शनिवार को एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में जस्टिस यशवंत वर्मा ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज के रूप में शपथ ली. उन्हें दिल्ली हाई कोर्ट से ट्रांसफर कर इलाहाबाद हाई कोर्ट में यह जिम्मेदारी सौंपी गई है. हालांकि, हैरानी की बात यह है कि जस्टिस वर्मा को फिलहाल कोई न्यायिक कार्य नहीं सौंपा जाएगा. इस निर्णय के पीछे एक गंभीर कारण छिपा है, जिसने कानूनी और प्रशासनिक हलकों में चर्चा छेड़ दी है.
जस्टिस यशवंत वर्मा पर अपने आधिकारिक परिसर से नकदी बरामद होने के आरोप हैं, जिसके चलते वे एक जांच का सामना कर रहे हैं. इस मामले की गंभीरता को देखते हुए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने तीन जजों की एक विशेष समिति गठित की है, जो इस पूरे मामले की जांच कर रही है. सुप्रीम कोर्ट ने 28 मार्च को इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को एक स्पष्ट निर्देश जारी किया था. इस निर्देश में कहा गया था कि जस्टिस वर्मा के इलाहाबाद हाई कोर्ट में जज के रूप में कार्यभार संभालने के बाद उन्हें किसी भी तरह का न्यायिक काम नहीं दिया जाए, जब तक कि जांच पूरी न हो जाए.
शनिवार को हुए शपथ ग्रहण समारोह में जस्टिस वर्मा ने औपचारिक रूप से अपनी नई जिम्मेदारी संभाली. समारोह में इलाहाबाद हाई कोर्ट के अन्य जज, वकील और प्रशासनिक अधिकारी मौजूद थे. हालांकि, शपथ लेने के बावजूद उनके चेहरे पर तनाव के संकेत साफ नजर आ रहे थे, क्योंकि जांच का बोझ उनके ऊपर बना हुआ है.
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की ओर से बनाई गई तीन जजों की एक कमिटी जस्टिस यशवंत वर्मा मामले की जांच कर रही है. सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस यशवंत वर्मा के ट्रांसफर मामले में 28 मार्च को इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को एक निर्देश दिया था.