आसान नहीं होगा तहव्वुर राणा को दोषी साबित करना, आखिर क्यों, अजमल कसाब का केस लड़ने वाले वकील ने बतायी वजह
पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल कसाब का मुकदमा लड़ने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता काजमी ने कहा कि राणा का प्रत्यर्पण एक सराहनीय कदम है, लेकिन प्रत्यक्ष और ठोस सबूतों की कमी भारत में कानूनी प्रक्रिया को जटिल बना सकती है.

तहव्वुर राणा का संयुक्त राज्य अमेरिका से प्रत्यर्पण नरेंद्र मोदी सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक जीत है. यह 2008 के मुंबई आतंकी हमलों के पीड़ितों के लिए न्याय की खोज में भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक ऐतिहासिक कदम है. हालांकि, वरिष्ठ अधिवक्ता अब्बास काज़मी ने चेतावनी दी है कि 26/11 के इस अभियुक्त को दोषी ठहराना इतना आसान नहीं होगा.
प्रत्यर्पण की सफलता, लेकिन कानूनी चुनौतियां बरकरार
न्यूज एजेंसी आईएएनएस के साथ बातचीत में काज़मी, जिन्होंने पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल कसाब का मुकदमा लड़ा था, ने कहा कि राणा का प्रत्यर्पण एक सराहनीय कदम है, लेकिन प्रत्यक्ष और ठोस सबूतों की कमी भारत में कानूनी प्रक्रिया को जटिल बना सकती है. उन्होंने कहा, "अजमल कसाब के मामले में 30 से 32 चश्मदीद गवाह थे, जिन्होंने दस पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा की गई क्रूरता की पुष्टि की थी. इसके विपरीत, तहव्वुर राणा हमले के दौरान मुंबई में मौजूद नहीं था. उसे किसी ने घटनास्थल पर नहीं देखा." काज़मी ने समझाया. "इस प्रत्यक्ष भागीदारी की कमी अभियोजन पक्ष के लिए चुनौतीपूर्ण है. केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर राणा को दोषी ठहराना एक कठिन कार्य होगा."
सबूतों की भूमिका और जांच एजेंसियों की मेहनत
काज़मी ने माना कि भारतीय जांच एजेंसियों ने अमेरिकी अधिकारियों को ठोस सबूत पेश किए होंगे, जिसके आधार पर प्रत्यर्पण का आदेश मिला. यह सामग्री राणा की हमले में भूमिका साबित करने में महत्वपूर्ण हो सकती है, जिसमें 150 से अधिक लोगों की जान गई थी. राणा को मुंबई हमले के प्रमुख साजिशकर्ताओं में से एक माना जाता है और वह पाकिस्तानी-अमेरिकी आतंकवादी डेविड कोलमैन हेडली का करीबी सहयोगी है, जिसने हमले के लिए कई स्थानों की टोह ली थी.
राणा का पृष्ठभूमि और भारत की कूटनीति
काज़मी ने राणा के बारे में बताया कि वह पाकिस्तान में पैदा हुआ और वहां की सेना में सेवा देने के बाद कनाडा चला गया, जहां उसे नागरिकता मिली. उन्होंने मोदी सरकार की कूटनीतिक सफलता की भी सराहना की. "मोदी सरकार ने अमेरिकी अधिकारियों के साथ प्रभावी ढंग से सहयोग किया और राणा के प्रत्यर्पण को सुनिश्चित किया. यह 26/11 के पीड़ितों के लिए भारत की न्याय की खोज में एक महत्वपूर्ण कदम है," काज़मी ने कहा.
आगे की राह
राणा कई वर्षों से अमेरिका में कैद है, और अब भारत में उसका मुकदमा शुरू होगा. यह प्रत्यर्पण न केवल भारत की कूटनीतिक ताकत को दर्शाता है, बल्कि आतंकवाद के खिलाफ उसकी अटल प्रतिबद्धता को भी रेखांकित करता है.