हर दिन एनकाउंटर, जवानों की मुठभेड़ में मौत, कैसे कश्मीर में होंगे विधानसभा चुनाव?

जम्मू और कश्मीर, स्थिरता से एक बार फिर अस्थिरता की ओर आगे बढ़ रहा है. अनंतनाग, राजौरी, शिवखोड़ी से लेकर डोडा तक, हर जगह, बार-बार आतंकी हमले हो रहे हैं. निशाने पर आम नागरिकों से लेकर सुरक्षाबल तक हैं. चुनाव आयोग, जल्द ही यहां चुनाव आयोजित कराना चाहता है. हिंसा में सुलग रही घाटी, चुनावों के लिए कैसे तैयार होगी, आइए समझते हैं.

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जम्मू और कश्मीर (Jammu and Kashmir) में चुनाव आयोग, विधानसभा चुनाव कराने की तैयारी में है.  चुनावों के ऐलान से पहले राजनीतिक हलचल तेज हो गई है. उपराज्यपाल की ताकतें, अचानक केंद्र सरकार ने बढ़ा दी है, वहीं भारतीय जनता पार्टी (BJP) अध्यक्ष रविंद्र रैना भी चुनावी मोड में उतर आए हैं. राजनीतिक हलचलों का साफ इशारा है कि चुनाव जल्द से जल्द होने वाले हैं. 

सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में 30 सितंबर 2024 तक विधानसभा के गठन के लिए जोर दिया है. तारीखें नजदीक आ रही हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद कह चुके हैं कि केंद्र शासित प्रदेश में जल्द ही चुनाव कराए जाएंगे. 5 अगस्त 2019 के बाद से कई राज्यों में सरकारें बदल गईं, कई बार चुनाव हो गए लेकिन जम्मू और कश्मीर के लोग सिर्फ इंतजार में रहे. 

21 नवंबर 2018 को कश्मीर में राज्यपाल ने विधानसभा भंग कर दी थी. 7 साल से कश्मीर घाटी में विधानसभा चुनाव ही नहीं हुए हैं. ऐसे आसार हैं कि चुनाव हो भी नहीं पाएंगे. अनंतनाग, राजौरी, शिवखेड़ी, डोडा, श्रीनगर न जाने कितने ऐसे इलाके हैं, जहां आए दिन सेना और आतंकियों के बीच मुठभेड़ हो रही है. अब पर्यटक तक सुरक्षित नहीं हैं. आतंकी पीर पंजाल की पहाड़ियों की ओर शिफ्ट हो गए हैं.

जम्मू की ओर शिफ्ट हो चुके हैं आतंकी 

दशकों से शांत रहने वाले जम्मू की ओर आतंकी शिफ्ट कर गए हैं. राजौरी, रियासी, कठुआ और डोडा जैसे इलाकों में जमकर आतंकी तांडव मचा रहे हैं. ऐसी खबरें सामने आईं जब आतंकियों ने आम लोगों के घर में घुसकर बंदूक की नोक पर खाना बनवाया और हंगामा किया. 

एक महीने, 7 हमले, आतंकियों के लिए जन्नत बने पीर पंजाल के जंगल

अगर सिर्फ जम्मू की ही बात करें तो 7 से ज्यादा बार ये इलाका दहल चुका है. कश्मीर टाइगर, द रिजस्टेंश फ्रंट, लश्कर-ए-तैयबा, हिजबुल मुजाहिदीन और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों ने इन हमलों को अंजाम दिया है. अस्थिरता इतनी है कि 2019 से अब तक, दर्जनों कश्मीरी पंडित मारे जा चुके हैं, 3 साल में 48 से ज्यादा सुरक्षाबलों के जवान खत्म हो चुके हैं. 

अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद घाटी में सैन्य तैनाती बढ़ाई गई तो आतंकी अपने संगठनों के नाम बदलने लगे. वे नए नामों से सामने आने लगे. जैश और कश्मीर टाइगर्स हर आतंकी हमले की जिम्मेदारी बढ़-चढ़कर लेने लगे हैं. सिर्फ जम्मू की बात करें तो अब तक बड़े 7 हमले हो चुके हैं.

ये है सुरक्षाबलों पर आतंकी हमलों की टाइमलाइन 

9 जून 2024 को जम्मू के रियासी जिले के शिवखोड़ी में आतंकियों ने तीर्थयात्रियों की बस पर गोली बरसा दी. 9 यात्रियों ने मौके पर दम तोड़ दिया. ठीक 2 दिन बाद, कठुआ में सेना के काफिले पर हमला हुआ, 1 जवान शहीद हो गया, वहीं 2 आतंकी मारे गए. 12 जून को डोडा में एक ही दिन में दो बार हमले हुए, 5 जवान गंभीर रूप से जख्मी हो गए. 

26 जून को डोडा में मुठभेड़ हुई और 3 आतंकी खत्म हो गए. 7 जुलाई को राजौरी में आतंकियों ने राज्य पुलिस के कैंप पर ही फायरिंग कर दी. 8 जुलाई को कठुआ में आतंकियों ने सेना के ट्रक पर हमला किया और 5 जवान शहीद हो गए. 16 जुलाई को हुए हमले में भी 5 जवान शहीद हो गए. 

क्या चुनाव के लिए तैयार है घाटी?

2021 से लेकर अब तक के आंकड़ों पर गौर करें तो बीते 3 साल में 47 जवान शहीद हो गए हैं. आम नागरिकों की गिनती नहीं है. 11 अक्टूबर 2021 में 5 जवान शहीद हुए थे. तब से लेकर अब तक, कुल 47 जवानों की जान जा चुकी है.  अगर मुठभेड़ के आकंड़ों पर गौर करें तो नहीं. ये हमले जम्मू संभाग के जिलों में हुए हैं. कुपवाड़ा, बारामुला, पुंछ और पुलवामा का जिक्र तक नहीं हुआ है, जहां पहले से ही जैश और लश्कर के आतंकियों का अड्डा है. घाटी में दहशत है. अगर सुरक्षाबल सुरक्षित नहीं हैं तो आम आदमी की जान कैसे दांव पर लगाई जा सकती है. 

सुरक्षाबल आतंकियों के खिलाफ सर्च ऑपरेशन चला रहे हैं. उन्हें ढूंढा जा रहा है, जगह-जगह पेट्रोलिंग की जा रही है. उनके ठिकानों को तबाह किया जा रहा है लेकिन इसके बाद भी उनका पूरी तरह से सफाया नहीं हो पाया है. जिन इलाकों में वे अच्छी पोजिशन में आ रहे हैं, सैनिकों को जान गंवानी पड़ रही है. कई सैनिक अब तक मारे जा चुके हैं. अगर ऐसी ही स्थिति बनी रही तो चुनाव कराना मुश्किल होगा. डोडा में जब प्रशासनिक अधिकारियों का पक्ष जानने के लिए इंडिया डेली ने उन्हें कॉल किया तो किसी ने फोन रिसीव नहीं किया.