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Kanchanjunga Express Accident: ट्रेन के बोगियों में अटकी जानें, दम तोड़ते लोग, एंबुलेंस-रेस्क्यू टीमें नदारद, क्यों हुआ था ऐसा?

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में हुए ट्रेन हादसे के 2 से 3 घंटों बाद NDRF टीम मौके पर पहुंची थी. उससे पहले ग्रामीण और स्थानीय लोगों ने जी-जान से लगकर लोगों को बाहर निकालने में जान झोंक दी. लोगों की जान बोगियों में फंसी थी, चीख पुकार मची हुई थी. अगर सिर्फ एनडीआरएफ टीम के भरोसे लोग रहते कुछ और लोगों की जान जा सकती है.

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Edited By: India Daily Live
Kanchanjunga Express Accident
Courtesy: Social Media

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में कंचनजंगा एक्सप्रेस हादसे ने देश को झकझोर कर रख दिया है. जो लोग हादसे का शिकार हुए हैं, उन पर क्या बीती होगी, यह सोचकर भी डर लगता है. कई लोग घंटो तक ट्रेन में अटके रहे और बचाव टीमों का इंतजार करते रह गए. स्थानीय लोग अगर न होते तो कुछ और लोगों की जान जा सकती थी. स्थानीय लोगों का कहना है कि एनडीआरएफ की टीम, हादसे के 3 घंटे बाद पहुंची है, तब तक स्थानीय लोगों ने जहां तक संभव हुआ, लोगों को बाहर निकालने की कोशिश की.

सोमवार को हुई इस दुर्घटना के बाद सबसे पहले ग्रामीण पहुंचे. वे अपने साथ चिमटे, हथौड़े, फावड़े और छीनी लेकर पहुंचे, जिससे जरूरत पड़ने पर ट्रेन के लोहे की परत को काटा जा सके और लोगों को बाहर निकाला जा सके. भारी बारिश के बीच, रेलवे कर्मियों और एनडीआरएफ की रेस्क्यू टीम के पहुंचने से बहुत पहले ही लोग देवदूत बनकर ट्रन में फंसे लोगों को बाहर निकाल रहे थे.

2 से 3 घंटे बाद पहुंची NDRF की टीम 

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक स्थानीय लोगों ने ट्रेन में हुए घायलों और मृतकों को बोगियों से बाहर निकाला. लोगों को स्थानीय प्रशासन ने अस्पताल भेजना शुरू कर दिया था. बचाव टीम में शामिल स्थानीय लोगों का कहना है कि रेलवे की एक टीम दुर्घटना के करीब दो घंटे बाद सुबह 10.45 बजे घटनास्थल पर पहुंची थी. एनडीआरएफ टीम इसके बाद पहुंची. तब तक लगभग सभी घायलों को बचा लिया गया था. ज्यादातर शव बरामद कर लिए गए थे. NDRF की टीम 3 घंटे बाद पहुंची

एंबुलेंस के लिए तरसते रहे घायल

न्यू जलपाईगुड़ी जंक्शन दुर्घटना स्थल से केवल 11 किमी दूर है. रेलवे और एनडीआरएफ दोनों ने देरी से पहुंचने के आरोपों का खंडन किया है. उनका कहना है कि वे हादसे के तत्काल बाद पहुंचे हैं. वहीं निर्मल जोत के स्थानीय लोगों का कहना है कि बचाव दल देर से पहुंचा है. उन्होंने कहा कि पहले एंबुलेंस नहीं मिला, कई घायलों को ई-रिक्शा में अस्पताल ले जाया गया.

घर के बर्तनों से तोड़े ट्रेन के दरवाजे 

टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में मोहम्मद हासिम नाम के एक शख्स ने बताया कि उन्होंने छीनी और हथौड़े से दरवाजा तोड़ा, जिससे फंसे लोगों को बाहर निकाला जा सके. बारिश हो रही थी, इसलिए ज्यादातर कोच की खिड़कियां बंद थीं. उन्होंने कहा कि हमने खिड़कियों को खोलने और घायलों को बाहर निकालने के लिए बर्तनों तक का इस्तेमाल किया है.

लोगों को बचाते वक्त मददकार का कटा हाथ

एक स्थानीय शख्स ने बताया कि यात्री को बचाते हुए उसका हाथ कट गया था. वहां कोई एंबुलेंस मौके पर नहीं थी. लोगों ने प्राइवेट गाड़ियां किराए पर ली और घायलों को उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में भर्ती कराया.

क्या है NDRF की सफाई?

NDRF के एक अधिकारी ने कहा कि उन्हें सुबह 10.05 बजे दुर्घटना के बारे में जानकारी मिली. उन्होंने कहा कि तीन टीमों में से पहली टीम सुबह 10.40 बजे मौके पर पहुंच गई थी. अधिकारी ने कहा, 'तीन लाशें थीं. मालगाड़ी के लोको पायलट और सह-पायलट और कंचनजंगा एक्सप्रेस के गार्ड के शव क्षत-विक्षत अवस्था में फंसे थे. हम उन्हें निकाल ले गए.' अधिकारी ने कहा, 'हमारा रेस्क्यू 2 बजे तक पूरा हो गया था.  

कितने लोगों की हुई है मौत?

कंचनजंगा एक्सप्रेस हादसे में अब तक 15 लोगों की मौत हो चुकी है, वहीं 60 से ज्यादा लोग घायल हैं. इस हादसे में लोकोपायलट की लापरवाही सामने आई है. उन्होने सिग्नल नहीं देखा था, ऐसा दावा किया जा रहा है. कवच का न होना भी हादसे के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है. पूरे केस की छानबीन जारी है.