Captain Vikram Batra: जब किसी करीब 20 साल के लड़के का सिलेक्शन अच्छी सैलरी पर विदेश में मर्चेंट नेवी में नौकरी मिल जाए, तो उसके लिए इससे अच्छा क्या ही होगा. ऐसे कई लड़के होते भी हैं, जो अच्छे पैकेज पर अपने देश, अपने घर-परिवार से दूर विदेशों में नौकरी कर रहे हैं. लेकिन इनमें से कुछ ऐसे ही होंगे, जो आखिर वक्त में विदेश जाने के ख्वाब और अच्छी सैलरी को दरकिनार कर देश सेवा के रूप में मां भारती की सेवा में जुट जाते हैं. कुछ ऐसे ही थे हिमाचल प्रदेश के पालमपुर के कैप्टन विक्रम बत्रा. उन्होंने मां भारती की सेवा भी ऐसी की कि भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाजा. आइए, हम इस जाबांज की कहानी आपको बताते हैं.
कैप्टन विक्रम बत्रा की जाबांजी की कहानी का छोटा सा नमूना ये कि उनका नाम सुनकर आज भी पाकिस्तानी सेना की रूह कांप जाती है. कहा जाता है कि जब कारगिल वॉर चल रहा था, तब पाकिस्तानी आर्मी के लिए सबसे बड़ी चुनौती विक्रम बत्रा ही थे. पाकिस्तानी आर्मी के जवान सीधे मुंह विक्रम बत्रा का नाम तक नहीं लेते थे और उन्होंने विक्रम बत्रा के लिए एक कोडनेम रखा, पाकिस्तानी आर्मी विक्रम बत्रा को 'शेरशाह' नाम से पुकारने लगे. इसका जिक्र खुद कैप्टन विक्रम बत्रा ने कारगिल वॉर के दौरान एक इंटरव्यू में किया था.
स्कूल की टीचर कमलकांता और सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल गिरधारी लाल बत्रा के घर 9 सितंबर को किलकारियां गूंजी थीं. हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में रहने वाले इस परिवार के घर नन्हें बच्चे का जन्म हुआ, जिसका नाम विक्रम रखा गया. विक्रम पहाड़ की वादियों में धीरे-धीरे बड़े होने लगे. कहा जाता है कि विक्रम बत्रा का जहां घर था, वो कैंटोन्मेंट एरिया था. विक्रम, बचपन से ही अपने आसपास सैनिकों को देखते आ रहे थे. शायद ये भी एक वजह थी कि उनके दिल में सेना और देश के लिए इतना प्यार था.
बत्रा ने पालमपुर के डीएवी और सेंट्रल स्कूल से शुरुआती पढ़ाई की. इसके बाद कॉलेज की पढ़ाई के लिए चंडीगढ़ आ गए. यहां डीएवी कॉलेज में एडमिशन लेने के बाद उन्होंने साइंस में ग्रैजुएशन किया. कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही विक्रम बत्रा NCC एयर विंग में शामिल हो गए.
1994 में विक्रम बत्रा का सिलेक्शन मर्चेंट नेवी के लिए हो गया था, लेकिन उन्होंने आखिर में अपना इरादा बदल दिया और अंग्रेजी से एमए की पढ़ाई के लिए पंजाब यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले लिया. ये वो दौर था, जब विक्रम बत्रा के दिमाग में कुछ और चल रहा था. ये देश सेवा के लिए जज्बा ही था, क्योंकिक पंजाब यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेने के करीब एक साल बाद उन्होंने CDS की परीक्षा दी और उनका सिलेक्शन हो गया. जून 1996 में मानेकशॉ बटालियन में IMA (इंडियन मिलिट्री एकेडमी) में शामिल हो गए. ट्रेनिंग के बाद दिसंबर 1997 में जम्मू के सोपोर में उन्हें लेफ्टिनेंट के पोस्ट पर नियुक्त किया गया.
