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Kargil Vijay Diwas: 16 हजार फीट पर चढ़ाई कर लहरा दिया था तिरंगा, नींबू साहब ने उड़ा दिए थे पाकिस्तानी सैनिकों के होश

Kargil War Vijay Diwas: कैप्टन नेइकेझाकुओ केंगुरुसे को उनके साथी उन्हें 'नींबू साहब' कहकर बुलाते थे.

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Edited By: Gyanendra Tiwari
Kargil Vijay Diwas: 16 हजार फीट पर चढ़ाई कर लहरा दिया था तिरंगा, नींबू साहब ने उड़ा दिए थे पाकिस्तानी सैनिकों के होश

नई दिल्ली. आज पूरा देश कारगिल विजय दिवस का जश्न मना रहा. आज ही के दिन ठीक 24 साल पहले हिंदुस्तान के जाबांजों ने पाकिस्तानी सैनिकों को अपने अदम्य साहस के बल पर धूल चटा दी थी. 26 जुलाई 1999 भारतीय इतिहास के पन्नों की बेहद खूबसूरत तारीख है. भारत माता के वीर सपूतों ने अपनी शहादत देकर कारगिल की विजय गाथा लिख पाकिस्तान के नापाक मंसूबों पर पानी फेर दिया था.

आज के दिन को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है. हमारे सैनिकों ने अपने प्राणों की आहूती देकर हमें इस विजय दिवस का मनाने का अवसर दिया. हम उनके बलिदान को कभी नहीं भूल सकते. कारगिल युद्द की कई कहानियां है. कुछ ऐसी भी कहानियां हैं जिन्हें पढ़ आपकी आंखे गमगीन हो जाएंगी और आप गर्व की अनुभूति करेंगे.

हीरो की कहानी
आज हम आपको इस विजय दिवस के अवसर एक ऐसे ही जाबाज की कहानी बताएंगे जिसने 16 हजार ऊंची चोटी पर बिना जूतों के चढ़ाई कर पाकिस्तान को नेस्तानाबूत किया था. उस हीरो का नाम है शहीद कैप्टन नेइकेझाकुओ केंगुरुसे (Neikezhakuo Kenguruse). मात्र 25 वर्ष की उम्र में देश के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया था.

प्यार से 'नींबू' बुलाते थे साथी
कैप्टन नेइकेझाकुओ केंगुरुसे को उनके दोस्त, और साथी जवान उन्हें 'नींबू साहब' कहकर बुलाते थे. ये नाम भी इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो गया.
कारगिल में जब 'नींबू साहब' ने अपना जूता उतारा! - Story Of Captain Neikezhakuo  Kenguruse The Hero Of Kargil War tarikh - The Lallantop

चढ़ाई के लिए उतर दिए थे जूते
तारीख थी 28 जून, वर्ष था 1999. द्रास सेक्टर में बर्फीली चट्टान पर लगभग -10 डिग्री सेल्सियस का तापमान था. 16 हजार फीट की उचाई थी. दुश्मनों को हराने के लिए ऊपर चढ़कर उनसे दो-दो हांथ करना था. चट्टान पर चढ़ते वक्त पैर फिसल रहे थे. शहीद नींबू साहब ने चढ़ने की कोशिश की तो उनके भी पैर फिसल रहे थे. तो उन्होंने अपने जूते उतार दिए. जूते ही नहीं मोजे भी उतार दिए.

आपको पता ही है कश्मीर में कितनी ठंड पड़ती है. इतनी ठंड में नंगे पांव चोटियों पर चढ़ना कितना खतरनाक था. लेकिन नींबू साहब की देशभक्ति ने आखिरकार उन्हें नंगे पांव ही चट्टान पर चढ़ा दिया.

निंबू साहब 16 हजार फीटी की उचाई पर चढ़ गए. इसके बाद उनके साथी भी चढ़े. दुश्मन की गोलीबारी में कैप्टन केंगुरुसे के पेट में कई गोलियां लगीं. शरीर से लाल  रक्त निकल रहा था. ठंड थी. फिर भी नींबू साहब अपने साथी जवानों का जोश भरते रहे और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते रहे.

घायल होने के बावजूजद लड़ते रहे
गनमशीन से दुश्मन गोलियां बरसा रहे थे. उनके बीच एक चट्टान की दीवार थी. नींबू साहब रॉकेट लेकर चट्टान पर चढ़ गए और गनमशीन को नष्ट कर दिया. इसके बाद उन्हें  4 दुश्मनों को मौत के घाट उतार दिया. इस दौरान वो बुरी तरह से घायल हो गए थे.

पोस्ट को कब्जे में लिया
नींबू साहब के साथियों ने पोस्ट को अपने कब्जे में ले लिया. जैसे ही उन्होंने मुड़क देखा तो उनका हीरों खाई में गिर चुका था. साथियों की आखें आसुंओं से रुक नहीं रही थी. उन्होंने उस दौरान कहा कि "नींबू साहब ये आपकी जीत है. "

नींबू साहब का परिचय

Neikezhakuo Kenguruse

शहीद कैप्टन केंगुरुसे (Neikezhakuo Kenguruse)का जन्म 15 जुलाई 1974 को नेरहेमा में हुआ था.  पिता का नाम नीसेली केंगुरुसे  और माता का नाम दीनुओ केंगुरुसे है. सेनाा में शामिल होने से पहले वह एक प्राइवेट स्कूल में बतौर शिक्षिक पढ़ाया करते थे.

12 दिसंबर 1998 को उन्हें भारतीय सेना में नियुक्त किया गया था. वह भारतीय सेना की सेना सेवा कोर (ASC) और 2 रजपूताना राइफल्स के साथ कार्य किया. वह एएससी से महावीर चक्र से सम्मानित करने वाले एकमात्र ऑफिसर हैं.  

नींबू साहब योद्धा समुदाय से ताल्लुकात रखते थे. उनके परदादा ने उन्हें सेना में जाने के लिए प्रेररित किया था.

महावीर चक्र से सम्मानित
भारतीय सेना की सर्वोच्च परंपरा में अदम्य संकल्प, प्रेरक नेतृत्व और आत्म बलिदान प्रदर्शित करने के लिए कैप्टन केंगुरुसे (नींबू साहब) को मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था.

आपको बता दें कि कारगिल युद्द की शुरुआत 3 मई 1999 को हुई थी और  26 जलाई 1999 को भारत ने इस युद्द को जीतकर खत्म कर दिया था. आज के दिन मां भारतीय के वीर सपूतों को उनके सर्वोच्चय बलिदान के लिए याद किया जाता है. शहीद कैप्टन नेइकेझाकुओ केंगुरुसे समेत उन सभी शहीदों की शहादत को कभी नहीं भुलाया जा सकता है.

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