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India Daily
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भारत के वो राज्य जहां MLAs का टैक्स भी भरता है आम आदमी, खुद नहीं देते एक भी पैसा

States Where Income Tax Paid By Government: भारत में राजस्व का बड़ा हिस्सा टैक्स के जरिए आता है जो हर आदमी अदा करता है ताकि सरकार की तरफ से मिलने वाली सार्वजनिक सुविधाएं सुचारू रूप से चलती रहें. इसमें सरकारी, प्राइवेट या पद का लाभ नहीं दिया जाता लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश में कुछ ऐसे राज्य हैं जहां पर सीएम और उनके मंत्रियों का इनकम टैक्स जनता के पैसों से ही दिया जाता है. आइये एक नजर डालते हैं-

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Vineet Kumar
Haryana Cabinet
Courtesy: Social

States Where Income Tax Paid By Government: मंगलवार (25 जून) को मध्यप्रदेश की मोहन यादव सरकार के नेतृत्व वाली कैबिनेट ने ऐतिहासिक फैसला करते हुए 52 साल पुराने उस नियम को खत्म कर दिया जिसके तहत राज्य के सीएम और बाकी मंत्रियों की आय और भत्तों पर लगने वाले इनकम टैक्स को राज्य सरकार चुकाती थी. नए नियम के अनुसार अब हर मंत्री और सीएम को खुद अपना टैक्स देना होगा न कि जनता के पैसों से इकट्ठा किए गए राजस्व से. मध्यप्रदेश से पहले बीजेपी शासित उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने भी साल 2019 में ये बदलाव किया था और 1981 में लागू हुए इस नियम को खत्म कर दिया था.

यूपी से हुआ शुरू तो इन राज्यों में भी हुआ बदलाव

इससे पहले हिमाचल प्रदेश ने भी फरवरी 2022 में 1971 में लागू हुए नियम को खत्म किया था. 1971 में मंत्री और सीएम की कम सैलरी को देखते हुए उनके इनकम टैक्स को राज्य सरकार के खजाने से ही भरने का नियम बनाया गया था, हालांकि 2019 में जब यूपी ने यह पहल शुरू की तो हिमाचल प्रदेश ने भी उसमें अपना हाथ बटाया और फरवरी 2022 में इसे खत्म करने का फैसला किया.

उत्तर प्रदेश में 1981 से यह कानून है, इसलिए यह तर्कसंगत था कि यह उत्तराखंड राज्य पर भी लागू हो, जिसे यूपी से अलग करके बनाया गया था. 2010 में, उत्तराखंड ने राज्य पर यूपी अधिनियम के लागू होने को निरस्त कर दिया और अपना खुद का कानून पारित किया, जिसमें साफ किया गया कि मुख्यमंत्री, मंत्रियों, राज्य मंत्रियों और उप मंत्रियों के वेतन पर देय आयकर राज्य सरकार की तरफ से वहन किया जाएगा. हालांकि उत्तर प्रदेश में इस नियम को खत्म करने के कुछ हफ्तों बाद ही उत्तराखंड सरकार ने भी इसे खत्म करने का फैसला किया और 24 अक्टूबर 2019 से राज्य के सीएम और मंत्री खुद अपना टैक्स भरने लगे हैं.

वो राज्य जहां आज भी जनता की जेब से जाता है मंत्रियों का टैक्स

जहां कुछ राज्य ऐसे नियमों को खत्म कर राजनीतिक भागीदारी को बढ़ाने की ओर कदम उठा रहे हैं तो वहीं पर देश में अभी भी कुछ ऐसे राज्य हैं जहां पर अभी भी ये नियम लागू है और सीएम समेत सभी मंत्रियों का टैक्स भी जनता की जेब से ही जाता है. इस फेहरिस्त में जम्मू कश्मीर- 1981, हरियाणा- 1970 और पंजाब-1976 का नाम शामिल है.

