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India Daily

ISRO 100th Satellite: ISRO की ऐतिहासिक सेंचुरी पूरी, लॉन्च की NVS-02 सैटेलाइट

ISRO 100th Satellite: GSLV-F15 ने NVS-02 सैटेलाइट को सुबह 6:23 बजे श्रीहरिकोटा के दूसरे लॉन्च पैड से लॉन्च किया. यह ISRO का 2025 में पहला लॉन्च था. इस तरह के लॉन्चों से भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई दिशा और स्पीड मिल रही है, और यह देश को अंतरिक्ष क्षेत्र में और भी मजबूत करेगा.

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Edited By: Shilpa Srivastava
ISRO 100th Satellite
Courtesy: ANI

ISRO 100th Satellite: स्पेस रिसर्च आर्गेनाईजेशन ऑफ इंडिया (ISRO) ने बुधवार को सुबह अपने GSLV-F15 रॉकेट से NVS-02 सैटेलाइट का सफलतापूर्वक लॉन्च किया. यह लॉन्च इंडियन स्पेस प्रोग्राम के लिए एक अहम मील का पत्थर है क्योंकि यह श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर (SDSC) से 100वां लॉन्च था.

GSLV-F15, जो कि GSLV रॉकेट का 17वां उड़ान था और इसमें भारतीय क्रायोजेनिक स्टेज का इस्तेमाल किया गया था, ने NVS-02 सैटेलाइट को सुबह 6:23 बजे श्रीहरिकोटा के दूसरे लॉन्च पैड से लॉन्च किया. यह ISRO का 2025 में पहला लॉन्च था और इस दौरान ISRO के नए अध्यक्ष डॉ. वी. नारायणन के नेतृत्व में यह मिशन किया गया.

NVS-02 सैटेलाइट NavIC का हिस्सा:

NVS-02 सैटेलाइट भारतीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (NavIC) का हिस्सा है, जिसे भारत में एक्यूरेट सटीक सिचुएशन, स्पीड और समय की जानकारी देने के लिए डिजाइन किया गाय है. यह सैटेलाइट भारत और इसके आसपास के 1500 किलोमीटर क्षेत्र में हाई एक्यूरेसी टाइम समेत अन्य सर्विसेज देगी. NavIC में दो तरह की सर्विसेज हैं जिसमें स्टैंडर्ड पोजीशनिंग सर्विस (SPS) और रेस्ट्रिक्टेड सर्विस (RS) शामिल हैं, जिनसे यूजर्स को बेहतर एक्यूरेसी मिलेगी. 

ISRO का यह 100वां लॉन्च एक ऐतिहासिक उपलब्धि है, क्योंकि श्रीहरिकोटा से पहला लॉन्च 10 अगस्त 1979 को हुआ था, जब रोहिणी टेक्नोलॉजी पेलोड के साथ SLV-E-01 रॉकेट लॉन्च किया गया था. तब से ISRO ने 99 और लॉन्च किए हैं, जिनमें से 62 लॉन्च PSLV रॉकेट से हुए हैं.

ISRO ने अपनी अंतरिक्ष क्षमताओं का किया विस्तार:

इस उपलब्धि के साथ ISRO ने अपनी अंतरिक्ष क्षमताओं में और विस्तार करने की दिशा में अहम कदम बढ़ाया है. ISRO अब तमिलनाडु के कुलसेकापट्टी नामक स्थान पर अपना दूसरा लॉन्च पैड बना रहा है, जिससे छोटे सैटेलाइटों को ज्यादा आसानी से लॉन्च किया जा सकेगा. इस नए स्पेसपोर्ट से सैटेलाइटों को दक्षिण दिशा में सीधा भेजा जा सकेगा, जिससे ईंधन की बचत होगी और लॉन्च में भी अधिक आसानी होगी.