भारतीय वायु सेना (IAF) ने अपनी सामरिक हवाई परिवहन क्षमता को एक नई ऊंचाई दी है. पहली बार, विशालकाय चार इंजन वाला C-17 ग्लोबमास्टर-III विमान कारगिल हवाई पट्टी पर उतारा गया है. यह हवाई पट्टी नियंत्रण रेखा (LoC) के पास स्थित है और समुद्र तल से 9,700 फीट से अधिक की ऊंचाई पर पहाड़ों से घिरी एक कटोरेनुमा जगह में बनी है. बुधवार सुबह दिल्ली के बाहरी इलाके हिंदन से उड़ान भरने के बाद इस विमान ने कारगिल में सफलतापूर्वक लैंडिंग की. यह एक "परीक्षण उड़ान" थी, जिसने भारत की सीमावर्ती क्षेत्रों में रणनीतिक तैयारियों को मजबूत करने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है.
अगला कदम: रात में लैंडिंग
चीन और पाकिस्तान पर नजर
भारत ने चीन और पाकिस्तान दोनों को ध्यान में रखते हुए अपने अग्रिम हवाई अड्डों और अडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड्स (ALGs) के बुनियादी ढांचे को लगातार उन्नत किया है. लद्दाख में थोईस, फुकचे, न्योमा और दौलत बेग ओल्डी (DBO) के साथ-साथ अरुणाचल प्रदेश में पासीघाट, मेचुका, वालोंग, टूटिंग, अलोंग और जीरो जैसे क्षेत्रों में यह काम तेजी से चल रहा है. उदाहरण के लिए, न्योमा ALG में 230 करोड़ रुपये की लागत से अपग्रेड का काम जारी है. यह हवाई पट्टी पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के करीब 13,710 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. यहां मौजूदा हवाई पट्टी को 2.7 किलोमीटर लंबे मजबूत रनवे में बदला जा रहा है, ताकि लड़ाकू विमानों सहित सभी प्रकार के विमानों का उपयोग रक्षा और आक्रमण दोनों के लिए किया जा सके.
C-17 और C-130J का योगदान
पिछले 15 सालों में भारत ने अमेरिका से 4.5 अरब डॉलर में 11 C-17 और 2.1 अरब डॉलर में 13 C-130J विमान खरीदे हैं. हालांकि, मार्च 2014 में ग्वालियर के पास एक C-130J दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, जिसमें पांच कर्मी मारे गए थे. ये मजबूत विमान अस्थायी हवाई पट्टियों पर भी उतर सकते हैं और इन्हें चीन-पाकिस्तान सीमा क्षेत्रों में सैनिकों व सामानों की ढुलाई, विदेशों से भारतीय नागरिकों को निकालने, और भारत व विदेशों में मानवीय सहायता व आपदा राहत के लिए बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया है. अगस्त 2013 में, C-130J ने दुनिया की सबसे ऊंची हवाई पट्टी दौलत बेग ओल्डी (16,614 फीट) पर पहली बार लैंडिंग की थी, जो कराकोरम दर्रे को देखती है और LAC से कुछ ही किलोमीटर दूर है.
सामरिक महत्व
कारगिल में C-17 की लैंडिंग भारत की सैन्य तैयारियों को नई ताकत देती है. यह न केवल सीमावर्ती क्षेत्रों में तेजी से संसाधन पहुंचाने की क्षमता को बढ़ाता है, बल्कि भारत की रक्षा रणनीति को और मजबूत करता है. आने वाले समय में रात के समय लैंडिंग की सफलता इस दिशा में एक और मील का पत्थर साबित हो सकती है.