1. पंजाब- पूर्वी पंजाब राज्य (जैसा कि तब था) ने पूर्वी पंजाब मंत्री वेतन अधिनियम, 1947 को अधिनियमित किया. पंजाब राज्य ने 1956 में उप मंत्रियों के वेतन के भुगतान के लिए एक और कानून पारित किया, जिसे बाद में मुख्य संसदीय सचिव और संसदीय सचिव को कवर करने के लिए बढ़ा दिया गया. 1976 में, वीपी सिंह द्वारा यूपी कानून लागू करने से पांच साल पहले, पंजाब के दोनों कानूनों में नई धाराएं डाली गई, जिसमें कहा गया कि मंत्रियों, उप मंत्रियों, मुख्य संसदीय सचिव और संसदीय सचिव के वेतन पर देय आयकर राज्य सरकार द्वारा देय होगा. विपक्ष के नेता को भी इसी तरह का लाभ दिया गया.

19 मार्च 2018 को पंजाब कैबिनेट ने इन प्रावधानों को निरस्त करने का फैसला किया. हालांकि, ऐसा लगता है कि संशोधनों को कानून की किताब पर लागू नहीं किया गया है. 6 अगस्त 2019 को पंजाब विधानसभा ने नए विधेयक पारित किए, जिसमें स्पष्ट किया गया कि इन अधिकारियों के भत्तों और घरों पर आयकर सरकार की तरफ से भुगतान किया जाना जारी रहेगा, हालांकि अगर कोई अपनी इच्छा से टैक्स भरने का ऑप्शन चुनना चाहे तो चुन सकता है. फरवरी 2020 में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ एक एमएलए ने ही ये विकल्प चुना जबकि बचे हुए 116 विधायकों का इनकम टैक्स राज्य सरकार के खजाने से ही दिया जा रहा है.

2. हरियाणा- पंजाब से पहले ही हरियाणा राज्य ने हरियाणा मंत्रियों के वेतन और भत्ते अधिनियम, 1970 को अधिनियमित किया था, जिसकी धारा 6 में कहा गया था कि उसके मंत्रियों के वेतन और भत्तों पर देय आयकर "राज्य सरकार की ओर से वहन किया जाएगा." मंत्री की आय पर कर का भुगतान करने से यह छूट हरियाणा विधानसभा के सदस्य के रूप में उन्हें मिलने वाले किसी भी भत्ते पर भी लागू होती है.

3. जम्मू और कश्मीर- जम्मू और कश्मीर राज्य ने 1956 में अपने मंत्रियों और राज्य मंत्रियों के वेतन और भत्ते से संबंधित एक कानून पारित किया, और 1957 में अपने उप-मंत्रियों के लिए एक और कानून पारित किया. 1981 में, इन दोनों कानूनों की धारा 3 में संशोधन किया गया था, जिसमें कहा गया था कि इन पदाधिकारियों द्वारा अपने आधिकारिक वेतन/भत्तों पर देय कोई भी आयकर - या उनके आधिकारिक वेतन/भत्तों के कारण उनके द्वारा दिए जाने वाले इनकम टैक्स में कोई वृद्धि - "सरकार की तरफ से भुगतान की जाएगी".

जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 की पांचवीं अनुसूची साफ करती है कि ये दोनों कानून 31 अक्टूबर को राज्य के दो केंद्र शासित प्रदेशों में पुनर्गठन के बाद भी लागू हैं.

ये राज्य भी हैं खुद टैक्स न देने वालों में शामिल

इनके अलावा छत्तीसगढ़, झारखंड, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना भी ऐसे राज्य हैं जहां पर जनता के पैसों से ही राज्य के मंत्रियों और सीएम का इनकम टैक्स भरा जाता है. ऐसे में जब सभी MLAs की सैलरी लाखों में पहुंच चुकी है तो वहां पर यह राजनीतिक जिम्मेदारी बनती है कि सभी विधायक भी आम जनता की तरह अपना टैक्स खुद ही भरें न कि आम जनता के पैसों से जुड़े राजस्व से. देखना होगा कि आने वाले वक्त में क्या ये राज्य भी उस फेहरिस्त में शामिल होते हैं जो इस तरह के पुराने नियम को खत्म कर इस ऐतिहासिक पहल में शामिल होते हैं.