशन जारी किया गया. इसमें कहा गया कि कर्नाटक मेडिकल काउंसिल में परमानेंट रजिस्ट्रेशन के लिए एलिजिबल होने के लिए मेडिकल स्टूडेंट्स को एक साल तक गांव में काम करना होगा. सरकार के इन नोटिफिकेशन को चुनौती देते हुए मेडिकल स्टूडेंट्स ने सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर कर दी. इस याचिका पर बुधवार यानी 22 मई को सुनवाई हुई.
मामला जस्टिस पीएस नरसिम्हा और संजय करोल के सामने रखा गया. जैसे ही मामला सुनवाई के लिए आया, जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने अपनी शंकाएं व्यक्त करते हुए कहा कि सिर्फ इसलिए कि कोई छात्र निजी कॉलेज में पढ़ता है, उसे ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने से छूट नहीं दी जा सकती. उन्होंने कहा कि सरकार के नोटिफिकेशन में गलत क्या है? निजी (संस्था) लोगों पर राष्ट्र निर्माण का कोई दायित्व नहीं है? सिर्फ इसलिए कि आप निजी अस्पताल, निजी लॉ कॉलेज में जाकर पढ़ाई करते हैं, आपको ग्रामीण इलाकों में काम करने से छूट है? ये क्या है जो आपको सिर्फ इसलिए छूट देता है क्योंकि आपने निजी मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई की है कि आप ग्रामीण इलाकों में काम नहीं कर सकते?
जब याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने दलील दी कि बैंडविड्थ और भाषा संबंधी मुद्दे हैं, तो जस्टिस नरसिम्हा ने कहा कि तो क्या हुआ? ये बहुत अच्छी बात है कि आप कहीं और जाकर काम करें. आप भारत में आते-जाते हैं और विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में काम करते हैं. ऐसा करना बहुत सुंदर काम है.
जस्टिस ने कहा कि ये छूट क्या है? आपको ये विचार कहां से मिलते हैं? चूंकि आपने अपनी डिग्री खरीदी है ... निजी मेडिकल कॉलेजों को ग्रामीण इलाकों में काम करने के लिए मजबूर या बाध्य नहीं किया जाना चाहिए... क्या आप ऐसा कुछ कह भी सकते हैं? क्या छात्रों को इस तरह बहस करने की अनुमति दी जा सकती है?
मेडिकल स्टूडेंट्स के लिए कर्नाटक सरकार की योजना में कहा गया है कि प्रत्येक एमबीबीएस ग्रेजुएट, प्रत्येक पोस्ट ग्रेजुएट (डिप्लोमा या डिग्री) और प्रत्येक सुपर स्पेशियलिटी कैंडिडेट, जिसने सरकारी यूनिवर्सिटी या किसी प्राइवेट/मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटी में सरकारी सीट पर अपना कोर्स पूरा किया है, उसे एक साल तक गांव में सेवा देना अनिवार्य है. ऐसा करने के बाद ही कैंडिडेट को NOC जारी किया जाएगा और इससे याचिकाकर्ता कर्नाटक मेडिकल काउंसिल के साथ परमानेंट रजिस्ट्रेशन के लिए एलिजिबल हो जाएगा.
याचिका में मेडिकल स्टूडेंट्स की ओर से तर्क दिया गया कि प्राइवेट या डीम्ड यूनिवर्सिटीज में प्राइवेट सीटों पर नॉमिनेटेड कैंडिडेट, जो काफी अधिक लागत पर अपनी पढ़ाई कर रहे हैं, उन्हें अनिवार्य सेवा आवश्यकताओं के अधीन नहीं किया जाना चाहिए.
इसके समर्थन में एसोसिएशन ऑफ मेडिकल सुपर स्पेशियलिटी एस्पिरेंट्स रेजिडेंट्स एवं अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एवं अन्य WP(C) संख्या 376/2018 में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का भी हवाला दिया गया है. इसमें सुप्रीम कोर्ट ने पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल कोर्सेज और सुपर स्पेशियलिटी कोर्सेज में एंट्री के लिए अनिवार्य बांड लागू करने के खिलाफ चुनौती को खारिज कर दिया था.
ये भी देखा गया है कि कुछ राज्य सरकारों ने अनिवार्य बांड में कठोर शर्तें रखी हैं, इसलिए सुझाव दिया गया कि भारत संघ और भारतीय चिकित्सा परिषद, सरकारी संस्थानों में प्रशिक्षित डॉक्टरों की ओर से दी जाने वाली अनिवार्य सेवा के संबंध में एक समान नीति बनाने के लिए कदम उठा सकते हैं.
रिट दायर करने वाले मेडिकल स्टूडेंट्स की ओर से दो निर्देश देने की अपील की गई है.
पहला- स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण सेवा कमिश्नरेट को निर्देश देने के लिए एक आदेश या निर्देश जारी करें कि वे याचिकाकर्ताओं को अनिवार्य ग्रामीण सेवा के किसी भी हलफनामे के अधीन किए बिना आवश्यक एनओसी जारी करें.
दूसरा- याचिकाकर्ताओं के परमानेंट रजिस्ट्रेशन को स्वीकार करने के लिए कर्नाटक मेडिकल काउंसिल को निर्देश देने वाला परमादेश या कोई अन्य उचित रिट, आदेश या निर्देश जारी करें.