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जिन्हें नहीं था लोकतांत्रिक भारत में ऐतबार, वे भी लड़ेंगे चुनाव, समझिए कैसा है नए दौर का जम्मू और कश्मीर

Jammu Kashmir Assembly Elections 2024: कश्मीर में अलगाववादी नेताओं के अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों में शामिल होने पर बीजेपी के मीडिया इंचार्ज साजिद युसुफ कहते हैं कि भले ही ये नेता किसी भी राजनीतिक दल में शामिल हों, यह एक अच्छी पहल है. वे भारत के लोकतंत्र को स्वीकार कर रहे हैं. उन्होंने लोकतंत्र पर आस्था जताया है. जो कभी बायकॉट कहते थे, अब वे उन्हीं लोकतांत्रिक पार्टियों का हिस्सा बन रहे हैं.

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Edited By: India Daily Live
Mehbooba Mufti and Sayyed Saleem Gilani
Courtesy: x.com/jkpdp

Jammu Kashmir Assembly Elections 2024: जम्मू और कश्मीर विधानसभा चुनाव 2024 में अब अलगाववादी भी चुनावी मैदान में उतर रहे हैं. आतंकवादियों को समर्थन और भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के बाद अब नए कश्मीर में लोकतंत्र की आमद इन्हें भी भा रही है. हुर्रियत के एक पुराने नेता और जमात-ए-इस्लामी से जुड़े नेताओं अब चुनाव में हिस्सा लेने के लिए तैयार हो रहे हैं. वे उन राजनीतिक पार्टियों का दामन थाम रहे हैं, जिन्हें हिंदुस्तान के लोकतंत्र में भरोसा है.  

जम्मू-कश्मीर में कभी अलगवावादी नेतृत्व को धार देने वाले नेता भी अब मुख्य धारा की राजनीति में उतर रहे हैं, जिसका स्वागत, भारतीय जनता पार्टी (BJP) भी कर रही है. अलगाववादी नेताओं में सबसे बड़ा नाम सैय्यद सलीम गिलानी का है. उन्होंने पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) की सदस्यता ले ली है. पीडीपी भारतीय संविधान में भरोसा करने वाली पार्टी है.

कभी 'लोकतंत्र' के खिलाफ थे, अब चुनाव लड़ेंगे 

सैय्यद सलीम गिलानी एक वक्त में कश्मीर नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) के अध्यक्ष रह चुके हैं. यह वही पार्टी है जो हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की शाखा रही है, जिसका नेतृत्व खुद मीरवाइज उमर फारूक संभाल चुका है. हुर्रियत की कमान गिलानी को साल 2005 में मिल गई थी. यही कश्मीरी पंडितों की घरवापसी को लेकर मध्यस्थ भी रहा है. गिलानी और दूसरे कई नेता मीरवाइज के खिलाफ बगावत कर बैठे थे. उन्होंने आरोप लगाया था कि मीरवाइज हुर्रियत के 1993 में तय किए गए संविधान की धज्जियां उड़ा रहा है. गिलानी, हिंदुस्तान की सरकार से बातचीत करने तक के लिए तैयार नहीं था, अब वह कश्मीर में चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो रहा है. 

अतीत को लेकर नहीं है पछतावा 

बस सवाल ये है कि उसे अपने हुर्रियत के अतीत को लेकर कोई पछतावा नहीं है. महबूबा मुफ्ती के सामने उसने कहा है कि इकलौती यही पार्टी ऐसी है, जिसे कश्मीर की आवाम की चिंता है, यहां के मानवाधिकारों की फिक्र है और बेसिक सुधारों से मोहब्बत है. 

चुनावी मैदान में गुलाम मोहम्मद का बेटा 

हुर्रियत नेता गुलाम मोहम्मद हब्बी का बेटा जाविद हब्बी, अब इंजीनियर राशिद की पार्टी आवामी इत्तेहाद पार्टी (AIP) के टिकट पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा है. वह चरार-ए-शरीफ विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहा है. इंजीनियर राशिद खुल जेल में है और जेल से ही लोकसभा चुनाव जीत गया है.

संविधान के अनुच्छेद 370 हटने के बाद ओमर अब्दुल्ला को बारामुला सीट से हरा दिया था और सज्जाद लोन का भी गेम बिगाड़ दिया. जाविद के पिता गलाम हब्बी पेशे से डॉक्टर हैं. वे सरकारी डॉक्टर थे लेकिन अब्दुल गनी लोन के नेतृत्व वाली पीपुल्स कॉन्फ्रेंस में शामिल होने के लिए उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया था. 

साल 2002 में सज्जाद लोन पर विधानसभा चुनावों में प्रॉक्सी उम्मीदवार उतारने के आरोप लगे थे. गुलाम हब्बी और उसके भाई बिलाल को पीपुल्स कॉन्फ्रेंस से बाहर निकाल दिया था. जाविद पेशे से एक वकील है और अब अपने पिता की राह पर AIP से टिकट चाह रहा है. 

अलगाववादियों का PDP बना नया ठिकाना 

साल 2014 में चरार-ए-शरीफ विधानसभा से पीडीपी के टिकट पर गुलाम नबी लोन हुंजारा ने चुनाव जीता था. उन्होंने नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता अब्दुल रहीम रादर को हरा दिया था, वे राज्य के वित्त मंत्री भी थे. पीडीपी ने अलगाववादी नेता आगा मुंतजिर मेंहदी पर भी भरोसा जताया है. वह हुर्रियत का कार्यकारी सदस्य भी रह चुका है. उसे बडगाम से टिकट मिला है. इस सीट से उसके चचेरे भाईओ आगा रुहुल्लाह लड़ते रहे हैं. इनका परिवार भी अलगाववाद आंदोलन में शामिल रहा है. 

इन उम्मीदवारों के नाम की भी है चर्चा

दक्षिण कश्मीर में सक्रिय अल्ताफ अहमब भट भी चुनावी मैदान में है. बशीर अहमद भट का वह भाई है जो हुर्रियत के बड़े नेताओं में शुमार होता था. अल्ताफ भट भी AIP के टिकट पर चुनाव लड़ रहा है. वह राजपोरा विधानसभा से चुनावी मैदान में उतरने के लिए तैयार है. 

क्या अलगाववादियों को रास आएगा लोकतंत्र?

जमात-ए-इस्लामी निर्दलीय उम्मीदवार कलीमुल्लाह के साथ है. वह गुलाम कादिर लोन का बेटा है. हुर्रियत नेता नईम अहम खान का बेटा मुनीर खान भी चुनावी मैदान में है. वह बारामुला से चुनाव लड़ रहा है. पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की सर्वेसर्वा महबूबा मुफ्ती का कहना है कि अलगाववादियों का मुख्यधारा में लौटना सुखद है. लोकतंत्र को वे स्वीकार कर रहे हैं. अब जिस पार्टी के विरोध में वे हमेशा सड़कों पर थे, उसी में रहकर, उनका क्या रुख होता है, यह देखने वाली बात होगी.