कहा जाता है कि जब भी विक्रम बत्रा काफी दिनों तक घर नहीं लौटते थे, तब उनके परिजन और दोस्त पूछते थे कि विक्रम कब आओगे? जवाब में उनका कहना होता था कि या तो मैं तिरंगा फहराकर आऊंगा, या मैं उसमें लिपटा हुआ आऊंगा, लेकिन मैं वापस आऊंगा.
साल 1999... महीना जून... नापाक हरकतों के लिए पूरे दुनिया में मशहूर पाकिस्तानी सेना ने भारत की दो चोटियों पर अवैध कब्जा कर लिया. पाकिस्तानी सेना के जवान लगातार ऊंचाई से नीचे मौजूद भारतीय सैनिकों पर गोलियां चला रहे थे. ये वो वक्त था, जब विक्रम बत्रा के बटालियन को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जाने का आदेश मिला था. लेकिन कुछ दिनों में ही ये आदेश बदल गया और उनके बटालियन को जम्मू-कश्मीर के द्रास भेज दिया गया. 6 जून को लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा अपनी जम्मू और कश्मीर राइफल्स बटालियन के साथ द्रास पहुंच गए.
विक्रम बत्रा और उनके बटालियन के द्रास पहुंचने के बाद सेना की ओर से 18 ग्रेनेडियर्स बटालियन को तोलोलिंग पर्वत फतह का आदेश मिला. कहा जाता है कि कई प्रयासों के बाद बटालियन इसे फतह करने में नाकाम रही. इसके बाद सेना ने ये जिम्मेदारी दूसरी बटालियन-राजपुताना राइफल्स (2 RJ RIF) को दी, जिसे रिजर्व में बने रहने को कहा गया था. आदेश मिलते ही राजपूताना राइफल्स ने 13 जून 1999 को तोलोलिंग पर्वत पर कब्जा कर पाकिस्तानी आतंकियों को मार भगाया. इसके अलावा, भारतीय जवानों ने हंप कॉम्प्लेक्स के एक हिस्से पर भी कब्जा कर लिया.
पहली सफलता के बाद तत्कालीन कमांडिंग अफसर योगेश कुमार जोशी ने 'प्वाइंट 5140' पर फतह की योजना बनाई. उन्होंने इसके लिए दो टीमों का गठन किया. पहली टीम की जिम्मेदारी लेफ्टिनेंट संजीव सिंह जामवाल को मिली, जबकि दूसरी टीम की कमान लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा को दिया. कमांडिंग अफसर की ओर से दोनों टीमों को आदेश दिया और बताया कि रणनीति ये है कि 'प्वाइंट 5140' पर दो तरफ से हमला बोलना है.
समय का इंतजार किया जाने लगा. करीब 6 दिन बाद यानी 19 जून को जामवाल और बत्रा अपने बटालियन के साथ आगे बढ़े. नीचे से भारतीय जवान पाकिस्तानियों पर तोपों से फायरिंग करते रहे. रणनीति बनी थी कि जब दोनों बटालियन पाकिस्तानी सैनिकों से 200 मीटर दूर रहेगी, तब तोपों से फायरिंग बंद कर दी जाएगी. हुआ भी ऐसा ही.
जब भारतीय तोपों की फायरिंग बंद हुई तो कायर पाकिस्तानी जवान अपने बंकरों से निकले और ऊंचाई से भारतीय जवानों पर फायरिंग करने लगे. जामवाल और बत्रा की बटालियन ने ये देख आर्टिलरी से कनेक्ट किया और नीचे से तोप से फायरिंग जारी रखने को कहा. धीरे-धीरे जामवाल और बत्रा की टुकड़ी आतंकियों से मात्र 100 मीटर की दूरी पर पहुंच गई.
