India Sri Lanka 1976 maritime agreement: भारत और श्रीलंका के बीच दशकों से चले आ रहे समुद्री सीमा विवाद के दो प्रमुख केंद्र बिंदुओं की बात की जाए तो वो वाडगे बैंक और कच्चातीवू द्वीप हैं. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस सरकार पर हमला बोलते हुए कच्चातीवु द्वीप के मुद्दे का जिक्र किया और बताया कि कैसे पूर्व की कांग्रेस सरकारों ने बेरुखी से इस द्वीप पर अपना अधिकार छोड़ दिया था.
राजनीतिक गलियारों में पीएम मोदी के इस हमले को आगामी लोकसभा चुनाव में तमिलनाडु की जनता को लुभाने के लिहाज से जोड़ा जा रहा है. हालांकि यह विवाद का विषय जरूर बन गया है, ऐसे में एक सवाल यह भी उठ रहा है कि अगर भारत ने कच्चातीवु द्वीप पर अपना अधिकार छोड़ा तो बदले में उसे क्या मिला?
भारत और श्रीलंका के पूर्व राजनायिक इसका जवाब 1976 के एक ऐतिहासिक समझौते को बताते हैं जिसमें श्रीलंका ने वाडगे बैंक को भारत के अधिकार क्षेत्र के रूप में मान्यता दी थी. इस समझौते के चलते दोनों द्विपीय देशों के बीच समुद्री सीमा के एक जटिल मुद्दे का आंशिक समाधान हुआ.
वाडगे बैंक, कन्याकुमारी से लगभग 50 किलोमीटर दक्षिण में स्थित एक विशाल (लगभग 10,000 वर्ग किलोमीटर) का पानी के नीचे का पठार है. इस क्षेत्र को अपने संभावित तेल और गैस भंडारों के लिए जाना जाता है, जो इसे दोनों देशों के लिए आर्थिक और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाता है. समझौते से पहले, वाडगे बैंक भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) के अंतर्गत आता था, लेकिन यह आधिकारिक रूप से भारत के जलीय श्रेत्र से बाहर था. यही कारण था कि भारत और श्रीलंका के बीच इस क्षेत्र पर विवाद चल रहा था.
1976 का समुद्री सीमा समझौता दोनों देशों के बीच एक महत्वपूर्ण टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ. इस समझौते के तहत, श्रीलंका ने इस बात को स्वीकार कर लिया कि वाडगे बैंक पर भारत का संप्रभु अधिकार है. हालांकि इस समझौते में इस बात का जिक्र किया गया है कि वाडगे बैंक भारत के जलीय क्षेत्राधिकार के बाहर स्थित है, यह स्पष्ट रूप से कहता है कि भारत को इस क्षेत्र के संसाधनों का खोज और उपयोग करने का विशेष अधिकार प्राप्त है.
यह समझौता कच्चातीवू द्वीप के मुद्दे से अलग था. 1974 में एक अलग समझौते में, भारत ने इस छोटे से निर्जन द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया था. इस निर्णय को भारत में काफी आलोचना का सामना करना पड़ा, क्योंकि कुछ लोगों का मानना था कि इस निर्णय के साथ-साथ कच्चातीवू के आसपास के मछली पकड़ने के अधिकार भी अनजाने में श्रीलंका को दे दिए गए.
वाडगे बैंक समझौते को अक्सर कच्चातीवू समझौते के साथ जोड़कर देखा जाता है. जहां कच्चातीवू ने भारतीय मछुआरों के लिए कुछ चिंताएं खड़ी कीं, वहीं वाडगे बैंक समझौते ने भारत को संसाधन संपन्न क्षेत्र पर नियंत्रण देकर एक रणनीतिक लाभ प्रदान किया. समझौते के बाद से, भारत ने इस क्षेत्र में तेल और गैस की खोज के लिए कई प्रयास किए हैं.
हालांकि, वाडगे बैंक से संसाधनों का उपयोग करना चुनौतीपूर्ण है. गहरे समुद्र में ड्रिलिंग और खोज करना महंगा होता है, और वाडगे बैंक की संसाधनों के लिहाज से देश को कितना लाभ दे सकता है यह अभी भी अनिश्चित है. इसके अलावा, भारत और श्रीलंका के बीच समुद्री सीमा विवाद का पूर्ण समाधान नहीं हुआ है. कुछ क्षेत्रों में अभी भी विवाद बना हुआ है, जिससे भविष्य में संभावित तनाव पैदा हो सकते हैं.
संक्षेप में, 1976 का समुद्री सीमा समझौता भारत और श्रीलंका के बीच एक जटिल समुद्री सीमा विवाद का एक पहलू था. इस समझौते ने वाडगे बैंक को भारत के अधिकार क्षेत्र के रूप में मान्यता देकर भारत के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक और आर्थिक जीत हासिल की. हालांकि, चुनौतियों और अनिश्चितताओं के बावजूद, यह समझौता भारत को अपने समुद्री संसाधनों की खोज करने और उनका दोहन करने का एक कानूनी ढांचा प्रदान करता है.