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India Daily

औरंगजेब की कब्र के रखरखाव में 10 साल में भारत सरकार ने खर्च किए 12 लाख, 2014 के बाद 6 गुना बढ़ा खर्च

Aurangzeb tomb: सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत प्राप्त जानकारी से पता चला है कि पिछले दो दशकों में औरंगजेब के मकबरे पर सरकारी खर्च में भारी वृद्धि हुई है.

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Edited By: Gyanendra Tiwari
Indian government spent 12 lakh rupees in 10 years to maintain Aurangzeb tomb Archaeological Survey
Courtesy: Social Media

Aurangzeb tomb: पुणे के सामाजिक कार्यकर्ता प्रफुल सरदा द्वारा दायर एक आरटीआई (सूचना का अधिकार) आवेदन से यह खुलासा हुआ है कि पिछले दस वर्षों में केंद्र सरकार ने औरंगजेब की कब्र के रखरखाव पर ₹12 लाख से अधिक खर्च किए हैं.

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने बताया कि यह राशि मकबरे की सुरक्षा, मरम्मत, साफ-सफाई और पुनर्स्थापन जैसे कार्यों पर खर्च की गई है. महाराष्ट्र के खुल्दाबाद में स्थित यह मकबरा ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है, लेकिन इसके आसपास अक्सर राजनीतिक बहसें भी होती रहती हैं.

2014 के बाद छह गुना बढ़ा खर्च

रिकॉर्ड के अनुसार, वर्ष 2005-06 में इस मकबरे पर सबसे कम ₹1,395 खर्च हुए थे. वहीं 2024-25 में यह आंकड़ा ₹5,35,988 तक पहुंच गया.

वर्ष 2004 से 2014 तक एएसआई ने इस स्थल पर कुल ₹2,54,128 खर्च किए थे. लेकिन 2014 से 2025 तक यह खर्च करीब छह गुना बढ़कर ₹12,24,104 तक पहुंच गया.

स्थानीय विरासत पर ध्यान देने की मांग

प्रफुल सरदा ने इस खर्च पर सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार को औरंगजेब की कब्र पर पैसे खर्च करने के बजाय मराठा योद्धाओं, विशेष रूप से छत्रपति शिवाजी महाराज से जुड़ी धरोहरों के संरक्षण पर ध्यान देना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि महाराष्ट्र की असली पहचान मराठा इतिहास से है, और ऐसे स्मारकों की देखरेख प्राथमिकता होनी चाहिए.

कार्यकर्ता प्रफुल सारदा ने साइट के लिए धन बढ़ाने के औचित्य पर सवाल उठाया. उन्होंने कहा, "यह डेटा संसाधन आवंटन और भारत के स्मारकों के संरक्षण में बदलती प्राथमिकताओं के बारे में गंभीर सवाल उठाता है. क्रूर मुगल सम्राट की विरासत को संरक्षित करने के लिए धन बढ़ाने के बजाय, राज्य और केंद्र दोनों सरकारों को छत्रपति शिवाजी महाराज और अन्य सम्मानित मराठा नेताओं द्वारा बनाए गए किलों और ऐतिहासिक स्मारकों के संरक्षण को प्राथमिकता देनी चाहिए."

औरंगजेब का मकबरा हमेशा से विवादों में रहा है. कुछ समय से इसे भारत के संरक्षित स्मारकों की सूची से हटाने की मांग भी उठ रही है.