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India Daily

शीना बोरा हत्याकांड में इंद्राणी मुखर्जी को 'सुप्रीम' झटका, विदेश जाने की परमिशन वाली याचिका खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने शीना बोरा हत्याकांड में आरोपी इंद्राणी मुखर्जी के विदेश यात्रा जाने की अर्जी पर अनुमति देने से इनकार कर दिया है. इसके साथ ही अदालत ने ट्रायल कोर्ट ने कार्यवाही में तेजी लाने के भी आदेश दिए हैं.

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Edited By: Shanu Sharma
Supreme Court on Indrani Mukerjea Bail Plea
Courtesy: Social Media

Supreme Court on Indrani Mukerjea Bail Plea: शीना बोरा हत्याकांड में आरोपी इंद्राणी मुखर्जी ने विदेश यात्रा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई थी. सोमवार को उच्चतम न्यालय ने इसपर अनुमति देने से इनकार कर दिया है. इसके साथ ही कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को कार्यवाही में तेजी लाने और एक साल के भीतर मामले को समाप्त करने का भी निर्देश दिया.

जस्टिस एमएम सुंदरेश और राजेश बिंदल की पीठ ने मुखर्जी की याचिका को खारिज कर दिया. जिसमें उन्हें देश छोड़ने से रोकने वाले बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी. मुखर्जी ने वित्तीय और कानूनी दस्तावेजों को निष्पादित करने के लिए स्पेन और यूनाइटेड किंगडम जाने की अनुमति मांगी थी.

अदालत के आदेश को पलटा

विदेश यात्रा के मुखर्जी के अनुरोध को शुरू में 19 जुलाई, 2024 को एक विशेष अदालत ने मंजूरी दे दी थी. जिससे उन्हें तीन महीने में 10 दिनों के लिए स्पेन और यूके जाने की अनुमति मिल गई थी. हालांकि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने इस फैसले को बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी. जिसने 27 सितंबर को विशेष अदालत के आदेश को पलट दिया. जिसके बाद मुखर्जी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उनके वकील ने तर्क दिया कि ब्रिटिश नागरिक होने के नाते, उन्हें डिजिटल प्रमाणपत्र सक्रिय करने और प्रशासनिक कार्यों को पूरा करने के लिए शारीरिक रूप से उपस्थित होने की आवश्यकता थी, जो दूर से नहीं किए जा सकते थे. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर असहमति जताते हुए कहा कि इन मामलों को दूतावासों के माध्यम से निपटाया जा सकता है.

उच्च न्यायालय के निर्णय को बरकरार

न्यायमूर्ति सुंदरेश ने टिप्पणी कि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि आप वापस आएंगे. जबकि न्यायमूर्ति बिंदल ने बताया कि मुखर्जी के पास स्पेन में पावर ऑफ़ अटॉर्नी धारक है जो उनकी ओर से औपचारिकताओं का प्रबंधन कर सकता है. वकील ने कहा कि बायोमेट्रिक पंजीकरण के लिए उनकी व्यक्तिगत उपस्थिति की आवश्यकता है और इस बात पर जोर दिया कि उन्होंने पिछले 10 वर्षों से विदेश यात्रा नहीं की है. इन तर्कों के बावजूद न्यायालय ने उच्च न्यायालय के निर्णय को बरकरार रखा और निर्देश दिया कि मुकदमा एक वर्ष के भीतर पूरा किया जाए.