पाकिस्तानी दुश्मनों के पास पहुंचते ही सबसे पहले जामवाल ने प्वाइंट 5140 पर पहुंचने के बाद रेडियो पर जीत का संदेश भेजा. इसी दौरान दूसरी ओर से प्वाइंट 5140 पर पहुंच रहे लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा की टुकड़ी ने पाकिस्तानी सेना पर हमला कर दिया. उनकी टीम ने पाकिस्तानी सेना के बंकरों पर रॉकेट दागे. उधर से पाकिस्तानी आर्मी भी लगातार बत्रा की टीम पर फायरिंग करती रही.
कहा जाता है कि अपनी टीम को बचाने के लिए अपनी जान हथेली पर रखते हुए लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा ने पाकिस्तानी सेना के मशीन गन पोस्ट पर दो ग्रैनेड फेंक दिए. उन्होंने 3 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया. इसी दौरान लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा घायल भी हो गए, इसके बावजूद उन्होंने पाकिस्तानी सेना के कब्जे में मौजूद अगले पोस्ट पर भी कब्जा जमाया. जीत के बाद ही उन्होंने रेडियो पर जीत का संदेश भेजा और 'ये दिल मांगे मोर' कहा.
प्वाइंट 5140 पर फतह के बाद लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा को इनाम दिया गया और उन्हें कैप्टन के पद पर प्रमोट कर दिया गया. कहा जाता है कि सेना का अगला टारगेट 'प्वाइंट 4875' था. इस प्वाइंट से करीब 1500 मीटर दूर फायर सपोर्ट बेस पर कैप्टन विक्रम बत्रा की बटालियन को तैनात किया गया था.
'प्वाइंट 4875' को दुश्मनों के कब्जे से मुक्त कराने के लिए 4 जुलाई 1999 की शाम 6 बजे भारत के जवानों पर चढ़ाई शुरू की. कहा जाता है कि रात भर बिना रूके भारतीय जवानों ने पाकिस्तानियों पर फायरिंग की. जब टीम प्वाइंट 4875 पर फतह के लिए बढ़ रही थी, तब कैप्टन विक्रम बत्रा की तबीयत ठीक नहीं थी और वे फायर सपोर्ट बेस पर इंतजार कर रहे थे.
उधर, प्वाइंट 4875 पर कब्जे के लिए बढ़ रही दो टीमें लगातार दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दे रही थी. नीचे से कमांडिंग अफसर जोशी भी अपने सैनिकों को कवर कर रहे थे. बेस में मौजूद कैप्टन विक्रम बत्रा लगातार स्थिति पर नजर रखे हुए थे. जब उन्होंने साथियों को फंसा देखा तो उन्होंने कमांडिंग अफसर से ऊपर जाने की अनुमति मांगी.
कैप्टन विक्रम बत्रा ने आगे बढ़ते हुए ताबड़तोड़ दुश्मनों परजवाबी कार्रवाई की. कैप्टन विक्रम बत्रा का नाम सुनकर पाकिस्तानी सैनिकों की हालत पस्त हो गई. कहा जाता है कि कैप्टन विक्रम बत्रा ने प्वाइंट 4875 पर कब्जे से पहले कुल 9 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया. इसी दौरान उन्हें पता चला कि पाकिस्तानी सैनिकों की गोली से दो जवान घायल हो गए. जानकारी के बाद कैप्टन विक्रम बत्रा अपने साथी रघुनाथ सिंह के साथ घायल जवानों को फायर सपोर्ट बेस की ओर लाने लगे. तभी दुश्मनों की एक गोली कैप्टन विक्रम बत्रा को लग गई. कहा जाता है कि गोली लगने के कुछ घंटे बाद कैप्टन विक्रम बत्रा शहीद हो गए. हालांकि, उनकी बटालियन के जवानों ने तबाड़तोड़ फायरिंग कर प्वाइंट 4875 पर कब्जा जमा ही लिया. उनके अदम्य साहस के लिए अगस्त 1999 में परमवीर चक्र से नवाजा गया.