Jharkhand Politics History: मेरा नाम झारखंड है... मेरा जन्म नवंबर 2000 में हुआ. मेरे अंदर खनिज संपदा का खदान है... लेकिन आप हैरान होंगे कि न सिर्फ खनिजों का खदान है, बल्कि मेरे अंदर राजनीतिक खदान भी है. मेरी उम्र 23 साल है और मैंने अपने छोटे से जीवनकाल में 11 मुख्यमंत्रियों को देखा है. क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों है? आइए, मैं आपको अपनी कहानी सुनाता हूं.
जरा ठहरिए... कहानी सुनाने से पहले आपको कुछ और जानकारी देना चाहता हूं जो आपके लिए जरूरी है. मेरे 23 साल की उम्र के बीच तीन मौके ऐसे भी आए, जब मैं 'अनाथ' (राष्ट्रपति शासन) हो गया. इस दौरान मेरा लालन पालन कैसे हुआ, मैं ही जानता हूं. हां मैं आपको एक ऐसी भी बात बताता हूं जिसका आपको गौरव होगा. मैं देश का इकलौता ऐसा राज्य हूं, जहां निर्दलीय उम्मीदवार मुख्यमंत्री बना. उसने एक, दो दिन या फिर एक दो महीने नहीं बल्कि पूरे दो साल तक मुझ पर शासन किया. खैर... आगे की कहानी और इंट्रेस्टिंग है... आइए, आपको फ्लैशबैक में ले चलता हूं.
15 नवंबर 2000 को मुझे राज्य का दर्जा दिया गया और बिहार के गर्भ से निकलकर मैं इस दुनिया में आया. पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के बाद कुल 5 अन्य मुख्यमंत्रियों ने मुझ पर शासन किया है लेकिन उनका कार्यकाल अलग-अलग रहा है. बाबूलाल मरांडी के हाथों से जब सत्ता की बागड़ोर छूटी तो इसे अर्जुन मुंडे ने थामा. बाबूलाल मरांडी 5 नवंबर 2000 से 17 मार्च 2003 तक मुख्यमंत्री थे. इसके बाद अर्जुन मुंडा आए, जिन्होंने 18 मार्च 2003 से 01 मार्च 2005 तक शासन किया.
अर्जुन मुंडे के बाद जो मुख्यमंत्री आए, वो तो पहली बार में मात्र 10 दिनों तक ही मुख्यमंत्री रहे. बात कर रहा हूं हेमंत सोरेन के पिता शिबू सोरेन की. बिहार से अलग होकर अलग झारखंड बनवाने में शिबू सोरेन का अहम किरदार माना जाता है. लेकिन जब उन्हें पहली बार मौका मिला तो वे मात्र 10 दिन तक ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ सके. शिबू 02 मार्च 2005 को मुख्यमंत्री बने, लेकिन 11 मार्च को उन्होंने इस्तीफा दे दिया. 'गुरुजी' कहे जाने वाले शिबू सोरेन निवर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के पिता हैं, जिन्हें भूमि घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गिरफ्तार किया है. ये पहली बार नहीं है, जब मेरी कमान संभालने वाले किसी मुख्यमंत्री को गिरफ्तार किया गया है. हेमंत से पहले उनके पिता और मधु कोड़ा भी गिरफ्तार किए गए थे. हालांकि उनका मामला थोड़ा अलग था.
एक के बाद एक मुख्यमंत्रियों को देखने का जो सिलसिला शुरू हुआ, वो अब तक जारी है. मैंने काफी राजनीतिक अस्थिरताओं और सत्ता परिवर्तन को झेला है. अब मुझे तो इसकी आदत हो गई है और मुझे राज्य के 12वें मुख्यमंत्री का इंतजार है. सच कहूं तो अपने अपने 23 साल के छोटे से उम्र में मैंने सिर्फ एक मुख्यमंत्री को पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा करते देखा है. वो रघुवर दास हैं, जो 2014 से 2019 तक बिना किसी रूकावट के मुख्यमंत्री रहे. अगर मैं ये कहूं कि यही वो पांच साल था, जब मेरा थोड़ा बहुत विकास हुआ, तो आप इसे राजनीतिक बयानबाजी न समझिएगा, क्योंकि जब राज्य की सत्ता स्थित होती है तो विकास की संभावना ज्यादा होती है... मेरा क्या मैं तो एक राज्य हूं, आप इंसान हैं, आप इसे बेहतर समझेंगे.
जब कोई बच्चा बड़ा होता है, तो उसके विकास में टीनएज का काफी बड़ा रोल होता है... ये मुझपर भी लागू होता है, लेकिन आपके बच्चों की तरह मेरी किस्मत ठीक नहीं थी. साल 2000 से लेकर 2014 के बीच यानी 14 सालों में मैंने पांच मुख्यमंत्रियों के नेतृत्व में 9 सरकारें देख लीं. इस बीच मैंने तीन बार यानी कुल 645 दिन के राष्ट्रपति शासन का दंश भी झेला. इस बीच जो मुख्यमंत्री रहे, उनमें बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, शिबू सोरेन, मधु कोड़ा और हेमंत सोरेन शामिल हैं. इन सभी के कार्यकाल का औसत निकाला जाए तो ये करीब 15 महीने निकलेगा.
14 सालों में झामुमो के शिबू सोरेन और भाजपा के अर्जुन मुंडा ने तीन-तीन बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, जबकि हेमंत सोरेन, मधु कोड़ा और बाबूलाल मरांडी एक-एक बार मुख्यमंत्री बने. जब 2014 का विधानसभा चुनाव आया तो एक मामूली शख्स रघुवर दास के नेतृत्व में सरकार बनी. मुझे डर था कि पिछली सरकारों की तरह एक बार फिर मुझे राजनीतिक अस्थिरता का दंश न झेलना पड़ जाए, लेकिन इस बार मैंने खुद को खुशनसीब पाया. 2014 के बाद झारखंड में राजनीतिक स्थिति स्थिर हुई और रघुबर दास ने मुख्यमंत्री के रूप में पहली बार कार्यकाल पूरा किया. इसके बाद हेमंत सोरेन ने सरकार बनाई, लेकिन एक बार फिर उनका कार्यकाल पूरा नहीं हो पाया और मुझे अस्थिरता का सामना करना पड़ा.